Monday, July 21, 2008

रिश्ते

तार तार रिश्ती को आजमहसूस किया|
मेने बार बार सिने की कोशिश मै
अपने हाथो में सुई भी चुभोई|
किनतु रिशतों की चादर और जर्जर होती गई
क्या उसे फेंकू ?या संदूक मै रखू ?
सोचती रही भावना शून्य क्या सच है ?
कितनी ही बार का भावना शून्य व्यवहार
मानस पटल पर अंकित हो गया
चादर तार तार ज्रूर थी पर उसके रंग गहरे थे |
और उन रंगो ने मुझे फ़िर
भावना की गर्माहट दी
और मै पुनः उन रंगों को पुकारने लगी |
उन पर होने लगी फ़िर से आकर्षित
उस चादर को फ़िर से सहेजा ,
और उनमे खुश्बू भी ढूंढने लगी
और उस खुशबू ने मुझे
ममता का अहसास दे दिया
और मेने चादर को फ़िर सहलाकर
सहेजकर रख दिया|
रिशतों की महक को महकने के लिए |

7 comments:

  1. कल 30/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति |
    आशा

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  3. सुन्दर रचना ..रिश्तों के प्रति सम्मोहन जगाती हुई

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  4. खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  5. और मै पुनः उन रंगों को पुकारने लगी |
    उन पर होने लगी फ़िर से आकर्षित
    उस चादर को फ़िर से सहेजा ,
    और उनमे खुश्बू भी ढूंढने लगी
    और उस खुशबू ने मुझे
    ममता का अहसास दे दिया
    और मेने चादर को फ़िर सहलाकर
    सहेजकर रख दिया|
    रिशतों की महक को महकने के लिए |
    rishton ki mehak bani rahe iske liye jaane kitni baar mann ko manana padta hai.

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  6. http://neelamkahsaas.blogspot.com/2011/09/blog-post.html

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  7. खूबसूरत अभिव्यक्ति

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