Wednesday, September 29, 2010

एक श्रद्धांजली पिताजी को ......

आज बाबूजी कि एक कविता पोस्ट कर रही हूँ ?मेरे बाबूजी अल्प आयु में ही इस संसार को छोड़ कर चले गये |बहुत संघर्शो के साथ पढाई पूरी की |परिवार कि जिम्मेवारियो को निबाहते हुए १६ साल कि उम्र से ही नौकरी शुरू कि कितु पढाई जारी रखी और कालेज में प्राध्यापक के मुकाम तक पहुंचे जो कि उस समय ५० और ६० के दशक में बहुत महत्व रखता था |इस बीच उनका लेखन कार्य ,रेडियो पर वार्ताए ,कवि सम्मेलनों का आयोजन ,नगर (खंडवा )कि सांस्क्रतिक गतिविधियों में भाग लेना भी सुचारू रूप से चलता रहा |निम्न लिखित कविता उनके कविता संग्रह "लोग लोग और लोग "से है |यह कविता सन ६५ में लिखी थी |


"दिनमान "
मैंने अपनी दीवाल पर
किल से जड़ लिया है
समय को
रोज शाम सूरज
मेरे केलेंडर का एक दिन
फाड़ देता है और
मै अपने इतिहास में
अनुभव का एक नया पृष्ट
जोड़ लेता हूँ |
इतिहास ,धर्म और सभ्यता का
भरी लबादा ओढ़
मै कबसे समय को
पीछे से पकड़ने की
करता रहा हूँ नाकाम कोशिश
और समय सदा ही
उस मेहनतकश के साथ रहा
जिसने उगते सूरज के साथ
उसे थाम लिया
और फिर श्रम से
नापता रहा दिनमान |
हर सुबह उसके लिए
नये साल का पहला दिन है
और साँझ इकतीस दिसंबर
वह वर्षगांठ और जन्मदिन की
संधि बेला में
कभी उदास नहीं होता मेरी तरह
क्योकि तवारीख का बोझ
उसके सर पर नहीं है
उसने जिन्दगी का रस
छक कर पिया है
वह समय के साथ
उन्मुक्त जिया है !
स्व.नारायण उपाध्याय (बाबूजी )




37 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावान्जलि।

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  2. शोभना जी ,

    आपके पिताजी को मेरी भी श्रद्धांजली ...

    उनकी रचना बहुत सशक्त है ...जीवन को नयी दिशा देती हुई ..


    और समय सदा ही
    उस मेहनतकश के साथ रहा
    जिसने उगते सूरज के साथ
    उसे थाम लिया
    और फिर श्रम से
    नापता रहा दिनमान |

    प्रेरणादायक पंक्तियाँ

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  3. abhibhavko ko yaad karnae kaa issae behtar tarika koi nahin haen

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  4. बहुत अच्छी लगी यह कविता ।

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  5. रोज शाम सूरज
    मेरे केलेंडर का एक दिन
    फाड़ देता है और
    मै अपने इतिहास में
    अनुभव का एक नया पृष्ट
    जोड़ लेता हूँ |
    भावना प्रधान कविता .. बाबूजी को श्रद्धांजलि

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  6. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द, अनुपम प्रस्‍तु‍ति ।

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  7. एक बेटी की अपने पिता की प्रति इतनी सुन्दर श्रधांजलि , मान भाव बिह्वल हो उठा , बहुत सुन्दर कविता .

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  8. आज मेरे पापा का भी श्राद्ध है .एक बेटी भावनाये अपने पिता के लिए समझ सकती हूँ मैं .आपके पिताजी को मेरी तरफ से श्रृद्धा सुमन अर्पित.बहुत सशक्त रचना है उनकी.

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  9. shobhana jee baboojee ko meree bhee shrudhanjalee...
    unakee kavita unake soch kee ek sashakt abhovykti hai................
    unakee rachana padwane ke liye dhanyvaad........

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  10. शोभना जी

    आपके पिताजी को मेरी श्रद्धांजली ...

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  11. सुन्दर रचना. पिताजी को श्रद्धांजली .

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  12. हर सुबह उसके लिए
    नये साल का पहला दिन है
    और साँझ इकतीस दिसंबर

    कितनी प्रभावशाली कविता है यह...नोट कर ली है,मैने ...बार-बार पढ़े जाने लायक.
    विनम्र श्रद्धांजलि , पिता जी को.

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  13. पिता पुत्री का नाता ही सबसे अनोखा है इस जग में

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  14. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द, अनुपम प्रस्‍तु‍ति ।
    आपके पिताजी को मेरी भी श्रद्धांजली ..

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  15. usee taarikho ka bojhnahi hota, jisne jindgi ka ras chak ke piya ho ---- ,atyant hi bhavnapurnn udgaar hai ,,,hamari bhi ashrupurit shradhanjali priy babuji ko ,,,,kamna billore

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  16. शोभना जी,
    बाबू जी का अनुभव उनकी कविता में दिखता है और हम सब के लिए प्रेरणा है! उनके चरणों में श्रद्धा सुमन!!

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  17. पिताजी को विनम्र श्रद्धान्जली....
    आपका आभार उनकी रचना सबसे बाँटने के लिए

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  18. पिताजी को श्रद्धांजलि.

    कविता बहुत ही सरल भाषा में जीवन के उठापटक को रेखांकित करती हुई.

    आभार
    मनोज खत्री

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  19. शोभना जी रचना बहुत अच्छी लगी। बहुत गहरेभाव लिये है एक एक शब्द।
    रोज शाम सूरज
    मेरे केलेंडर का एक दिन
    फाड़ देता है और
    मै अपने इतिहास में
    अनुभव का एक नया पृष्ट
    जोड़ लेता हूँ |
    मेरी भी उनको विनम्र श्रद्धाँजली।

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  20. आपके पिताजी को हमारी भी श्रद्धांजली,
    बहुत ही सुंदर रचना , धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये

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  21. बेहद उम्दा रचना ! बाबू जी को श्रद्धांजलि देने का आपका यह तरीका पसन्द आया ! मेरा नमन ...

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  22. बहुत ही सशक्त प्रस्तुति आपके बाबू जी की। श्रद्धेय नमन।

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  23. Kya gazab kee sashakt rachana hai! Meree bhee shraddhanjali arpit karti hun!

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  24. बहुत अच्‍छी रचना .. बाबूजी को श्रद्धांजलि !!

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  25. पिताजी को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।

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  26. और समय सदा ही
    उस मेहनतकश के साथ रहा
    जिसने उगते सूरज के साथ
    उसे थाम लिया
    और फिर श्रम से
    नापता रहा दिनमान |
    बहुत सशक्त रचना है. पिताजी को मेरी भी श्रद्धांजली

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  27. वाह...कितनी सुन्दर रचना है....
    मन आनंदित हो गया पढ़कर...
    पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार आपका...

    बाबूजी को विनम्र श्रद्धांजलि..

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  28. Just set this forum via google. Ready to fasten you. I came here to learn your lingo . thanks all.

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  29. आपके पिताजी को मेरी तरफ से श्रृद्धा सुमन अर्पित.
    बहुत ही सुंदर रचना....

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  30. इससे बेहतर श्रद्धांजलि नहीं हो सकती ...!

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  31. bahut sunder bhavpoorn shadhanjali ...

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  32. .

    क्योकि तवारीख का बोझ
    उसके सर पर नहीं है
    उसने जिन्दगी का रस
    छक कर पिया है
    वह समय के साथ
    उन्मुक्त जिया है !


    शोभना जी,

    बाबूजी की ये रचना पढ़वाकर आपने उपकार किया है। कितने श्रेष्ठ विचार हैं उनके। कठिनाई से जीवन जीकर भी , जिंदगी के प्रति इतना उत्साह तथा धर्म और समाज के प्रति इतनी स्पष्ट दृष्टि , उनकी रचना में झलक रही है । बहुत अच्छा लगा उनकी रचना के ज़रिये उन्हें जानकार।

    बाबूजी को मेरी श्रद्धांजलि ।

    .

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  33. नारायण उपाध्याय जी का नाम सुना है । खंडवा से पहले काफी लोग मिलते थे । आप रामनारायण उपाध्याय जी के परिवार से हैं क्या ? विनय उपाध्याय भी हैं वहाँ ?
    इस तरह आपका उन्हे याद करना अच्छा लगा ।

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