Sunday, January 24, 2010

क्या आवश्यक है ?

"गणतंत्र दिवस की अनेक शुभकामनाये "

कई बार अनियमितता के चलते या फिर दो दिन कोई मेहमान आ जाय तो घर अस्त व्यस्त हो जाता है |अभी पिछले साल जब घर कि पुताई(वैसे लोग पेंटिग करवाना कहना ज्यादा पसंद करते है ) करवाई और छत पर भी कुछ सामान रखा था रात में अचानक बेमौसम बारिश ग्लोबल वार्मिंग के कारण आने से जैसे तैसे सामान लाकर कमरों में पटक दिया |सुबह सुबह सब तो अपने काम से चले गये रह गई मै और बेतरतीब फैला सामान ,कहाँ से शुरू करू काम? कुछ समझ ही नहीं आ रहा था |ठीक वैसे ही पिछले दो चार दिन से हो रहा है इतने विषय दिमाग में घूम रहे है ,न चाहते हुए भी बार बार महंगाई के बारे में बात करना ,आपसी रिश्तो का दरकना ,मोबाईल पर झूठ पे झूठ बोलते हुए लोगो को सामने खड़े हुए सिर्फ देखना ,टेलीविजन पर ज्योतिषियों तर्कशास्त्रीयों कि बहस के द्वारा अपनी चैनल कि टी.आर .पी .बढ़ाना और टेलीविजन के धारावाहिकों में बेलगाम हिंसा का अत्यंत विकृत रूप परिवारों में दिखाना |
किसे विस्तार दू ?
इसी बीच रिलायंस फ्रेश में सोचा सब्जी ठीक मिल जाएगी? चलो आज वहीं से ले लेते है १२०० वर्ग्फूट कि जगह में रेक्स पर ठसाठस सामान भरा हुआ सा दीखता हुआ |एक बार में एक ही ट्राली और एक आदमी निकल सकता है उसमे भी उनके कर्मचारी ही सामान संजोने में लगे रहते है |एक बार में अगर दस आदमी आते है तो लगता है बहुत भीड़ है उस पर लगातार माइक पर ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए इस्कीमे दोहराते रहना कृत्रिम व्यस्तता दिखाने का ही एक उपाय लग रहा था |
सुबह ११ बजे के समय में ज्यादातर अवकाश प्राप्त लोग या गृहिणियां ही दिखाई देती है जो छांट छांट कर
सब्जी लेते है या पैक चीजो के भाव पढ़ पढ़कर सामान लेने में ही विश्वास करते है |पर आज कुछ नन्हे नन्हे ग्राहक भी दिखाई दिए जिन्हें उनकी शिक्षिकाये खरीददारी सिखाने के लिए लाई थी,प्यारे प्यारे छोटे छोटे नर्सरी के महज तीन साल के बच्चे |उन्हें सब्जियों के, फलों के अंग्रेजी नाम सीखना था? कैसे ट्राली लेकर आना? कैसे सामान लेना ?और कैसे बिल बनवाना |बच्चे बार बार कतार से अलग हो जाते उन्हें मिस डांट देती फिर ललचाई नजरो से चाकलेट कि तरफ देख लेते
और कतार में खड़े हो जाते |इस बीच मैडम ने अपने घर के लिए किराना खरीद लिया और करीब १५ मिनट में बच्चे वापस कतार में ही जाने लगे |और वही के एक कर्मचारी द्वारा उन्हें एक - एक चाकलेट दी जाने लगी |तभी एक बच्चे ने मचलकर कहा -मुझे दो चाकलेट चाहिए अपनी मम्मी के लिए भी ?पर सबको एक एक ही चाकलेट मिलनी थी |बच्चो का
शापिग पीरियड समाप्त हो गया था वो चले गये मै उनको देखने में ,उनकी नन्ही आँखों के अनेको प्रश्न पढने का प्रयत्न कर रही थी |और कुछ अपने से किये ?प्रश्नों के उत्तर भी खोज रही थी कि क्या ?बच्चो को अभी से खरीदारी करना सिखाना आवश्यक है ?और जितने अंग्रेजी नाम उन्हें सिखाये गये रोजमर्रा कि चीजो के वो भी अभी जरुरी है ?क्या वो याद रख पायेगे ?घर जाने तक ?यही सोचते सोचते मैंने भी सब्जी ली और घर आ गई|
घर आते ही मैंने देखा सामान रखने वाले काउन्टर से अपना सामान लाना भूल गई, सोचा शाम को ले कि टोकन तो है ही |शाम को गई तो देखा सुबह के बच्चो वाला ग्राहक बच्चा अपनी मम्मी का आचल पकड़कर जिद कर रहा था चाकलेट के लिए और कह रहा था अंकल ने सुबह तो दी थी अभी क्यों नहीं देते ?मम्मी ने बहुत समझाया सुबह कि बात अलग थी पर बच्चा कहाँ मानने वाला था ?उसकी मम्मी को चाकलेट खरीदनी पड़ी और वो भी पूरे परिवार के लिए ||
और मै सोचने लगी क्या बच्चे ने खरीददारी सीख ली? और बाजार ने बिक्री ????????

21 comments:

  1. सही कह रही हैं आप ...टेलीविजन पर सारे विज्ञापन बच्चों और महिलाओं को ही केन्द्रित कर बनाये जाते हैं ...बाजार हावी है बच्चों की मासूमियत को ढाल बना कर ....और महिलाएं तो target है ही उनके लिए भी और दर्शकों के लिए भी ....!!

    ReplyDelete
  2. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  3. accha lekh.........
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......

    ReplyDelete
  4. बहुत खूबसूरती से आपने एक अवलोकन को शब्द दिए हैं.....और सही है की बाजार ने अपनी जगह बना ली बच्चों के माध्यम से....सटीक लेख

    ReplyDelete
  5. ..और मै सोचने लगी क्या बच्चे ने खरीददारी सीख ली? और बाजार ने बिक्री ?
    ...कितने सहज ढंग से आपने बाजारवाद से उपजी सामाजिक चिंता को अभिव्यक्ति दी!...बस यूँ ही बाजारवाद हमारे आँगन में पैर पसारता चला जा रहा है.
    ...सुंदर पोस्ट के लिए बधाई.

    ReplyDelete
  6. बहुत शानदार पोस्ट है.
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  7. आज के दौर में ,बच्चों का बचपन खो गया है ,हम उन्हें सब कुछ सिखा देना चाहते हैं

    ReplyDelete
  8. bajarwad ka aisa daur chala he ki hum uske jaal me fash kar rah gaye hain . ye hum par aise havi ho gaya he ki na to hum apne bacchon ka bachpan dekh pa rhe hain aur na hi apna jiven

    ReplyDelete
  9. सही लिखा है ........ ऐसी ही बनावटी बातों में आज बचपक खो गया है .......... ये सांस्कृति न जाने कितना कुछ छीन लेगी हम से ........... अच्छी पोस्ट है .... सोचने को मजबूर करते हुवे .......

    ReplyDelete
  10. समय पाय तरुवर फ़लें केतिक सींचो नीर ।वक्त आने पर समय ही सब कुछ सिखा देता है ,अंग्रेज़ी नाम और प्रिंट रेट पर सामान खरीदने की ट्रेनिंग, बिल सामान का लेना आदि सिखा दिया और बाद में हमारे प्रदेश मे अधिकारी बन कर वे आये तो ? यहां तो पालक की भाजी के लिये भी बारगेनिंग करना होता है ।हम सब की धारणा यहीहो गई है कि चार पांच साल की उम्र मे ही सब सीख जाये ।हम खुद भी तो ,हमारे घर कोई आया और हमने बेटा या बेटी को आवाज़ दी बेटा अंकल को वो वाली पोईम सुनाओ ।और बेचारा तमाशा बना हुआ सुना रहा है अंग्रेजी पोइम _न हमे मतलब समझ मे आरहा है और न अंकल को और बालक को तो रटा दी है इसलिये मतलब समझ मे आने ही क्यों लगा ।आपने बहुत अच्छा लिखा है कि बिल बनवाना सीखने के दौरान् बच्चे की नीयत चाकलेट पर थी ,चाकलेट खाने की उम्र मे हम सौदा खरीदना सिखा रहे है _अच्छा लगा आपका आलेख

    ReplyDelete
  11. बहुत अच्छी और सार गर्भित पोस्ट...बधाई.
    नीरज

    ReplyDelete
  12. baazar ki sthti aur aaj ke samya ki tasvir dono behtrin rahe ,vaani ji ki baaton se main bhi sahmat hoon .umda ,jai hind, vyastta ke karan deri ho gayi .

    ReplyDelete
  13. pahli baar yahan aayi...accha laga
    sashakt abhivyakti!

    ReplyDelete
  14. ek saargarbhit aalekh...
    aaj hamsabka jeewan bas isi mareechika ke peeche bhaag raha hai..
    sanskriti ki baatein ab old fashioned lagne lagin hain logon..
    bahut badhiyaa likha aapne..
    aapka aabhar...

    ReplyDelete
  15. माफ़ी चाहती हूँ शोभना जी आपके ब्लॉग पर देर से आ सकी.पर आपकी सशक्त अभिव्यक्ति देख कर बहुत अच्छा लगा आभार

    ReplyDelete
  16. sashakt avlokan kia hai aapne..saargarbhit lekh.

    ReplyDelete
  17. yahi to hai PESTERING POWER... bachcho ko bachpan se hi graahak bana lijiye...brand oriented bana dijiye...dhandha chalta rahega...

    ReplyDelete
  18. sochne ke liyeis ahsas ko dil se mhsus krna hoga is trha masumo ki bhavnao se khilwar krnaykinan ghtiya soch ka prichayk hai

    ReplyDelete
  19. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  20. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete