अयोध्या के बारे में" रामचरित मानस" के आलावा बहुत कुछ लिखा जा चुकाहै |
अपनी अल्प बुद्धि से जो कुछ समझ आया आप सबसे बाँट रही हूँ |
देखने गये थे
रामलला
दर्शन हुए
कुछ इन अहसासों के
उजाड़ नगरी ,सूनी अयोध्या
सूनी रसोई ,उजाड़ सीता महल
पवन पुत्र
पवन कि अपेक्षा
धरती पर
आसरा लिए
तुलसी कि अयोध्या
क्या सिर्फ रामचरित मानस में ही है ?
अयोध्या में दर्शन हुए तो सिर्फ बाजार
और
बाजार
नाव
कभी चलती थी
सरयू नदी में?
यादें ताज़ा हो गयीं .. वहीं का हूँ इसलिए ..
ReplyDeleteचित्रों से गुजरना अच्छा लगा .. दीवारें सीली - सीली हैं पर एक
आदिम सी चमक का आभास जरूर होता है ..
बाजार सड़कों के किनारे खूब फैले हैं जिनपर खरीदनेवाले कम ही
दीखते हैं , सोचता हूँ कैसे ये लोग इन दुकानों से जीवन यापन करते होंगे ..
.
गुप्तार-घाट जाना नहीं हुआ क्या ? वहाँ तो नाव की अच्छी सवारी भी मिलती !
चित्रों में फिर रम रहा हूँ .. आभार !
aap aajkal blog par kum aarahee hai...
ReplyDeleteswasthy to theek hai na......
shubhkamnae......
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shubhkamnae......
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जी हां बहुत कुछ बदल गया लगता है
ReplyDeleteआपके ये एहसास अयोध्या के सूनेपन को बता रहे हैं...कभी अवसर नहीं मिला अयोध्या देखने का....नाव भी चलती थी सरयू नदी में? ये प्रश्न मन को विचलित कर गया...
ReplyDeleteआज सभी धार्मिक जगहो का यही हाल है, वो स्थान धार्मिक कम ओर लुटेरो का स्थान ज्यादा लगते है, धन्यवाद इस भाव भरी कविता के लिये
ReplyDeleteजब पहली बार अयोध्या गई थी भौचक्की रह गई थी,ब्रज धाम के विपरीत बेहद सन्नाटा ...राम लला को फटी बरसाती में देख कर दिल भर आया
ReplyDeleteकई वर्ष पहले गया था । भाव यही थे, कविता में आपने पिरो दिया ।
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद ख़ामोशी टूटी आप के ब्लॉग की..
ReplyDeleteअयोध्या नगरी का हाल देखा ,मन क्षुब्ध हुआ .सालों पहले यह स्थान देखा था,,अब फिर याद कर रही हूँ इन चित्रों के माध्यम से.
अब अयोध्या नगरी राजनीति की नगरी जो हो गयी है!!!!. न तो राम लाला को ही सुहाती होगी न ही न ही सरयू को. जो कुछ पहले कभी था, वो सब कुछ राजनीतिक लुटेरे ले गए .
ReplyDeleteआभार
अयोध्या की इस दशा के लिए राजनीति जिम्मेदार है.
ReplyDeleteअब अयोध्या का वो वैभव कहाँ...सबका बाजारीकरण हो गया है...इस ऐतिहासिक नगरी की ये दशा देख दुःख हुआ...
ReplyDeleteनीरज
अयोध्या तो हमारी कल्पनाओं में ही बसा हुआ था...सच्चाई देख ,बड़ी ठेस लगी...पर ऐसा ही कुछ नालंदा को देखकर भी हुआ था...विश्व के पहले विश्वविद्यालय वाला शहर एक कस्बे जैसा है...पर शायद हर शहर की भी एक उम्र होती है...
ReplyDeleteशोभना जी आप के जरिए हमें भी अयोध्या के दर्शन हो गये, आज तक कभी देखी नहीं।
ReplyDeleteआप मेरे ब्लोग पर आयीं धन्यवाद्। आप का ई-मेल आई डी आप के प्रोफ़ाइल में नहीं मिला इस लिए यहां आभार व्यक्त कर रही हूँ। स्नेह बनाये रखिएगा
जब श्री राम चाहेंगे तो सब फिरसे अपने आप ही ठीक हो जायेगा।
ReplyDeleteदिन बदले, यूं ही सब बेहतर हो
ReplyDeleteHan ji
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