Friday, July 24, 2009

निमित्त

मै ही सीता हूँ
जिसे
अपनी मर्यादा को
बचाने केलिए
वन भेज दिया

मैही शूर्पनखा हूँ
जिसे तुमने
प्रणय निवेदन करने पर
क्षत विक्षत कर दिया

मै ही द्रोपदी हुँ
जिसे तुमने
अंधे के दरबार में
दाव पर लगा दिया

कभी तुमने मर्यादा का
अहंकार किया
कभी तुमने
अपने पुरूष होने का
अहंकार किया
कभी तुमने
अपने पद का अंहकार किया
मुझे क्षत विक्षत
करके भी तुमने
मेरा ही अपहरण किया ?

मेरा चीर हरण
करके
मुझे महाभारत का
निमित्त बनाया ?

मैंने ही
तम्हें रचा ,तुम्हारा सरजन किया

तुमने मुझे

कभी बिह्डो में छोडा

कभी बाजार में बेचा

एक

सुंदर ससार की सहभागी बनू

ये समानता थी मेरी

कितु तुमने ही

मुझे कैकयी बनाया

मन्थरा बनाया

अपने ग्रंथो में


मै चुप रही

आज तुमने मुझे

फिरसे

आदमियों के जंगल में

खड़ा करदिया है

बिकने के लिए


नही?

अब कोई मेरा
अपहरण nhi करेगा
न ही मेरा चीर हरण करेगा

न ही मुझे धरती में समाना होगा

न ही मुझे किसी की
जंघा पर बैठना होगा
मालूम है ?
तुम्हे
क्यो ?
क्योकि !
शक्ति ने
स्वीकार ली है,
नर- बलि |
shobhana chourey






16 comments:

  1. जिस दिन नारी स्‍वयं आत्‍मसम्‍मान के साथ खडी हो जाएगी उसी दिन से उसके वजूद को सभी स्‍वीकार करने लगेंगे। हमने ही निराशा के सारे ही स्‍वर एकत्र कर लिये हैं। बस यदि इतना भर ही स्‍मरण रहे कि मैं जननी हूँ और मैं ही संस्‍कार देने वाली तो नर बलि की आवश्‍यकता नहीं पडेगी। अच्‍छी रचना के लिए बधाई।

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  2. बहुत ही सुन्दर आशावादी रचना. बधाई.

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  3. लगा , जैसे , मैंने एकबार कही बात आपने दोहरा दी हो ..! यही सत्य है ...! इन सभी औरतों को उनकी मृत्यु के पश्च्यात सराहा गया...जीते जी मारा गया..!अपनी चंद पंक्तियाँ आपको भेंट करती हूँ ..!
    अगली टिप्पणी मे..!

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  4. कभी किरन आफताबकी
    तो कभी ठंडक माहताबकी,
    हाथमे लिया आरतीका दिया,
    कभी खडी पकड़ जयमाला,
    संग्राममे बन वीरबाला कूद पडी,
    जब, जब ज़रूरत पडी,
    किसीके लिए....

    बनके पदमिनी कूदी अँगारोंपे
    नाम रौशन किए खानदानोके
    हर घाव, हर सदमा झेल गयी,
    फटे आँचलसे शर्मो-हया ढँक गयी,
    किसीके लिए...

    जब जिसे ज़रूरत पडी,
    मै उनके साथ होली,
    सीनेपे खाए खंजर,
    सीनेपे खाई गोली,
    जब मुझपे कड़की बिजली,
    क्या अपने क्या पराये,
    हर किसीने पीठ कर ली
    हरबार मै अकेली जली!
    किसीके लिए.....

    ज़रा याद करो सीता,
    या महाभारतकी द्रौपदी!
    इतिहासोंने सदियों गवाही दी,
    मरणोत्तर खूब प्रशंसा की,
    जिंदगीके रहते प्रताड़ना मिली ,
    संघर्षोंमे हुई नही सुनवाई
    किसीके लिए...

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  5. मत समझो कम्जोर मुझे मैं चन्डी बन दिखलाऊँ गी बहुत ही सुन्दर कविता है अपने आत्मसम्मन के लिये प्रेरित करती शुभकामनायें

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  6. shobhanaji,
    wah, bahut sundar likha he/
    shkti ne svikar li he nar bali,
    is ek shbd se mujhe lagaa yadi kuchh esa ho jaaye to shkti ka durupayog hone se bach jaaye/
    bahut satik aour gahri baat/

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  7. Is prabhavi rachna ke liye badhai swikaren.

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  8. वह समय चला गया जब नारी को मोंम की गुड़िया समझा जाता था। जब जिस सांचे में रख दिया उसी के अनुरूप हो गयी।
    बहुत सुंदर कविता लिखा है आपने बधाई।

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  9. एक बहुत ही सशक्त रचना मैम....

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  10. सच है, जाग गई है दुर्गा....

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  11. बहुत सुंदर रचना।
    इस पर शमा जी की प्रतिक्रिया भी उतनी ही
    अच्छी।

    बधाई...

    आपका ईमेल पता प्रोफाईल पर भी नहीं है...

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  12. 'अब कोई मेरा
    अपहरण nhi करेगा
    न ही मेरा चीर हरण करेगा

    न ही मुझे धरती में समाना होगा

    न ही मुझे किसी की
    जंघा पर बैठना होगा'
    - इस आत्मबल के रहते नारी को अपने अस्तित्व को बचाए रखने की चिंता में घुलना नहीं पड़ेगा.

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  13. शशक्त रचना,,,...... नारी मन की व्यथा को प्रभावी तरीके से रक्खा है आपने........सच में आज नारी को जागना है, अपनी शक्ति को पहचानना है

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  14. बहुत ही बेहतरीन और प्रभावी रचना लिखी है आपने...एक एक शब्द जैसे काल की अधिष्ठात्री महाकाली के श्री मुख से निकला प्रतीत होता है.वह अद्भुत क्षण होगा जिसमे आपने इस रचना का निर्माण किया होगा..मेरे द्वारा आजतक पढ़ी कुछ श्रेष्ठतम रचनाओं में एक है आपकी यह रचना..आभार !
    आपकी लेखनी वाकई प्रभावित करने वाली है...
    प्रकाश पाखी

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  15. इतनी सशक्त रचना के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद। यह सही है कि यहां शमा की प्रतिक्रिया ही सबसे बेहतर प्रतिक्रिया इस रचना पर है। मेरे ब्लॉग पर आने और टिप्पणी के लिए भी शुक्रिया।

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  16. बहुत ही ख़ूबसूरत, प्रभावी और सशक्त रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

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