कुछ ख्याल मन में आए उन्हें शब्द तो दे दिए पर शीर्षक नही बन पा रहा है इसलिए बिना शीर्षक के ही post कर देती हूँ
|
दिल का दर्द मिटता नही ओरो को बताने से
दिल का जख्म भरता नही, ओरो को जख्म दिखाने से
दर्द मिटता है, ओरो का दर्द लेने से
जख्म भरता है ,ओरो से जख्म अपना जख्म छुपाने से
हम आगे बढ़ गये
हमारी मानवता पीछे छूट गई
हम मजबूत हो गये
हमारी हड्डिया कमजोर हो गई |
हम तरक्की कर गये
हमारी रोटी पीछे छूट गई
हम अपटूडेट हो गये
हमारी ईमानदारी पीछे छूट गई
जो हम छोड़ते गये
वो अतीत हो गया
और आज ये अतीत ही
जीने का जीने का सहारा बन गये |
Tuesday, June 30, 2009
Monday, June 29, 2009
श्रद्धांजली
तीन दिनों से लगातार टी .वि पर माइकल जेक्सन की विवादास्पद म्रत्यु की की खबरे, साथ ही श्रद्धांजली के कार्यक्रम देख रहे है यहाँ बेंगलोर में एक बहुत बड़ा शिवजी का मन्दिर है आज सोमवार था तो दर्शन करने चले गये जैसे ही ओटो से उतरे मन्दिर के पास की दुकान के बाहर एक लंबा माइकल जेक्सन का का पोस्टर लगा था और उसपोस्टर पर एक बड़ा सा फूलो का हार डला था हार थोड़ा सा बासी हो गया थाशायद कल का हो?
बहरहाल श्रद्धांजली का एक यह भी रूप देखने को मिला |
बहरहाल श्रद्धांजली का एक यह भी रूप देखने को मिला |
Tuesday, June 23, 2009
फूलो ने कहा
अभी परसों सारदा मठ बंगलौर में गये थे नंदिनी दुर्ग रोड पर स्थित ,कोई अंदाज़ भी नही लगा सकता है की अन्दर इतनी शांतता सुन्दरता होगी| बेंगलोर के ट्रेफिक ,कोलाहल को पार करते हुए जब मठ के अन्दर प्रवेश किया तो ऐसा लगा मानो स्वर्ग में ही आ गये हो |गेट के अन्दर घुसते ही हरियाली ही हरियाली बीच में पत्थरों से बना रास्ता दरअसल वो पुरी पथरीली जमीन ही थी जो सारदा मठ को कुछ ३० -३५ साल पहले दान में दे दी गई थी किंतु वहां की अध्यक्ष माताजी के अथक प्रयासों से एक सुंदर ध्यान केन्द्र, मन्दिर जिसमे (ठाकुर)रामक्रष्ण परमहंस माँ शारदा और स्वामीजी (विवेकानंदजी )की आराधना होती और उनके उपदेशो को क्रियान्वित किया जाता है अक्षरश | नियमित संध्या आरती और भजन मन को बहुत शान्ति देते है |
मन्दिर के अन्दर की शान्ति और बाहर प्रक्रति की अनुपम भेट ,एक छोटे से झील नुमा कुंड में तैरती बद्खे खिलते हुए कमल के फूल अनगिनत तरह के पीले , लाल, सफ़ेद, नीले ,नारगी और कई रंग के फूल मुस्कुरा रहे थे |साथ ही आम ,अमरूद ,अनार ,कटहल ,बेल के फल लदे हुए थे |सब कुल मिलाकर वहां का वातावरण एक अलोकिक आनन्द दे रहा था |
उस वातावरण को देखकर मेरे मन में यही भावः आए | जिन्हें मै आप सबके साथ साथ बाँट रही हूँ |
फूलो ने कहा -
सुना तमने ?
फूलो ने कहा -
मुझसे चटक रंग ले लो ?
फूलो ने कहा -
मुझसे थोडी सी मुस्कराहट ले लो ?
फूलो ने कहा -
मुझसे थोडी सी विनम्रता और नाजुकता ले लो ?
फूलो ने कहा -
मुझसे थोडासा जीवन ले लो ?
मेरी चुप्पी और अकड़ देखकर ,
आखिर वो
धीरे से फुसफुसाकर बोले
अगर कुछ भी न लो तो
तो मेरी
थोडी सी खुशबू ही ले लो ..................
मन्दिर के अन्दर की शान्ति और बाहर प्रक्रति की अनुपम भेट ,एक छोटे से झील नुमा कुंड में तैरती बद्खे खिलते हुए कमल के फूल अनगिनत तरह के पीले , लाल, सफ़ेद, नीले ,नारगी और कई रंग के फूल मुस्कुरा रहे थे |साथ ही आम ,अमरूद ,अनार ,कटहल ,बेल के फल लदे हुए थे |सब कुल मिलाकर वहां का वातावरण एक अलोकिक आनन्द दे रहा था |
उस वातावरण को देखकर मेरे मन में यही भावः आए | जिन्हें मै आप सबके साथ साथ बाँट रही हूँ |
फूलो ने कहा -
सुना तमने ?
फूलो ने कहा -
मुझसे चटक रंग ले लो ?
फूलो ने कहा -
मुझसे थोडी सी मुस्कराहट ले लो ?
फूलो ने कहा -
मुझसे थोडी सी विनम्रता और नाजुकता ले लो ?
फूलो ने कहा -
मुझसे थोडासा जीवन ले लो ?
मेरी चुप्पी और अकड़ देखकर ,
आखिर वो
धीरे से फुसफुसाकर बोले
अगर कुछ भी न लो तो
तो मेरी
थोडी सी खुशबू ही ले लो ..................
Wednesday, June 17, 2009
ब्लॉग की परिभाषा
मेरा लगातार कंप्यूटर के साथ बैठना मेरी सासु माँ को बैचेन कर देता है ,वो मुझे लगातार देखती रहती है |बहुत कुछ बोलने का प्रयत्न करती है परन्तु मेरी पिछली करतूतों के कारण वो मुझे कुछ कह नही पाती है |
दरअसल जब मै कुछ कचरा बीनने वालो बच्चो को ,गाँव से आए मजदूरों के बच्चो को अपने घर के आँगन में पढाती थी तो उन्हें शुरू में तो अच्छा लगा पर रोज रोज का यह मेरा तीन घंटे तक व्यस्त रहना उन्हें नागवार गुजरा |उन्हें लगता बेकार ही मै माथा पच्ची करती हुँ उन बच्चो के साथ ,क्योकि उनकी हार्दिक इच्छा थी की ,मै कोई स्कूल में मास्टरनी होती तो? कम से कम घर में तनखा तो आती?उन्हें मेरे ये फोकट के कामो से बडी खीज होती |
एक बार तो मै किसी काम से ऊपर के कमरे में थी तो उन्होंने बाहर से बच्चो को भगा दिया, और कह दिया तुम्हारी दीदी आज बीमार है |मै अपने समय से नीचे आई तो देखा बच्चे गायब ?|
मै बच्चो की एक दिन की भी छुट्टी नही करती ,क्योकि उनका एक दिन चार दिन तक चलता रहता और फ़िर वही से शुरू करना होता है जहा से शुभारंभ हुआ रहता है ?जैसे तैसे बच्चो को फ़िर से इकट्ठा किया |सासु माँ की आगया के विरुद्ध काम करने के लिए उनसे माफ़ी माग ली |
तब बडी मासूमियत से कहने लगी -बहू मैंने तो तुम्हारी भलाई के लिए ही उनकी छुट्टी की तुम इतनी भाग दौड़ करके घर का
काम करके थक जाती हो इसीलिए मैंने सोचा आज तुम आराम कर लो |
एक साँस की अपनी अपनी बहू के लिए सकरात्मक सोच |
मेरी सासू माँ का सपूर्ण जीवन गाँव में ही बीता ,कभी वो कोई स्कूल में पढ़ने नही गई कितु सीखने की ललक ने उन्हें रामायण गीता पढना सीखा दिया जब शादी कोकर वो ससुराल आई तो ससुरजी मास्टर थे और अपनी छोटी बहन को घर पर ही पढाते थे| बस उन्होंने भी घर का काम करते करते मन ही मन अक्षरों को जोड़ना और किताबे तो थी ही , उन्हें खाली समय में बैठकर पढना सीख लिया |आज भी अपनी ८० साल की उम्र में अनवरत रामायण सुंदर कांड का पाठ और धार्मिक पुस्तके पढ़ती रहती है हांलाकि उनकी गति काफी धीमी होती है पर उन्होंने पढ़ना नही छोड़ा |
जब से मुझे कंप्यूटर पर लिखते पढ़ते देखती है .साथ ही गाना सुनते देखती है उन्हें लगता है मैंने फ़िर से कोई नई माथा पच्ची का रोग लगा लिया है ,अब ब्लॉग पढो तो देर तो लगती ही है ?प्याज के छिलकों की तरह एक ब्लॉग पढो और उस पर टिप्पणी दो तो दूसरा ब्लॉग आकर्षित कर लेता है और ये सिलसिला चलता ही रहता है बशर्ते बिजली देवी की क्रपा हो तब तक ?
वो हमेशा पढ़ते हुए मेरे मनोभावों को देखती रहती |जब मै कागज पर लिखती तो उनको लगता मै क्या पन्ने भरती रहती हू ?कभी कोई अख़बार या पत्रिका में (भूले भटके )कविता या लेख छपते ;तो उनका ये प्रश्न अवश्य होता -कुछ दक्षिणा वक्षिना भी देते है या ऐसे ही छपते रहते है ?तुम इतनी मेहनत करती हो ?
और मुझे ये लगने लगा है की अभी ये मुझसे कहेगी- मुझे भी कंप्यूटर पर पढना सिखा दो ?
आज भी उनकी हर चीज सीखने की प्रबल इच्छा रहती है !
मेरे पतिदेव रामदेव बाबा का योग टी वि पर देखकर करते है तो वो भी सोफे पर बैठे बैठे प्राणायाम करना सीख गई है वैसे वो ख़ुद ही इतनी करिशील और स्वस्थ है की उन्हें कोई योग की जरुरत नही है |
ब्लॉग पढ़ने की बात जब शाम को अपने बहु बेटे से चर्चा करती तो ब्लॉग शब्द का बार बार प्रयोग होता तब वे सोचती पता नही?ये ब्लॉग क्या चीज है ?मै भी पहले जानती नही थी ,वो तो भला हो मेरी बहु का जिसने ब्लॉग से मेरा परिचय करवाया (हालाँकि अभी भी मुझे कोई तकनिकी जानकारी नही है सिर्फ़ ब्लॉग पढना और टिप्पणी करना ही आता है )वरना मै भी सोचती ही रहती की ब्लॉग क्या बला है ?
आज तो उन्होंने मुझसे कह ही दिया- अच्छा बताओ ?तुम क्या पढ़ती हो?लिखती हो ?
मैंने भी सोचा जब मेरी बहू ने मुझे प्रशिक्षित किया है ,तो मेरा भी फर्ज है उन्हें बताऊ ?
तब मैंने अपनी एक कविता निकाली और कहा पढिये |
ये कविता ?उन्होंने पढ़कर कहा -ठीक ही है| और नाक पर आए चश्मे को थोड़ा खस्काकर कहा -ये टिप्पणी का क्या मतलब होता है?
मैंने कहा-कविता या लेख पढ़कर अपनी राय दीजिये |मैंने उन्हें सारी (सिर्फ़ चार या पॉँच )टिप्पणी जिसमे दो का तो मैंने ख़ुद ही जवाब दिया था पढ़कर सुना दी -जिसमे लिखा था -"बहुत खूब ""अति सुंदर ""मार्मिक कविता "आदि आदि |
तो वे तपाक से बोली -अरे ये तो कवि सम्मलेन के जैसे ही हुआ न?
कविता समझ में आवे न आवे ?अच्छी लगे न लगे ?पर मंच पर बैठे कवि "कविता "पढ़ने वाले कवि की कविता सुने या न सुने ?परन्तु कविता की हर पंक्ति के बाद वाह - वाह जरुर कहते है |
ऐसे ही तो तुम्हारे ब्लॉग पर भी होता है? और क्या?
ये कोनसी बडी बात है ?
इसे ही ब्लॉग कहते है क्या?
दरअसल जब मै कुछ कचरा बीनने वालो बच्चो को ,गाँव से आए मजदूरों के बच्चो को अपने घर के आँगन में पढाती थी तो उन्हें शुरू में तो अच्छा लगा पर रोज रोज का यह मेरा तीन घंटे तक व्यस्त रहना उन्हें नागवार गुजरा |उन्हें लगता बेकार ही मै माथा पच्ची करती हुँ उन बच्चो के साथ ,क्योकि उनकी हार्दिक इच्छा थी की ,मै कोई स्कूल में मास्टरनी होती तो? कम से कम घर में तनखा तो आती?उन्हें मेरे ये फोकट के कामो से बडी खीज होती |
एक बार तो मै किसी काम से ऊपर के कमरे में थी तो उन्होंने बाहर से बच्चो को भगा दिया, और कह दिया तुम्हारी दीदी आज बीमार है |मै अपने समय से नीचे आई तो देखा बच्चे गायब ?|
मै बच्चो की एक दिन की भी छुट्टी नही करती ,क्योकि उनका एक दिन चार दिन तक चलता रहता और फ़िर वही से शुरू करना होता है जहा से शुभारंभ हुआ रहता है ?जैसे तैसे बच्चो को फ़िर से इकट्ठा किया |सासु माँ की आगया के विरुद्ध काम करने के लिए उनसे माफ़ी माग ली |
तब बडी मासूमियत से कहने लगी -बहू मैंने तो तुम्हारी भलाई के लिए ही उनकी छुट्टी की तुम इतनी भाग दौड़ करके घर का
काम करके थक जाती हो इसीलिए मैंने सोचा आज तुम आराम कर लो |
एक साँस की अपनी अपनी बहू के लिए सकरात्मक सोच |
मेरी सासू माँ का सपूर्ण जीवन गाँव में ही बीता ,कभी वो कोई स्कूल में पढ़ने नही गई कितु सीखने की ललक ने उन्हें रामायण गीता पढना सीखा दिया जब शादी कोकर वो ससुराल आई तो ससुरजी मास्टर थे और अपनी छोटी बहन को घर पर ही पढाते थे| बस उन्होंने भी घर का काम करते करते मन ही मन अक्षरों को जोड़ना और किताबे तो थी ही , उन्हें खाली समय में बैठकर पढना सीख लिया |आज भी अपनी ८० साल की उम्र में अनवरत रामायण सुंदर कांड का पाठ और धार्मिक पुस्तके पढ़ती रहती है हांलाकि उनकी गति काफी धीमी होती है पर उन्होंने पढ़ना नही छोड़ा |
जब से मुझे कंप्यूटर पर लिखते पढ़ते देखती है .साथ ही गाना सुनते देखती है उन्हें लगता है मैंने फ़िर से कोई नई माथा पच्ची का रोग लगा लिया है ,अब ब्लॉग पढो तो देर तो लगती ही है ?प्याज के छिलकों की तरह एक ब्लॉग पढो और उस पर टिप्पणी दो तो दूसरा ब्लॉग आकर्षित कर लेता है और ये सिलसिला चलता ही रहता है बशर्ते बिजली देवी की क्रपा हो तब तक ?
वो हमेशा पढ़ते हुए मेरे मनोभावों को देखती रहती |जब मै कागज पर लिखती तो उनको लगता मै क्या पन्ने भरती रहती हू ?कभी कोई अख़बार या पत्रिका में (भूले भटके )कविता या लेख छपते ;तो उनका ये प्रश्न अवश्य होता -कुछ दक्षिणा वक्षिना भी देते है या ऐसे ही छपते रहते है ?तुम इतनी मेहनत करती हो ?
और मुझे ये लगने लगा है की अभी ये मुझसे कहेगी- मुझे भी कंप्यूटर पर पढना सिखा दो ?
आज भी उनकी हर चीज सीखने की प्रबल इच्छा रहती है !
मेरे पतिदेव रामदेव बाबा का योग टी वि पर देखकर करते है तो वो भी सोफे पर बैठे बैठे प्राणायाम करना सीख गई है वैसे वो ख़ुद ही इतनी करिशील और स्वस्थ है की उन्हें कोई योग की जरुरत नही है |
ब्लॉग पढ़ने की बात जब शाम को अपने बहु बेटे से चर्चा करती तो ब्लॉग शब्द का बार बार प्रयोग होता तब वे सोचती पता नही?ये ब्लॉग क्या चीज है ?मै भी पहले जानती नही थी ,वो तो भला हो मेरी बहु का जिसने ब्लॉग से मेरा परिचय करवाया (हालाँकि अभी भी मुझे कोई तकनिकी जानकारी नही है सिर्फ़ ब्लॉग पढना और टिप्पणी करना ही आता है )वरना मै भी सोचती ही रहती की ब्लॉग क्या बला है ?
आज तो उन्होंने मुझसे कह ही दिया- अच्छा बताओ ?तुम क्या पढ़ती हो?लिखती हो ?
मैंने भी सोचा जब मेरी बहू ने मुझे प्रशिक्षित किया है ,तो मेरा भी फर्ज है उन्हें बताऊ ?
तब मैंने अपनी एक कविता निकाली और कहा पढिये |
ये कविता ?उन्होंने पढ़कर कहा -ठीक ही है| और नाक पर आए चश्मे को थोड़ा खस्काकर कहा -ये टिप्पणी का क्या मतलब होता है?
मैंने कहा-कविता या लेख पढ़कर अपनी राय दीजिये |मैंने उन्हें सारी (सिर्फ़ चार या पॉँच )टिप्पणी जिसमे दो का तो मैंने ख़ुद ही जवाब दिया था पढ़कर सुना दी -जिसमे लिखा था -"बहुत खूब ""अति सुंदर ""मार्मिक कविता "आदि आदि |
तो वे तपाक से बोली -अरे ये तो कवि सम्मलेन के जैसे ही हुआ न?
कविता समझ में आवे न आवे ?अच्छी लगे न लगे ?पर मंच पर बैठे कवि "कविता "पढ़ने वाले कवि की कविता सुने या न सुने ?परन्तु कविता की हर पंक्ति के बाद वाह - वाह जरुर कहते है |
ऐसे ही तो तुम्हारे ब्लॉग पर भी होता है? और क्या?
ये कोनसी बडी बात है ?
इसे ही ब्लॉग कहते है क्या?
Sunday, June 14, 2009
सम -द्रष्टि
ओरो के दिलो के काले पन
को अनदेखा करू
ऐसी अन्तर -द्रष्टि कहा से लाऊ?
अपने मन को उजला करू
ऐसी स्रष्टि कहा से लाऊ ?
अनजाने से सुख की चाह में
परिचित सुख से मुख मोड़ कर
अपने आप ही दुःख ओढ़ लिया |
सुख और दुःख के
प्रसंगो में
सम द्रष्टि
कहा से लाऊ ?
को अनदेखा करू
ऐसी अन्तर -द्रष्टि कहा से लाऊ?
अपने मन को उजला करू
ऐसी स्रष्टि कहा से लाऊ ?
अनजाने से सुख की चाह में
परिचित सुख से मुख मोड़ कर
अपने आप ही दुःख ओढ़ लिया |
सुख और दुःख के
प्रसंगो में
सम द्रष्टि
कहा से लाऊ ?
Wednesday, June 10, 2009
"आओ थोड़ा मुस्कुरा ले "
प्रश्नों का सिलसिला मन मस्तिषक में चलता ही रहता है ,कभी सामाजिक व्यवस्था पर ,कभी घरेलू व्यवस्थाओ पर ,कभी देश की व्यवस्थाओ पर और भी हमसे जुड़े ऐसे कई ऐसे क्षेत्र है जो प्रश्न बनकर सामने आते है |
कई ऐसे जुमले होते है जो सोचने पर मजबूर कर देते है की ये जुमला उसने मेरे बारे में क्यो कहा?
आज मै जुमला तो नही, पर एक सरकारी लाइन पर सोच में पड़ गई| दरअसल आज एक साक्षात्कार पढ़ रही थी उनका जो iयुवा है और अभी अभी चुनकर संसद में आए है !
उन्होंने कहा -महिलाओ के उत्थान के लिए प्रयत्न करेगे |
मैतब से सोच में हुँ महिलाओ के उत्थान का क्या अर्थ है ?
पुरुषों के उत्थान क्यो नही ?
अगर आप कुछ अर्थ बता सके तो आभारी रहूगी |
साथ ही
आओ थोड़ा मुसुकुरा ले
भूल जाओ राजनीती
भूल जाओ कूटनीति
जब कलिया खिली है
तो आओ
हम भी थोड़ा मुस्कुरा ले |
बंद कमरों से बाहर निकलकर
आओ थोड़ा हवा से बतिया ले
पडोसी का थोड़ा सा किवाड़
खटखटा ले
आओ थोड़ा सा मुस्कुरा ले |
बरसो बीत गये
मल्हार गाए हुए ,
झुला झूले हुए
इतने भी तने न रहो
आओ थोड़ा सा मुस्कुरा ले |
कांटा छुरी छोड़कर
जमीन पर बैठकर
पावो को मोड़कर
थोड़ा सा झुक जावे
अन्न को हाथो का स्पर्श देकर
उसे अम्रत बना ले |
आओ थोड़ा सा मुस्कुरा ले |
कालिंदी का किनारा हो
व्रन्दावन सा नजारा हो
अपनों का सहारा हो
फ़िर देर किस बात की
कान्हा के गीत गुनगुना ले
आओ थोड़ा मुस्कुरा ले|
कई ऐसे जुमले होते है जो सोचने पर मजबूर कर देते है की ये जुमला उसने मेरे बारे में क्यो कहा?
आज मै जुमला तो नही, पर एक सरकारी लाइन पर सोच में पड़ गई| दरअसल आज एक साक्षात्कार पढ़ रही थी उनका जो iयुवा है और अभी अभी चुनकर संसद में आए है !
उन्होंने कहा -महिलाओ के उत्थान के लिए प्रयत्न करेगे |
मैतब से सोच में हुँ महिलाओ के उत्थान का क्या अर्थ है ?
पुरुषों के उत्थान क्यो नही ?
अगर आप कुछ अर्थ बता सके तो आभारी रहूगी |
साथ ही
आओ थोड़ा मुसुकुरा ले
भूल जाओ राजनीती
भूल जाओ कूटनीति
जब कलिया खिली है
तो आओ
हम भी थोड़ा मुस्कुरा ले |
बंद कमरों से बाहर निकलकर
आओ थोड़ा हवा से बतिया ले
पडोसी का थोड़ा सा किवाड़
खटखटा ले
आओ थोड़ा सा मुस्कुरा ले |
बरसो बीत गये
मल्हार गाए हुए ,
झुला झूले हुए
इतने भी तने न रहो
आओ थोड़ा सा मुस्कुरा ले |
कांटा छुरी छोड़कर
जमीन पर बैठकर
पावो को मोड़कर
थोड़ा सा झुक जावे
अन्न को हाथो का स्पर्श देकर
उसे अम्रत बना ले |
आओ थोड़ा सा मुस्कुरा ले |
कालिंदी का किनारा हो
व्रन्दावन सा नजारा हो
अपनों का सहारा हो
फ़िर देर किस बात की
कान्हा के गीत गुनगुना ले
आओ थोड़ा मुस्कुरा ले|
Saturday, June 06, 2009
आँखों की नमी

सिर्फ़ इसलिए की
मेरी माँ को मै
उनकी आंखे लौटा संकू
जबकि
तुम जानती थी
वो आंखे मिलने पर
चली जावेगी
तुम फ़िर
अपना घर समझ कर
वापिस आ गई
तब माँ
अपना बेटा तुम्हे
सोपकर
आँखों में नमी लिए चली गई
आज तुम फ़िर
अपना घर छोड़कर
चली गई हो
अपने बेटे के पास
अपना दिल बदलवाने
मै इंतजार में हूँ
क्या?
तुम नया दिल लेकर
मेरी माँ की
आँखों की नमी
सुखा पाओगी ?
(इमेज सोर्स - ग्लास्शेअर्ट्स.ओआरजी)
Thursday, June 04, 2009
प्यास

अँधेरी रात का साथ है
तो उजाले की तलब है
सर्द रात का साथ है तो
धूप की तलब है
अपने साथ है
तो सपने की तलब है
सपने साथ है
तो अपनों की तलब है
रास्ते साथ है
तो मंजिल की तलब है
मंजिल है साथ
तो रास्ते की तलब है
जिन्दगी साथ है तो
मौत की तलब है
मौत की दस्तक है
तो जिन्दगी की तलब है ................................
तो उजाले की तलब है
सर्द रात का साथ है तो
धूप की तलब है
अपने साथ है
तो सपने की तलब है
सपने साथ है
तो अपनों की तलब है
रास्ते साथ है
तो मंजिल की तलब है
मंजिल है साथ
तो रास्ते की तलब है
जिन्दगी साथ है तो
मौत की तलब है
मौत की दस्तक है
तो जिन्दगी की तलब है ................................
(इमेज सोर्स - क्सेलासवर्ल्ड)
Wednesday, June 03, 2009
अपनी बात
मन में कई विचार आते ही ,पर कई बार मै उनको apasमें जोड़ नही पाती , और वे विचार दिमाग से भी हटना ही नही चाहते
न ही कविता बनती ही नही कोई लेख बस दो लाइन पर ही अटक जाती हुँ |
सोचा आप सबसे ये दो लाइने बाँट लू ;
शातिरों की बस्ती में ,बस गये हम|
जैसे मुखोटो के बाज़ार में आ गये हम
न ही कविता बनती ही नही कोई लेख बस दो लाइन पर ही अटक जाती हुँ |
सोचा आप सबसे ये दो लाइने बाँट लू ;
शातिरों की बस्ती में ,बस गये हम|
जैसे मुखोटो के बाज़ार में आ गये हम