
गणेशोत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है हर जगह गणपति जी मेहमान बनकर आये है दस दिन के लिए बड़े बड़े पंडाल ,गणेश मन्दिरों में आकर्षक झांकिया, जगमगाती बेहिसाब बिजली की रौशनी ,अनवरत चलते भंडारे ,तर माल,हलुए का प्रसाद | मंदिरों में सरकारी लोगो का आगमन ,उनके आगे पीछे घूमते माथे पर तिलक लगाये धोती कुरते ( जैसे फेंसी ड्रेस प्रतियोगिता )पहने पुजारी |सरकारी लोगो के सुरक्षा कर्मी पीछे पीछे उनके परिवार (बहती गंगा में हाथ धो ही ले )साथ में सीना ताने कुछ पार्षद |बुद्धि ? नहीं धन की कामना करने वाले |विशुद्ध दर्शन करने लम्बी लगी भक्तो की कतार को बीच में रोककर गणेशजी की कृपा पाने को आतुर इन विशिष्ट भक्तो को देखकर मेरा कुलबुलाता मन |
गणेशजी को प्रणाम भी नहीं कर पाई ,और पिछले साल लिखी गई पोस्ट जस की तस |हालत भी जस के तस |
और इस बीच नई खबर: बाबाओ का स्टिगओपरेशन मिडिया द्वारा |"पिपली लाइव "फिल्म देखकर मिडिया पर कितना विश्वास करेगी जनता ?ये सोच का विषय है कितु इससे भी ज्यादा सोच का विषय है इस फिल्म को देखने वाले कौन लोग है ?समाज पर इसका असर है ?या समाज को देखकर बनाई है जिस समाज को देखकर बनाई है क्या उन्होंने देखा है इसे ?
स्कूल के दिनों में हिन्दी विषय के अंतर्गत बाबा भारती का घोड़ा की कहानी पढाई जाती थी कहानी का शीर्षक था
"हारजीत"के लेखक थे सुदर्शन |बाद में टिप्पणी लिखो :में पूछा जाता था इस कहानी से क्या शिक्षा मिली?क्या संदेस देती है ये कहानी ?तब तो रट रट कर बहुत कुछ लिख देते थे और नंबर भी पा लेते थे |कितु न तो कभी बाबा भारती ही बन पाए और न ही कभी ह्रदय परिवर्तन होने वाले डाकू खड्गसिँह को अपने जीवन में उतार पाए |
आज बाबा भारती(नकली ) बहुत है , सुलतान को बेचने वाले ,आलिशान कुटियों में रहने वाले और डाकुओ के साथ रहकर व्यापार करने वाले |
पिछले दिनों से लगातार समाचार आ रहे है नकली खून के बाजार के |
स्तब्ध हूँ, क्षुब्ध हूँ किंतु अब लगता है की सचमुच भारत भगवान के भरोसे ही चल रहा है |
ईमान तो
कब का बेच दिया !
थाली की
दाल रोटी भी चुराकर
बेच दी !
त्यौहार अभी आए नही ?
पकवानों की मिठास ही
बेच दी !
नकली घीं
नकली दूध
नकली मसाले
और अब
नकली खून ?
कौनसी ?
ख्वाहिश मे
तुमने पेट की आग
खरीद ली
तुम भूल रहे हो
आग हमेशा ही जलाती है
तुमने
दाल, चीनी गेहू और
खून
नही जमा किया है ?
तुमने जमा की है
अपने गोदाम मे
इनके बदले
ईमानदार की आहे
मेहनतकश की
बद्ददुआए
प्रक्रति की
समान वितरण प्रणाली को
असमानता मे तब्दील कर
तुमने अपनी भूख
बढ़ा ली है
व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती|
"गणेशोत्सव कि शुभकामनाये"