Tuesday, October 05, 2010

"जीवन के प्रति "डायरी के पन्ने "





स्कूल कालेज में लिखने का बहुत ही शौक था |आज कि तरह उन दिनों इतनी आसानी से स्टेशनरी नहीं उपलब्ध कराई जाती थी घर से |बड़ी मितव्ययता और सादगी भरा जीवन होता था |इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि पिताजी से कह सके की
हमे एक डायरी खरीद कर ला दे |वैसे भी पिताजी से बहुत डरते थे थोड़ी ही बोलचाल थी | पिताजी आगे के कमरे में तो हम सब बहने अन्दर के कमरे में ही रहते |हमारी सारी आवश्यकताये हमारे दादाजी ही पूरी करते पर डायरी कि मांग तो लक्जरी ही थी! उस समय |टालते रहे दादाजी! भी ..भले ही मै कितनी भी लाडली थी? मैंने भी सोच रखा था लिखूंगी तो डायरी में ही !
छोटी बहन ने स्कूल में एन .सी .सी .ले रखा था उसे डायरी जरुरी थी तो उसे ला दी गई अब कविताओ कि क्या बिसात एन .सी सी के सामने ?उसने तो तो कुछ डायरी मेंटेन नहीं कि एक दो पेज भरे थे मैंने उसे पटा पुटा कर डायरी ले ली |
और अपना पहला लेख लिखा जब बी .ए .प्रथम वर्ष में थी यानीकी सन 1971 में |
उसके
बाद कुछ कविताये भी लिखी |


किन्तु किसी को बताने कि हिम्मत नहीं होती थी छपवाना तो दूर कि बात है |फिर डायरी कहाँ रखा गई पता ही न चला लिखने कि गति भी कम हो गई पढाई और घर का काम फिर नया जीवन |शादी हो गई |ससुराल में लेखन कार्य सोच भी नहीं सकते कुछ कुछ "सारा आकाश "फिल्म जैसे हाल थे |
मुंबई का नया जीवन ?तब तो वहां हर चीज के लिए राशन ,मिटटी का तेल ,चावल आदि के लिए लाइन लगाना होता था |
ये सब कार्य गृहणी के ही होते थे |
अभी कुछ महीने पहले भाई ने पैत्रक घर बदला और सारा पुराना सामान व्यवस्थित किया तो मेरी डायरी मिली जिसे मै तो भूल ही चुकी थी हालत थोड़ी खराब है ,किन्तु लेख सही सलामत है मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं ?

तो चलिए आज आपको भी अपना ऐतिहासिक प्रथम लेख पढवा ही देती हूँ |
मनुष्य
वही है जो हर गम को ख़ुशी ख़ुशी गले लगा ले |जीवन में सुख दुःख तो ही है ,कई गमो के गुजरने के बाद ही सुख कि मंजिल प्राप्त होती है ,अतएव दुःख को भी जीवन कि सच्चाई मानकर चले तो उसका कोई बोझ महसूस नहीं होगा |मनुष्य को अपने लिए नहीं ?वरन दूसरो के लिए जीना चाहिए |
वह दुनिया में ऐसा कार्य करे इस प्रकार जिए कि उसके इस दुनिया से जाते समय हर कोई दो आंसू बहा सके \किसी ने कहा भी है -
"मै एक ही बार इस संसार से गुजर जाना चाहता हूँ "
अर्थात मै इस दुनिया में आया हूँ तो अछे कर्म करके ही जाऊ ताकि बार बार नहीं आना पड़े \मनुष्य को अपने जीवन में वही कर्म करना चाहिए जिसमे दूसरो का भला हो ,समाज का भला हो देश का भला हो दुनिया का भला हो |जिन्दगी यही कहती है |
मानव अपने जीवन में प्रक्रति से कितना कुछ सीख सकता है अगर स्वयम कष्ट सहकर किसी दूसरे का भला किया जा सकता है तो इससे बढ़कर सुख कि बात और क्या हो सकती है |जिस प्रकार सूर्य स्वयम जलकर धरती को प्रकाशमान करता है , पृथ्वी सब कुछ सहकर हर चीज उपलब्ध कराती है ,उसी प्रकार मानव को अपने कर्मो के द्वारा हर किसी कि भलाई करनी चाहिए |
जब से मानव ने पृथ्वी पर जन्म लिया है वह अपने आदर्शो के लिए संघर्ष कर रहा है ,वही मानव जीत सकता है जो विवेकरूपी कठोर वस्त्र धारण करे |विवेक के साथ संयम का सदुपयोग कर मानव जीवन के आदर्शो के प्रति सफल हुआ जा सकता है |जैसा कि महादेवी वर्मा के इस संदेश में है -
"संसार के मानव समुदाय में वही व्यक्ति स्थान और सम्मान पा सकता है ,वही जीवित कहा सकता है जिसके ह्रदय और मस्तिष्क ने समुचित विकास पाया हो और जो अपने व्यक्तित्व द्वारा मनुष्य समाज से रागात्मक के अतिरिक्त बौद्धिक सम्बन्ध भी स्थापित कर सकने में समर्थ हो |"
अर्थात मनुष्य कि ह्रदय कि भावना संकुचित न हो और वह अपने विचार हमेशा ऊंचे रखता हो और उसके प्रति उसे निभाने कि उसमे पूरी क्षमता हो |मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह समाज में ही जन्म लेता है और समाज में ही उसकी म्रत्यु होती है बिना समाज के मनुष्य स्थिर नहीं पाता |सुख दुःख ,मिलन वियोग सभी कुछ समाज में ही द्रष्टिगोचर होता है |लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए क्या नहीं करता ?मनुष्य अगर जागरूक है तो समाज भी जागरूक होगा यदि वह अपने स्वार्थ में लिप्त रहेगा तो वह कौनसा आदर्श कायम रख सकेगा | क्यों न हम सामाजिक संघर्षो के साथ आगे बढे वही सच्ची मानवता होगी |
मानवीय परिश्रम के द्वारा कुछ भी असम्भव नहीं ?वह एवरेस्ट कि छोटी पर चढ़ सकता है |महात्मा गाँधी कि जिन्होंने कठिन तपस्या से देश को परतन्त्रता कि बेडियो मुक्त कराया और भी कई ऐसे इतिहास के प्रष्टो से प्रेरणा मिलती है |जिससे हम सुन्दर जीवन का प्रारम्भ कर सकते है |मानवीय श्रम के साथ साथ प्रबल मनोबल ही हर असम्भव कार्य को संभव कर सकता है |

जगत और जीवन का संघर्ष चलता रहता है |मनुष्य को अपना जीवन सघर्षमय बिताना पड़े तो निश्चय ही आनेवाला
समय आनंदमय और मानवता का होगा |

12 टिप्पणियाँ:

kshama said...

Aapke vigat kaa safar bahut achha laga!kuchh,kuchh mere se milta julta! Meri bhi kayi diaries aur copies jo maane sambhal ke rakhee theen,kuchh arse pahle mere hawale kar deen...usme school ke pragati putak bhi the!

वाणी गीत said...

जीवन संघर्ष की आंच में तप कर ही कुंदन बना जा सकता है ...
सादा जीवन उच्च विचार वाले व्यक्ति अपने जीवन में हर पल का आनंद लेते हैं तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी ...
बहुत अच्छा लगा आपकी डायरी का पुराना पन्ना पढना ...
मुझे भी अपनी एक डायरी इसी तरह बहुत सालों बाद मायके के कबाड़ख़ाने में मिली थी ...उसकी कीमत बस हम ही समझ सकते हैं ...!

प्रवीण पाण्डेय said...

आपकी साहित्यिक यात्रा मेरे जन्म के पहले ही प्रारम्भ हो चुकी थी, आज प्रखर पर है। प्रणाम स्वीकारें।

shikha varshney said...

वो पुरानी डायरी मिलने पर कैसा लगा होगा समझ सकती हूँ मैं .बहुत अच्छा लगा पीले पन्नों से निकला लेख.

राज भाटिय़ा said...

अति सुंदर लगी आप की यह पुरानी डायरी, धन्यवाद

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कितना आन्ण्द आता है, अपने ही पुराने लिखे को पढने में...

ज्योति सिंह said...

aapke lekh ne hame bhi apne beete dino me dhakel diya .dairy ke saath purane panne dekh kar ek sukhad anubhati hui .hum sabhi isi dhara ke hai is karan bhali bhanti ise mahsoos kar sakte hai .ati sundar .

Alpana Verma said...

सालों बाद 'कुमारी शोभना' की डायरी मिल गयी...श्रीमति शोभना जी को कितनी खुशी हुई होगी यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है..वक्त को देखीये..आज सालों बाद आप उसी ऐतिहासिक लेख को आप उस समय छपवा न सकीं,आज दुनिया के सामने ला सकी हैं.पहला ही लेख बहुत अच्छा लिखा था आप ने.
हाँ,''कुमारी शोभना ''की लिखाई बहुत सुन्दर है.

ज्योति सिंह said...

aaj phir aapki likhi pahli rachna padhne aa gayi ,kyonki isme likhi kai baate bahut aham hai .aur ye kumari shobhna ki rachna hai jaise alpana ne kaha .sada se sundar likhti rahi aur hum bhagyashali hai jise aapko padhne ka avasar mila .

rashmi ravija said...

आपकी ख़ुशी का अंदाजा लगा सकती हूँ....डायरी भी मिल गयी और उसमे लिखा लेख भी सुरक्षित है ..और डायरी से जुड़ी यादें भी स्मृति में वैसे ही ताज़ी हैं.

उन दिनों लड़कियों को कविता,कहानी लिखना अपराध बोध सा लगता था...घरवालों से छुपाने की कोशिश की जाती थी. मैने भी आलेख भले ही पत्रिकाओं में भेजे...पर कहानियां भेजने की हिम्मत कभी ना कर सकी. पर देखिए ब्लॉग जगत में इतने सारे पाठक मिल गए जैसे आपकी डायरी सुन्दर अक्षरं में लिखे लेख को भी हम सब पढ़ सके.

आपकी सोच और शैली..शुरू से ही प्रभावशाली रही है

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं

Manoj K said...

बहुत खुशी होती है जब कोई पुरानी लिखी चीज़ हाथ लगती है..

लेख वास्तव में जीवन के दोनों पहलु सुख और दुःख के बारे में बताता है..

आभार
मनोज