"दिनमान "
मैंने अपनी दीवाल पर
किल से जड़ लिया है
समय को
रोज शाम सूरज
मेरे केलेंडर का एक दिन
फाड़ देता है और
मै अपने इतिहास में
अनुभव का एक नया पृष्ट
जोड़ लेता हूँ |
इतिहास ,धर्म और सभ्यता का
भरी लबादा ओढ़
मै कबसे समय को
पीछे से पकड़ने की
करता रहा हूँ नाकाम कोशिश
और समय सदा ही
उस मेहनतकश के साथ रहा
जिसने उगते सूरज के साथ
उसे थाम लिया
और फिर श्रम से
नापता रहा दिनमान |
हर सुबह उसके लिए
नये साल का पहला दिन है
और साँझ इकतीस दिसंबर
वह वर्षगांठ और जन्मदिन की
संधि बेला में
कभी उदास नहीं होता मेरी तरह
क्योकि तवारीख का बोझ
उसके सर पर नहीं है
उसने जिन्दगी का रस
छक कर पिया है
वह समय के साथ
उन्मुक्त जिया है !
स्व.नारायण उपाध्याय (बाबूजी )
बहुत सुन्दर भावान्जलि।
ReplyDeleteशोभना जी ,
ReplyDeleteआपके पिताजी को मेरी भी श्रद्धांजली ...
उनकी रचना बहुत सशक्त है ...जीवन को नयी दिशा देती हुई ..
और समय सदा ही
उस मेहनतकश के साथ रहा
जिसने उगते सूरज के साथ
उसे थाम लिया
और फिर श्रम से
नापता रहा दिनमान |
प्रेरणादायक पंक्तियाँ
vandnaji sangitaji
ReplyDeletebahut abhar
abhibhavko ko yaad karnae kaa issae behtar tarika koi nahin haen
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह कविता ।
ReplyDeleteरोज शाम सूरज
ReplyDeleteमेरे केलेंडर का एक दिन
फाड़ देता है और
मै अपने इतिहास में
अनुभव का एक नया पृष्ट
जोड़ लेता हूँ |
भावना प्रधान कविता .. बाबूजी को श्रद्धांजलि
बहुत ही सुन्दर शब्द, अनुपम प्रस्तुति ।
ReplyDeleteएक बेटी की अपने पिता की प्रति इतनी सुन्दर श्रधांजलि , मान भाव बिह्वल हो उठा , बहुत सुन्दर कविता .
ReplyDeleteआज मेरे पापा का भी श्राद्ध है .एक बेटी भावनाये अपने पिता के लिए समझ सकती हूँ मैं .आपके पिताजी को मेरी तरफ से श्रृद्धा सुमन अर्पित.बहुत सशक्त रचना है उनकी.
ReplyDeleteshobhana jee baboojee ko meree bhee shrudhanjalee...
ReplyDeleteunakee kavita unake soch kee ek sashakt abhovykti hai................
unakee rachana padwane ke liye dhanyvaad........
शोभना जी
ReplyDeleteआपके पिताजी को मेरी श्रद्धांजली ...
सुन्दर रचना. पिताजी को श्रद्धांजली .
ReplyDeleteहर सुबह उसके लिए
ReplyDeleteनये साल का पहला दिन है
और साँझ इकतीस दिसंबर
कितनी प्रभावशाली कविता है यह...नोट कर ली है,मैने ...बार-बार पढ़े जाने लायक.
विनम्र श्रद्धांजलि , पिता जी को.
पिता पुत्री का नाता ही सबसे अनोखा है इस जग में
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द, अनुपम प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपके पिताजी को मेरी भी श्रद्धांजली ..
usee taarikho ka bojhnahi hota, jisne jindgi ka ras chak ke piya ho ---- ,atyant hi bhavnapurnn udgaar hai ,,,hamari bhi ashrupurit shradhanjali priy babuji ko ,,,,kamna billore
ReplyDeleteशोभना जी,
ReplyDeleteबाबू जी का अनुभव उनकी कविता में दिखता है और हम सब के लिए प्रेरणा है! उनके चरणों में श्रद्धा सुमन!!
पिताजी को विनम्र श्रद्धान्जली....
ReplyDeleteआपका आभार उनकी रचना सबसे बाँटने के लिए
पिताजी को श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteकविता बहुत ही सरल भाषा में जीवन के उठापटक को रेखांकित करती हुई.
आभार
मनोज खत्री
शोभना जी रचना बहुत अच्छी लगी। बहुत गहरेभाव लिये है एक एक शब्द।
ReplyDeleteरोज शाम सूरज
मेरे केलेंडर का एक दिन
फाड़ देता है और
मै अपने इतिहास में
अनुभव का एक नया पृष्ट
जोड़ लेता हूँ |
मेरी भी उनको विनम्र श्रद्धाँजली।
आपके पिताजी को हमारी भी श्रद्धांजली,
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना , धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये
बेहद उम्दा रचना ! बाबू जी को श्रद्धांजलि देने का आपका यह तरीका पसन्द आया ! मेरा नमन ...
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त प्रस्तुति आपके बाबू जी की। श्रद्धेय नमन।
ReplyDeleteKya gazab kee sashakt rachana hai! Meree bhee shraddhanjali arpit karti hun!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना .. बाबूजी को श्रद्धांजलि !!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपिताजी को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteऔर समय सदा ही
ReplyDeleteउस मेहनतकश के साथ रहा
जिसने उगते सूरज के साथ
उसे थाम लिया
और फिर श्रम से
नापता रहा दिनमान |
बहुत सशक्त रचना है. पिताजी को मेरी भी श्रद्धांजली
वाह...कितनी सुन्दर रचना है....
ReplyDeleteमन आनंदित हो गया पढ़कर...
पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार आपका...
बाबूजी को विनम्र श्रद्धांजलि..
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ReplyDeleteBAHUT ACHCHHE!
ReplyDeleteआपके पिताजी को मेरी तरफ से श्रृद्धा सुमन अर्पित.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना....
इससे बेहतर श्रद्धांजलि नहीं हो सकती ...!
ReplyDeletebahot achchi lagi.
ReplyDeletebahut sunder bhavpoorn shadhanjali ...
ReplyDelete.
ReplyDeleteक्योकि तवारीख का बोझ
उसके सर पर नहीं है
उसने जिन्दगी का रस
छक कर पिया है
वह समय के साथ
उन्मुक्त जिया है !
शोभना जी,
बाबूजी की ये रचना पढ़वाकर आपने उपकार किया है। कितने श्रेष्ठ विचार हैं उनके। कठिनाई से जीवन जीकर भी , जिंदगी के प्रति इतना उत्साह तथा धर्म और समाज के प्रति इतनी स्पष्ट दृष्टि , उनकी रचना में झलक रही है । बहुत अच्छा लगा उनकी रचना के ज़रिये उन्हें जानकार।
बाबूजी को मेरी श्रद्धांजलि ।
.
नारायण उपाध्याय जी का नाम सुना है । खंडवा से पहले काफी लोग मिलते थे । आप रामनारायण उपाध्याय जी के परिवार से हैं क्या ? विनय उपाध्याय भी हैं वहाँ ?
ReplyDeleteइस तरह आपका उन्हे याद करना अच्छा लगा ।