
भीगी आँखों को,
सुबह कि
नमी ने सुखा दिया
रात के गहरे ताप को
सुबह की पहली किरण
मिटा गई
क्षण में सपने बुनती हुई
दूसरे ही क्षण में
सपनों को
टूटते देखना
नियति हो गई
उसकी
मुखोटो की दुनिया में
वो अकेली
खडी रही

मै सारे
पिंजरों को
खोल दू
जिसमे कैद है
मासूम पंछी
मै तमाम
दरवाजे खोल दूं
भीतर है,
बिखरे सपने
मै सारे मुखोटे
खीच लू
जिनके पीछे
छिपे है
शातिर बन्दे
ये पिजरे
ये दरवाजे
ये मुखोटे
तोड़ने लगे है
अब विश्वासों को |
भीगी आँखों को,
ReplyDeleteसुबह कि
नमी ने सुखा दिया
रात के गहरे ताप को
सुबह की पहली किरण
मिटा गई
क्षण में सपने बुनती हुई
दूसरे ही क्षण में
सपनों को
टूटते देखनाये पिजरे
ये दरवाजे
ये मुखोटे
तोड़ने लगे है
अब विश्वासों को
marmik aur bejod ,dil ko sparsh kar gayi ,bahut hi achchhi lagi man nahi bhara ek baar phir aaungi .
ओह! शायद यह अपने को मुक्त करने की कवायद है।
ReplyDeleteअंतरमन को छु गयी ......ये मार्मिक रचना .......बहुत बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteइस स्थिति में, कैसे होगा, सच का सच से सामना ।
ReplyDeleteचुभते हैं जो टेक हटाकर, पुनः स्वयं को थामना ।
ये पिजरे
ReplyDeleteये दरवाजे
ये मुखोटे
तोड़ने लगे है
अब विश्वासों को
--वाह!
जब तक ये नहीं टूटेंगे विश्वास जम नहीं पाएगा लेकिन कितना मुश्किल है इनको तोड़ना..!
सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार।
गहरे भीगे मन से लिखी कविता ... विश्वास टूटने पर दर्द निकलता है जो कलाम के रास्ते बह निकलता है ...
ReplyDeletesapno ko tutte dekhna dil se rista hai.....wahi riste shabd hain ye
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteकितना कड़वा सच, एक एक घूंट जहर की तरह गले से कई बार उतारना भी पड़ता है.क्योंकि मज़बूरी ने हमें हर तरफ से घेरा जो होता है
dil kochu jane wali kavita jo tute huwe viswas pe tiki hai...............
ReplyDeleteये पिजरे
ReplyDeleteये दरवाजे
ये मुखोटे
तोड़ने लगे है
अब विश्वासों को |
aadarniya shobhnaji, behad he unmukt hokar likhi he aapne rachna..yah ehasaas hotaa he ek samvedanshil insaan ko jab use apne charo aour dhundhlaahat se dikhti he, machal jaataa he vo kuchh karne ke liye..tab uske paas kalam hoti he aur vo utaar detaa apni abhivyakti..bahut achhi kavitaa he..
बंधन को खोलने की छटपटाहट साफ़ अभिव्यक्त हो रही है....अच्छी रचना
ReplyDeleteवा
ReplyDeleteविश्वास कितने भी मजबूत दिखें नाज़ुक तो होते ही हैं ।
ReplyDeleteसही है मुखोटों में ज्यादा विश्वास तोड़े है ,इन्ही के पीछे तो शातिर लोग छिपे हुए है |भीगी आँखों को नमी द्वारा सुखाना ,ताप को पहली किरण द्वारा मिटाना और सपनों को नित्य प्रति टूटते देखना अच्छा प्रयोग किया है
ReplyDeleteBahut dino baad aayi aur is rachana ko badi der tak padhti rahi..jeevan ki sachhayee darshati yah kavita behad achhee lagi..
ReplyDeleteरात अश्को से
ReplyDeleteभीगी आँखों को,
सुबह कि
नमी ने सुखा दिया
adhbhut... sirf itna hi kahoonga..
aaj blogging ka pehla din hai aur chahta hoon aaj ki tareekh mein jitna jyada ho sake padh loon..
'ये पिजरे
ReplyDeleteये दरवाजे
ये मुखोटे
तोड़ने लगे है
अब विश्वासों को |'
-लेकिन जरूरत है इस विश्वास को बनाए रखने की.
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ReplyDeleteअपनी मुक्ति से बड़ी कोई मुक्ति नहीं,
ReplyDeleteविश्वासों के टूटने बड़ा कोई घात नहीं
आपकी रचना अत्यंत सुंदर है। बधाई।
एक निवेदन है, मेरे टिप्पणी से पहले जो जापानी या चीनी लिपि में टिप्पणी है, हटा दें क्योंकि यह एक भद्दी साइट पर ले जा रहा लिंक है।
Kavita padhke aisa laga jaise koi saare bandhano se mukt ho unmukt aakash mein udaan bharna chaahta hai!
ReplyDeleteLekin sayyaad hai ke mmauka hi nahin deta......
Bhaavuk!
बन्धन है जो खुलते नहीं.....
ReplyDeleteविश्वाश है जो सिर्फ चंद पर होता है....
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ReplyDeleteमै सारे
ReplyDeleteपिंजरों को
खोल दू
जिसमे कैद है
मासूम पंछी
..marm sparshi rachana .
ant mein vidroh ke swar bhi mukhrit hain.
peeda aur kasak ko vyakt karti hui.
रात अश्को से
ReplyDeleteभीगी आँखों को,
सुबह कि
नमी ने सुखा दिया
रात के गहरे ताप को
सुबह की पहली किरण
मिटा गई
बहुत ही सुंदर कविता ..
ऐसा लग रहा है की मेरे भावों को शब्द मिल गए , मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी..