मै तो हूँ तुम्हारी
मै ,
में मुझे
ऐसे खोजते हो
जैसे
रात में धूप खोजते हो ?
समुंदर के टुकड़े को
सूखते हुए
देखा है
मैंने
तुम कहते हो,
तुम
तैर कर आये हो
उसी
तुम्हारे ,मेरे में
फिर भी !
मै तुम्हे सूरज
की तरह मानती हूँ
तुम हो की
सूरज की ओट
में छिपे चाँद की तरह
ही चमकना
चाहते हो
कभी कभी !
मैं जो तुम्हे जानती हूँ, मानती हूँ... और तुम्हें मेरी तलाश है....! सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर! मैं और तुम का भेद मिटाती और प्रेम में एकाकार होने की शिक्षा देती सच्ची कविता!
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही अप ने इस कविता मे धन्यवाद
ReplyDeleteमैं और तुम अलग कहाँ ...
ReplyDeleteएक सन्देश सा है इस कविता में ...
आभार !
main aur tum ...
ReplyDeletepahchan hamari hi to hai
baaten ansuljhi hamare bich hi to hain ...
जिनसे उत्तर की अभिलाषा,
ReplyDeleteपूँछ रहे हैं प्रश्न वही दृग।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ....मैं और तुम के बीच हम की भावना ...
ReplyDeleteमैं और तुम, बहुत ही बढ़िया कविता. आपकी लेखनी का यह रूप भाता है.
ReplyDeleteसादर
मनोज
मैं और तुम के बीच का सफ़र अच्छा लगा
ReplyDeletewaah! bahut sundar!
ReplyDeleteमैं और तुम ..एक ही तो हैं..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteliked it!!
ReplyDeleteअच्छी कविता |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमै तो हूँ तुम्हारी
ReplyDeleteमै ,
में मुझे
ऐसे खोजते हो
जैसे
रात में धूप खोजते हो ?
बहुत अच्छी रचना -
सुंदर अभिव्यक्ति
मैं और तुम को आपने बहुत ही सुन्दर शब्द दिये हैं ...।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर व मार्मिक रचना। "मै" और "तुम" का परिवर्तन "हम" के रूप मे होना चाहिये जहां "अहम" के लिये कोई स्थान न हो…………बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteतभी तो
ReplyDeleteमैं मैं नहीं
तुम तुम नहीं
ये तो सिर्फ हम हैं...
बहुत सुन्दर रचना है.
मै तुम्हे सूरज
ReplyDeleteकी तरह मानती हूँ
तुम हो की
सूरज की ओट
में छिपे चाँद की तरह
ही चमकना
चाहते हो
कभी कभी !
बहुत अच्छी रचना
bahut achchi lagi.
ReplyDeleteसमुंदर के टुकड़े को
ReplyDeleteसूखते हुए
देखा है
मैंने
तुम कहते हो,
तुम
तैर कर आये हो......
हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।