Tuesday, May 05, 2009

दुःख सुख




मैंने अपने दुःख को
सार्वजनिक करके ,
और दुःख मोल ले लिया
मैंने अपने सुख को भी ,
सार्वजनिक करके
और दुःख ही मोल ले लिया
जब तक अपना दुःख न ,बताया था
बहुत सुखी थी
जब तक अपना सुख न ,बताया था
बहुत दुखी थी
मुझे मालूम न था ?
मेरे दुःख को बताने से ,
तुम इतने सुखी हो जाओगे
मै कबसे तुम्हे अपना दुःख बता देती
मुझे ये भी मालूम न था ?
मेरे सुख से तुम इतने दुखी हो जाओगे
मै खामोश ही रहती ....
क्योकि मै तुम्हे दुखी नही देख सकती -------
(इमेज सोर्स - एह्जोह्न्सों .कॉम)

7 comments:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए!
    मुझे आपकी ये कविता बहुत अच्छी लगी! हर किसीके जीवन में दुःख तो आता ही है और उसे किसे और के साथ बाँटने से मन थोड़ा हल्का हो जाता है!

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  2. बहुत गहरी भावना.....यही सच है कि सुखी देखना लोग बर्दाश्त नहीं करते.......

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  3. वाह जी वाह बहुत ही खूब लिखा है

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  4. बहुत गहरी बात कही आपने. पर सत्य यही है. आदमी अपने दुख से इतना दुखी नही होता जितना दूसरे के सुख से दुखी हो जाता है. बिल्कुल यथार्थवादी कविता. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. शोभना जी!
    दुनिया का रंग-ढंग ही निराला है।
    दूसरे का पड्डा मरना चाहिए चाहे
    अपनी भैस ही क्यों न मर जाये।
    कविता पढ़ कर मन प्रफुल्लित हो गया।

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  6. sukh-dukh ke bhav sundar hai .man ko badi sahjata se sparsh karti hui gujarti hai .

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