Saturday, January 22, 2011

कुछ यू ही ....

मै तो हूँ तुम्हारी
मै ,
में मुझे
ऐसे खोजते हो
जैसे
रात में धूप खोजते हो ?

समुंदर के टुकड़े को
सूखते हुए
देखा है
मैंने
तुम कहते हो,
तुम
तैर कर आये हो


उसी
तुम्हारे ,मेरे में
फिर भी !


मै तुम्हे सूरज
की तरह मानती हूँ
तुम हो की
सूरज की ओट
में छिपे चाँद की तरह
ही चमकना
चाहते हो
कभी कभी !

22 comments:

  1. मैं जो तुम्हे जानती हूँ, मानती हूँ... और तुम्हें मेरी तलाश है....! सुंदर

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  2. बहुत सुंदर! मैं और तुम का भेद मिटाती और प्रेम में एकाकार होने की शिक्षा देती सच्ची कविता!

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  3. बहुत सुंदर बात कही अप ने इस कविता मे धन्यवाद

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  4. मैं और तुम अलग कहाँ ...
    एक सन्देश सा है इस कविता में ...
    आभार !

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  5. main aur tum ...
    pahchan hamari hi to hai
    baaten ansuljhi hamare bich hi to hain ...

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  6. जिनसे उत्तर की अभिलाषा,
    पूँछ रहे हैं प्रश्न वही दृग।

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  7. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ....मैं और तुम के बीच हम की भावना ...

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  8. मैं और तुम, बहुत ही बढ़िया कविता. आपकी लेखनी का यह रूप भाता है.

    सादर
    मनोज

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  9. मैं और तुम के बीच का सफ़र अच्छा लगा

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  10. मैं और तुम ..एक ही तो हैं..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  12. मै तो हूँ तुम्हारी
    मै ,
    में मुझे
    ऐसे खोजते हो
    जैसे
    रात में धूप खोजते हो ?

    बहुत अच्छी रचना -
    सुंदर अभिव्यक्ति

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  13. मैं और तुम को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द दिये हैं ...।

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  14. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  15. बहुत ही सुंदर व मार्मिक रचना। "मै" और "तुम" का परिवर्तन "हम" के रूप मे होना चाहिये जहां "अहम" के लिये कोई स्थान न हो…………बहुत बहुत बधाई।

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  16. तभी तो
    मैं मैं नहीं
    तुम तुम नहीं
    ये तो सिर्फ हम हैं...
    बहुत सुन्दर रचना है.

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  17. मै तुम्हे सूरज
    की तरह मानती हूँ
    तुम हो की
    सूरज की ओट
    में छिपे चाँद की तरह
    ही चमकना
    चाहते हो
    कभी कभी !

    बहुत अच्छी रचना

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  18. समुंदर के टुकड़े को
    सूखते हुए
    देखा है
    मैंने
    तुम कहते हो,
    तुम
    तैर कर आये हो......

    हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।

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