थोडा सा बुखार ,कभी सर दर्द ,कभी हाथ पांवो का दर्द ,घुटने का दर्द तो लगा ही रहता है ,और मै इन्ही दर्दो को लेकर हमेशा दुखी होती रहती हूँ |मेरी एक सहेली तो बस इसलिए दुखी होती रहती है कि उसकी तबियत के हाल घर में कोई पूछता ही नहीं ?और बेवजह उदास रहने लगी है |
"इनको इतनी तकलीफ है तो ये घर में क्यों नहीं रहती घूमने का ज्यादा ही शौक है "ये वाक्य हमारे एक सहयात्री ने एक महिला ने भोजन प्रसाद (आश्रममें यही कहते है )लेने के पहले करीब १० से १२ टेबलेट ली |उनको देखकर कहा |वो महिला अपनी समवयस्क महिलाओ के साथ दुसरे टेबिल कुर्सी पर थी जो थोड़ी दूर थी ,इसलिए वो सुन नही पाई |
कुल सात महिलाये ६५ +थी उम्र में और सभी सभ्रांत लग रही थी |
मुझे बड़ा अटपटा सा लगा अपने सहयात्री का इस तरह का वक्तव्य एक महिला के लिए !
भोजन शाला में बातचीत नहीं की जा सकती थी अत:मै चुप रही |
पिछले दिनों हम उतराखंड में लौह्घाट से ९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मायावती में रामकृष्ण मठ द्वारा संचालित अद्वैत आश्रम गये थे |
साँझ को हम लोगो की उन्ही महिलाओ से भेंट हुई उन्ही महिला ने रात्रि भोजन के पहले इंसुलिन लिया साथ में मेरी मित्र ने आश्चर्य प्रकट किया उनके इंसुलिन लेने पर |उन्होंने तपाक से जवाब दिया- ये मुझे फिट रखते है मेरे कार्य में कोई बाधा नहीं डालते और मै दिन में १२ घंटे अच्छी तरह से काम कर सकती हूँ अगर मै नियमित दवाई लेती हूँ तो ही ?
मेरी मित्र और हम सब एक दूसरे का मुहं ताकने लगे और फिर परिचय जाना \दरअसल वो सब रिटायर्ड डॉक्टर थी और कोलकाता से यहाँ आई थी |आश्रम द्वारा संचालित अस्पताल में हर साल शिविर लगाये जाते है जिसमे महिला रोग निदान ,शिशु रोग निदान ,दांतों की चिकित्सा आदि आदि |जिसके लिए सेवाभावी सभी डाक्टर इतनी दूर से पहाड़ो पर आती है और निस्वार्थ सेवा तन मन और धन से करती है |जो की आसपास की पहाड़ी महिलाओ के लिए वरदान साबित हुई है |
सभी डाक्टर इतनी विनम्र और सह्रदय थी की उन्हें मिलकर उनका इस उम्र में भी ये जज्बा देखकर श्रधा से हमसभी नतमस्तक हो गये |
कुछ दवाइयां कितनी महत्वपूर्ण होती है हम अपने आधे अधूरे ज्ञान से उसको समझ नही पाते ?
मायावती की साइड का लिंक है |
मायावती की अधिक जानकारी यहाँ से प्राप्त हो सकती है |
http://www.belurmath.org/centres/display_centre.php?centre_id=MYV
भोजन शाला
अच्छी जानकारी..पढ़ कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteAlochana karne me shakti vyarth karne ki bajay log kuch sarthak karne ka prayas karen to samaj me kitna bada parivartan aa sakta hai.
ReplyDeleteवजह जाने बिना राय कायम करना कितना शर्मनाक है. सन्ध्या जी ठीक ही कह रही हैं, आलोचना में वक्त जाया करने से बेहतर है सार्थक प्रयास. सुन्दर पोस्ट.
ReplyDeleteसही दिशा दिखलाती पोस्ट..आभार
ReplyDeleteजानना अच्छा लगा..आभार जानकारी का.
ReplyDeleteभोभना जी
ReplyDeleteआपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी
यह भी जीवन है.
आपको बधाई.
सही जानकारी दी है आपने ...
ReplyDeleteशुगर के मरीज अपने पिता को भी इन दवाईओं के बल पर आखिरी दम तक जबदस्त उर्जा के साथ काम करते देखा है ...
आभार ..!
shobhana jee pata nahee kyo bina jane kataksh karana doosare ke liye manchahee ray bana baithana ek sankramak rog kee tarah faila hai.........birle hee achoote hai ise bimaree se...........
ReplyDeleteek sarthak post ke liye aabhar...........
अच्छी जानकारी लगी , वृद्धावस्था में बहुत कम लोगों में यह ज़ज्बा होता है कि वे अपनी समस्याओं के साथ किसी और की मदद का हाथ आगे बढ़ा पायें !शुभकामनायें इन लोगों को !
ReplyDeleteअभी लोग जानते ही कहाँ है कि महिलाएं कितना काम करती हैं। वे यह नहीं देख पाते कि बीमारी में भी वे काम में जुटी हैं। वैसे हम सबकी आदत है कि बिना विचारे ही कमेन्ट कर देते हैं।
ReplyDeleteshobhana jee ahobhagy........badee acchee khabar hai.....aap kab aarahee hai..?
ReplyDeletemeree ticket UK kee 24 kee hai......
do mahine ka pgm hai........
mere liye kuch bhee kaam ho to avashy bataaiyega .
सच कहा लगन हो और सही जज्बा तो सही राह भी मिल ही जाती है ..वर्ना छोटी छोटी बातों को बढ़ा मान कर निराश हो जाते हैं लोग..बहुत प्रेरक प्रसंग.
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ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़ कर आपका लिख ... सच में सकारात्मक है ...
ReplyDeleteइस जानकारी के लए आपका बहुत बहुत आभार।
ReplyDelete................
पॉल बाबा का रहस्य।
आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.
shobhnaaji, insan umra se buddha nahi hota hai, vicharo se bevqt buddha ho jata hai,mayavati ki jaankari ke liye dhanyavad,,,,kamna mumbai
ReplyDeleteबड़ा अच्छा लगा पढ़कर। कर्म करते रहना है।
ReplyDeleteunki soch to sakaratmak hai hi...saath hi aapne uska yahan zikr kiya...iske liye aapki sakaratmakta ko naman !
ReplyDeleteisse kuch prerana to milegi un logo ko jo hr cheej ko apne tarike se sochte hai aur jyadatar vah sahi nahi hota.
ReplyDeletedhanyavad.
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ReplyDeleteआदरणीय सोभना जी,
ReplyDeleteआप के विचार पढ़े बहुत अच्छा लगा |
कई वाक्यों में तो रोंगटे खड़े हो जाते है | आप के सब्दों मी जो सार्थकता है, और जो सच्चाई है तो मन आप को पढने को बार बार करता है | मैंने जब अपना ब्लॉग बनाया था तो अनायास ही आपके ब्लॉग को देखने का मोका मिला और मैंने उसे खुद मी सामिल कर दिया |अब जब कभी भी आप को पढने का मोका मिलता है आपको पढता हूँ और मन तृप्त हो जाता है |
इस उम्र में भी वे महिलाएं इस सेवा के लिए एक जुट और शारीरिक तकलीफों के होते हुए भी कार्यरत हैं,जानकार सुखद आश्चर्य हुआ.डॉक्टर होने के अपने सामाजिक कर्तव्य का निस्वार्थ निर्वाह करती हुईं इन महिलाओं का उदहारण प्रेरक है.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी,
ReplyDeleteआभार...
mom yeh padhkar bahut accha laga. humari soch hi hamare aagey ke raaste tay karti hai aur yahi vajah hai ki jis cheez ka koi auchitya nahin hai usey hum dukh bana letey hai kewal hamari nakaaratmak soch ki wajah se
ReplyDeleteसेवा करने के लिए एन. जी. ओ. बनाने की जरूरत नहीं.उन महिला डाक्टरों की तरह भी अपनी सामर्थ्यानुसार सेवा की जा सकती है.
ReplyDeleteDidi ji! sach mein uttarakhand mein pahadi ilako mein swasthya ke samabandh mein jaagrukta kee badi kami hai... Sharahon ke nikat ke gaon mein to thoda bahut theek hai lekin sudoor pahaadon mein bure haal hai...
ReplyDeleteBahut achha laga aapki es saarthak post se.... nischit hi iska laag milega...
शानदार पोस्ट बड़ा अच्छा लगा पढ़कर।
ReplyDeleteसही दिशा दिखलाती पोस्ट शानदार पोस्ट
ReplyDeleteशोभना जी
ReplyDeleteआपके मायावती प्रवास का संस्मरण पढकर मैंने मायावती के लोगों से ईमेल द्वारा चिठ्ठी-पत्री की और हमारे कंपनी के कुछ दवाइयां निशुल्क मायावती भिजवाई.
मैंने अपनी ड्यूटी में से कुछ काम किया लेकिन जो खुशी और आत्म संतुष्टि प्राप्त हुयी उसका कोई सानी नहीं है.
इस पुनीत कार्य का रास्ता आपने दिखाया, बहुत बहुत धन्यवाद.
सादर
मनोज खत्री