Thursday, May 07, 2009

मास्टर का बेटा

सिक्का तभी चलता है,
उस पर जब "नाम " होता है |
रचना भी तब छपती है ,
जब नामी "नाम "होता है |

पैसा भी तभी आता है ,
जब" पैसा "पास होता है |

आपने देखा है ?


'भिखारी भी अपने कटोरे में
सुबह से कुछ रेजगारी
और
कुछ नोट डालकर ही
काम पर निकलता है |
'पुजारी "भी आरती में
कुछ रेजगारी और कुछ
बडे नोट
डालकर अपने माथे पर
टीका
लगाकर बैठता है |
मंत्री का बेटा , मंत्री
संत्री का बेटा, संत्री
वकील का बेटा ,वकील
डाक्टर ,का बेटा डाक्टर
बना जब मेहनत करके ,
"मास्टर का बेटा डाक्टर "
तो उसकी पहचान ही खो गई ............

12 टिप्पणियाँ:

Urmi said...

बहुत खूब लिखा है आपने और बिल्कुल सही फ़रमाया कि मास्टर का बेटा जब डॉक्टर बनता है तो उसकी पहचान ही खो जाती है ! बढ़िया लिखा है आपने कि बिना नाम के सिक्का कभी नहीं चलता!

अमिताभ श्रीवास्तव said...

yathaarth baat he ji yah//bahut sundar andaaz me aapne likha he//
"मास्टर का बेटा डाक्टर "
तो उसकी पहचान ही खो गई ............/
aapki rachna me ab vazan aa rahaa he//likhti rahiye/ shubhkamnaye/

mark rai said...

duniya ki rit ko achchhi tarah janti hai tabhi to dimaag me se aisi rachnaayen nikal pati hai...
बहुत सुन्दर! ........

ठान ले तो जर्रे जर्रे को थर्रा सकते है । कोई शक । बिल्कुल नही ।
अभी थोडी मस्ती में है । मौज कर रहे है ।
पर एक दिन ठानेगे जरुर ....

रश्मि प्रभा... said...

सिक्का तभी चलता है,
उस पर जब "नाम " होता है |
रचना भी तब छपती है ,
जब नामी "नाम "होता है |

पैसा भी तभी आता है ,
जब" पैसा "पास होता है |...bilkul sahi

Udan Tashtari said...

नाम का दाम है..बस!!

Prem Farukhabadi said...

सिक्का तभी चलता है,
उस पर जब "नाम " होता है |
रचना भी तब छपती है ,
जब नामी "नाम "होता है |

पैसा भी तभी आता है ,
जब" पैसा "पास होता है

Sanjay Gothi said...

master ka beta doctor bana to master ki pahchan hi kho gayee ya nayee pahchan mil gayee ki ab voh doctor ka baap hai

Kavi Kulwant said...

wow! kya baat hai ji..

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर रचना....

गुलमोहर का फूल

जयंत - समर शेष said...

नाम, नाम बस नाम,
इससे ही मिलता दाम,
जो ना हो कोई नाम,
पूरे हो ना कोई काम....

सच है... १००% सच.

~जयंत

(वैसे मेरे दादा जी भी मास्टर थे, और पिता जी आई. एफ. एस. बने थे... :))

दिगम्बर नासवा said...

वाह.सही कहा ही.......बहूत ही तेज़ व्यंग ही...........आपने सत्य को नए अनाज में लिखा है.....लाजवाब

रावेंद्रकुमार रवि said...

वैसे तो अब मास्टर (शिक्षक) भी किसी न किसी तरह से जुगाड़ करके अपने बेटे को मास्टर बना ही लेते हैं, पर आज आपकी अभिव्यक्ति पढ़कर एक बहुत अच्छे रचनाकार से मुलाकात हो गई!

सचमुच आपकी लेखनी में दम है अच्छा रचने का!