नानी ने कहा था -मेरी माँ को -बेटी !चूल्हे में दो लकडिया और छोटे छोटे लकडी के टुकड़े साथ जलाओ तब चूल्हा अच्छे से जलता है |और उस जलती हुई लकडियो से जो कोयले निकलते है उसे मिटटी की अँगीठी में डाल दो तो उस पर सब्जी पक जायगी और लकडी भी व्यर्थ ही नही जलेगी |
मेरी माँ ने मुझसे कहा -बेटी! लोहे की अँगीठी में बहुत सारे कोयले एक साथ नही जलाना , खाना बनाते बनाते सारी तैयारी पहले करके एक -एक कोयला जलती हुई अंगीठी में डालती रहना |व्यर्थ ही कोयले राख नही करना |
मैंने अपनी बेटी से कहा - बेटी ! गैस केचूल्हे को जलाते समय पहले चूल्हे पर पतीली रखना फ़िर गैस जलाना जिससे व्यर्थ ही गैस नही जलेगी |
मेरी बेटी ने अपनी बेटी को कहा -बेटी! कभी कभी तुम भी रसोई में देख लिया करो खाना कैसे ?बनता है |
मैने अपने बेटे को कहा खाना बनाना सीख लो वर्ना या तो होटल जाना पड़ेगा या भूखे सोने की आदत डालनी पड़ेगी
ReplyDeleteye hai samay parivartan......meri maa ne bhi kaha - bahut hi badhiyaa
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही आप ने....
ReplyDeleteधन्यवाद
yaha to poorwajo se lekar gen next ka charcha hai... badiya hai
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया लगा! बिल्कुल सच्चाई कहा है आपने!
ReplyDeleteवो अपनी बेटी को बतायेगी कि पहले खाना रसोई में बना करता था..(माईक्रोवेव में डब्बा गरम करके नहीं)
ReplyDelete-बेहतरीन पीढ़ी दर पीढ़ी सलाहें..
YE SAMAY KA BADLAAV HAI .... AAPNE BAAKHOOBI USKA ARTH SAMJHA DIYA .... BAHOOT KHOOB
ReplyDeleteपीढी दर पीढी होने वाले बहुत परिवर्तनों के साथ खाना पकाने के बदलते तरीके को रोचक प्रस्तुति से पेश करती कविता के लिए बहुत आभार ..!
ReplyDeletebahut hi rochak prastutee
ReplyDeleteaane wali peedhee ko 'koyla', 'chulhaa', 'angeethee' ye tamaam shabd ajnabi-se mehsoos honge , is mein koi shak nahi
---MUFLIS---
इतने कम शब्दों में तमाम पीढ़ियों का सच...
ReplyDeleteआप ही कर सकती हैं ये चमत्कार!
कम शब्दों में और सटीक तरीके से आपने पूरी परम्परा ही बयान कर दी. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteबिलकुल सच्ची बात है समय कैसे बदल जाता है अब ना दिल करे तो बेटियाँ फोन कर के बना बनाया ही मंगवा ले ती हैं सब कुछ बदल गया है सुन्दर पोस्ट आभार्
ReplyDeleteलाजवाब पोस्ट. आभार. हमें बहुत सारी बातें याद आ गयीं. हम भूसा लेने जाया करते थे और उससे गरम पानी के लिए चूल्हा जलता था. फिर पत्थर के कोयले से बने लड्डू लेने लगे थे. एक दिन धुंवा रहित चूल्हा भी ले आये. हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए हैं
ReplyDeleteएक पीढी से दूसरी तक का सफ़र...
ReplyDeleteआप ने इस सच को कुछ पंक्तियों में बड़े ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है.
आज बच्चे कहते हैं -instant फ़ूड है न..फिर क्या जरुरत है यह सब सीखने की...
pidi dar pidi ka antar bakhoobi dikha diya aapne/ pata nahi is 21 vi sadi ke baad aane vaali sadiyo me kya se kya badal jayega/
ReplyDeleteAlpana ji ki baat se sahmat hoon.
ReplyDeleteकाल का पहिया ...
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