Sunday, October 03, 2010

"कुछ ऐसे भी फालोअर गांधीजी के " 'व्यग्य "

मन का मैल विचार से ,भगवान के ध्यान से और अंत में भगवान के प्रसाद से ही जाता है |
महात्मा गाँधी

कल गाँधी जयंती थी ,हमारे
एक पुराने साहित्यिक परिचित है ,मंचीय कवि भी है वो वैसे तो सरकारी कर्मचारी है किन्तु वहां थोड़े कम ही रम पाते है |उनका अधिकांश समय सरकारी कवि गोष्ठियों ,सरकारी साहित्यिक पुरस्कारों के लिए दौड़ धूप लेन देन में बीत जाता है ,इसके कारण उन्हें मौलिक रचनाओ का रचने का समय ही नहीं मिल पाता |इसके लिए उन्होंने एक लेखक हायर कर लिया है जो इधर उधर कि उन किताबो में से (जो किताबे शौक के चलते छप जाती है पर उनके जुड़े पन्ने भी नहीं नहीं खुल पाते )कुछ कविताये कुछ पुरानी पत्रिकाओ के लेख अदि लिखकर हर साल एक किताब छपवा लेते है और जुगाड़ से पुरस्कार तो पा ही जाते है |
तो कल हमारे घर अपनी एक किताब कि प्रति लेकर आये जिसका शीर्षक था" गांधीजी मेरे आदर्श "|
बातो बातो में में वे इजहार करते भाई आज कि पीढ़ी का तो कोई आदर्श ही नहीं है हमारे जमाने में में देखो आदर्श थे हमारे गांधीजी |
हम सब हैरान दिन रात विदेशी वस्तुओ का उपयोग करने वाले के आदर्श गांधीजी ?
अपने घर के कोने में रखे शो केस में सजी बोतलों का प्रदर्शन हर वक्त करने वाले अपनी किताब में से "शराब बंदी "पर लिखी कविता सुनाने वालो के मुख से मेरे आदर्श,, गांधीजी कि कविता सुनना मेरे लिए असहनीय हो गया |
बात बात पर आज कि पीढ़ी को नकारा बताते हुए उनका ये कहना कि ओबामा में वो बात कहाँ ?जो हमारे आदर्श में थी |भई !आदर्श थे तो गांधीजी |
हमने उन्हें कहा -अब चाय पी लीजिये |
उन्होंने कहा -आज गाँधी जयंती है हम चाय नहीं पियेगे अगर बकरी का दूध होतो पी सकते है ?
चलिए नाश्ता कर लीजिये -हमने फिर कहा -आज हमारा उपवास है अगर कुछ फलाहारी व्यंजन बने हो तो खा सकते है |हमारे आदर्श ने तो कई दिनों तक उपवास रखा तो क्या हम एक दिन उपवास नहीं रख सकते ?
इतने में उनका मोबाईल बोल उठा ...वैष्णव जन तो तेने कहियो ...
शायद उनकी पत्नी का फोन था ...????
कहाँ है आप ?शायद उधर से प्रश्न था ?
अरे मै एक सभा में हूँ मेरा व्याख्यान है अभी मिनट बाद" सच कि ताकत "
मुझसे क्यों पूछती हो ?जैसा चाहो वैसा चिकन बना लो शाम को खा लूँगा |
उधर से पूछे गये प्रश्न का उत्तर दिया उन्होंने और फोन काट दिया |
तभी हमने विषयांतर करने के लिए पूछ लिया ?
अच्छा माताजी कहाँ है? कैसी है ?
फिर वो तुरंत बोल पड़े -अरे मै बताना भूल ही गया मेरा अगला कविता संग्रह" माँ "ही तो है |
वो तो ठीक है लेकिन अभी माताजी कहाँ है ?
अरे भई!हम और हमारी श्रीमती जी काफी व्यस्त रहते है तो फ़िलहाल हमने उन्हें शहर के ही वृद्धाश्रम में ही रख दिया है ताकि उन्हें जल्दी -जल्दी मिल सके ?
अच्छा मै चलता हूँ !शाम को कवि गोष्ठी है गाँधी जयंती के अवसर पर उसकी तैयारी देखनी है .....

18 comments:

  1. ...बातो बातो में में वे इजहार करते भाई आज कि पीढ़ी का तो कोई आदर्श ही नहीं है हमारे जमाने में में देखो आदर्श थे हमारे गांधीजी |
    हम सब हैरान दिन रात विदेशी वस्तुओ का उपयोग करने वाले के आदर्श गांधीजी ?
    ....
    ..ऐसे लोगों से भरी-पटी है यह पृथ्वी, जिनके कहने और करने का अंदाज लगाना बेहद मुश्किल होता है.... व्यावहारिकता के मामले में ऐसे लोग इतने चतुर होते हैं कि ऐसी बातें करते हैं कि जैसे उनसे बढ़कर हमारा हितेषी कोई नहीं... समाज में जीते जागते ऐसे दोहरी भूमिका निभाते लोगों की बढ़ती तादाद सचमुच बेहद खतरनाक है ....
    ...एक यथार्थ की बखूबी प्रस्तुति के लिए आभार

    ReplyDelete
  2. यथार्थ की बेबाक प्रस्तुति है ... अच्छा व्यंग है ... आज के नेता और तमाम लोग गाँधी के आदर्शों को वातानुकूलित कमरों में डिस्कस करना चाहते हैं ... कोई फॉलो नही करना चाहता ...

    ReplyDelete
  3. एक कड़वा सच कह दिया आपने बातो ही बातों में। बहुत बढ़िया पोस्ट। बधाई।

    ReplyDelete
  4. aaj aise hee logo ka jamaana hai.....kaisee vidambana hai.........

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छा व्यंग है.....
    बधाई।

    ReplyDelete
  6. .

    शोभना जी,

    बड़ी बेबाकी से प्रस्तुत किया है आपने ये शानदार व्यंग। ! हाथी के दांत खाने के और , दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ कर दी उन सज्जन ने।

    काश हम सभी सही अर्थों में गांघी जी के जीवन से प्रेरणा ले पाते !

    यथार्थ से परिचय करवाती इस शानदार प्रस्तुति के लिए आपका ह्रदय से आभार।

    .

    ReplyDelete
  7. धन्य हैं गाँधी के अनुयायी जो रात को चिकन खायें और माँ को वृद्धाश्रम में रखें।

    ReplyDelete
  8. शोभना जी, बहुत सटीक व्यंग्य.. वह बापू, देख रहे हो तो देख लो... तेरी लकड़ी ठगों ने ठग ली, तेरी बकरी ले गए चोर!! मुझे अपना कहा एक शेर याद आ गया, आज के सो कॉल्ड गांधीवादियों परः
    अपनी खादी की सफेदी देखो,
    ख़ून का इनपे इक निशान भी था.

    ReplyDelete
  9. ये महोदय सफल नेता बनेंगे ,अच्छा व्यंग्य ।

    ReplyDelete
  10. ओह गज़ब का व्यंग ....बहुत सशक्त ..

    ReplyDelete
  11. गज़ब की हकीकत से रु-ब-रु करावा दिया, नुझे तो इसमे वाह सच ही ज्यादा दिखता है, जो आदमी दोहरी जिंदगी जी रहा है.......
    सच की ताकत सच में अद्रश्य सी हो गयी, जिसे शायद आज कोई महसूस ही नहीं करना चाहता , बल्कि प्रयोग करने पर खुद को ठगा सा महसूस करने लग जाता है..........

    आखिर हम कब गांधीजी के इस विचार को आत्मसात करेंगे, जिसे आपने अपने व्यंग के प्रारंभ में ही उद्धृत किया है......
    "मन का मैल विचार से ,भगवान के ध्यान से और अंत में भगवान के प्रसाद से ही जाता है" --महात्मा गाँधी

    इस रचना पर आपका हार्दिक आभार.........

    चन्द्र मोहन गुप्त

    ReplyDelete
  12. यह भी एक हकीकत है सिर्फ बातें करने वालों की ...
    गाँधी के नाम पर रेवड़ियाँ बांटे वाले और चट करने वाले तो खूब है , उन्हें जीवन में उतारने वाले काम ..
    बहुत सटीक एवं सार्थक व्यंग्य ...!

    ReplyDelete
  13. जब गाँधी वाद बन जाता है तब वादविवाद ही होता है और ऐसे विवादास्‍पद अनुयायी ही पैदा होते हैं। अच्‍छा व्‍यंग्‍य।

    ReplyDelete
  14. धन्य है इसे फोलोअर ..अच्छा व्यंग.

    ReplyDelete
  15. गज़ब का व्यंग्य लिखा है...आज कि हकीकत यही है...सबलोग सिर्फ इस नाम का इस्तेमाल करना जानते हैं...जीवन में उतारना किसी को गवारा नहीं...गाँधी जी ने कभी सोचा होगा...कि इतने सारे लोग उनके नाम का गलत उपयोग कर फूल-फल रहें हैं
    अफ़सोस होता है यह सब देख-सुन

    ReplyDelete
  16. बहुत अच्छे अभिनेता हैं यह तथाकथित बुद्धिजीवी... दिन में बकरी का दूध और रात को चिकन!!

    ReplyDelete
  17. sashakt abhivykti bapu ke aadarsh aaj ke parivesh me sirf udahran hi ho gaye hai .......kamana mumbai

    ReplyDelete
  18. kamaal ka vyang hai ,hamaare aadarsh bas isi tarah khokhle hote hai .yatharth ki badhiya prastuti .

    ReplyDelete