Thursday, September 10, 2009

खिलते हुए कमल
















नानी ने कहा था -मेरी माँ को -बेटी !चूल्हे में दो लकडिया और छोटे छोटे लकडी के टुकड़े साथ जलाओ तब चूल्हा अच्छे से जलता है |और उस जलती हुई लकडियो से जो कोयले निकलते है उसे मिटटी की अँगीठी में डाल दो तो उस पर सब्जी पक जायगी और लकडी भी व्यर्थ ही नही जलेगी |

मेरी माँ ने मुझसे कहा -बेटी! लोहे की अँगीठी में बहुत सारे कोयले एक साथ नही जलाना , खाना बनाते बनाते सारी तैयारी पहले करके एक -एक कोयला जलती हुई अंगीठी में डालती रहना |व्यर्थ ही कोयले राख नही करना |

मैंने अपनी बेटी से कहा - बेटी ! गैस केचूल्हे को जलाते समय पहले चूल्हे पर पतीली रखना फ़िर गैस जलाना जिससे व्यर्थ ही गैस नही जलेगी |

मेरी बेटी ने अपनी बेटी को कहा -बेटी! कभी कभी तुम भी रसोई में देख लिया करो खाना कैसे ?बनता है |

17 comments:

  1. मैने अपने बेटे को कहा खाना बनाना सीख लो वर्ना या तो होटल जाना पड़ेगा या भूखे सोने की आदत डालनी पड़ेगी

    ReplyDelete
  2. ye hai samay parivartan......meri maa ne bhi kaha - bahut hi badhiyaa

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर बात कही आप ने....
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. yaha to poorwajo se lekar gen next ka charcha hai... badiya hai

    ReplyDelete
  5. वाह बहुत बढ़िया लगा! बिल्कुल सच्चाई कहा है आपने!

    ReplyDelete
  6. वो अपनी बेटी को बतायेगी कि पहले खाना रसोई में बना करता था..(माईक्रोवेव में डब्बा गरम करके नहीं)


    -बेहतरीन पीढ़ी दर पीढ़ी सलाहें..

    ReplyDelete
  7. YE SAMAY KA BADLAAV HAI .... AAPNE BAAKHOOBI USKA ARTH SAMJHA DIYA .... BAHOOT KHOOB

    ReplyDelete
  8. पीढी दर पीढी होने वाले बहुत परिवर्तनों के साथ खाना पकाने के बदलते तरीके को रोचक प्रस्तुति से पेश करती कविता के लिए बहुत आभार ..!

    ReplyDelete
  9. bahut hi rochak prastutee
    aane wali peedhee ko 'koyla', 'chulhaa', 'angeethee' ye tamaam shabd ajnabi-se mehsoos honge , is mein koi shak nahi

    ---MUFLIS---

    ReplyDelete
  10. इतने कम शब्दों में तमाम पीढ़ियों का सच...

    आप ही कर सकती हैं ये चमत्कार!

    ReplyDelete
  11. कम शब्दों में और सटीक तरीके से आपने पूरी परम्परा ही बयान कर दी. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.

    ReplyDelete
  12. बिलकुल सच्ची बात है समय कैसे बदल जाता है अब ना दिल करे तो बेटियाँ फोन कर के बना बनाया ही मंगवा ले ती हैं सब कुछ बदल गया है सुन्दर पोस्ट आभार्

    ReplyDelete
  13. लाजवाब पोस्ट. आभार. हमें बहुत सारी बातें याद आ गयीं. हम भूसा लेने जाया करते थे और उससे गरम पानी के लिए चूल्हा जलता था. फिर पत्थर के कोयले से बने लड्डू लेने लगे थे. एक दिन धुंवा रहित चूल्हा भी ले आये. हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं

    ReplyDelete
  14. एक पीढी से दूसरी तक का सफ़र...
    आप ने इस सच को कुछ पंक्तियों में बड़े ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है.
    आज बच्चे कहते हैं -instant फ़ूड है न..फिर क्या जरुरत है यह सब सीखने की...

    ReplyDelete
  15. pidi dar pidi ka antar bakhoobi dikha diya aapne/ pata nahi is 21 vi sadi ke baad aane vaali sadiyo me kya se kya badal jayega/

    ReplyDelete
  16. काल का पहिया ...

    ReplyDelete