प्रोफ़ेसर साहब के घर में आज सुबह से ही बधाइयों के फोन पर फोन आ रहे थे घर में जितने मोबाईल थे बारी बारी से बजे जा रहे थे |
प्रोफ़ेसर साहब की पत्नी भी सबको हंस हंस कर धन्यवाद दे रही थी |शीना के पास बैठकर इंतजार करने के आलावा और कोई रास्ता नहीं था ...उसे भी तो आज ही टी वि पर ब्रेकिंग न्यूज में ये खबर दिखानी है |
इसी बीच एक आठ से १० साल के बीच का एक बच्चा उसके सामने चाय की ट्रे रखकर चला गया |
तभी प्रोफ़ेसर साहब भी सामने आकर बैठ गये सूट बूट में -पूछिए आपको क्या पूछना है ?
शीना ने भी अपने केमेरा मेन राकेश को अलर्ट किया औरप्रोफ़ेसर साहब से पूछने लगी ?
शीना -सर -आप तो विज्ञानं के प्रोफ़ेसर है फिर आपकी रूचि साहित्य में कैसे हुई ?और रूचि भी ऐसी की आपने पूरी किताब लिख ली और प्रदेश का सर्वोच्च पुरस्कार भी प्राप्त कर लिया |
सर ये तो बहुत बड़ी उपलब्धी है ,बहुत बहुत बधाई हो हमारे चैनल की और से और सारे दर्शको की तरफ से |
प्रोफ़ेसर -हाँ जी हाँ जी धन्यवाद |
शीना -सर आप कुछ प्रकाश डालेगे आपके उपन्यास के विषय में ?
हाँ क्यों नहीं ?
मैंने बाल श्रम के विरोध में इस उपन्यास की रचना की है क्योकि अभी तक इस विषय पर कुछ खास लिखा नहीं गया है और सरकार बहुत प्रसन्न है की मैंने इतनी संवेदनाओ के साथ इस विषय को लोगो तक पहुंचाया |
इतने में फिर मोबाईल बज उठा प्रोफ़ेसर साहब उठकर कोने में चले गये |उधर उनकी पत्नी फोन पर कह रही थी किसी से -हाँ हाँ क्यों नहीं ?भाई आपको भी मंगवा देगे हमारे कृष्णा जैसा लड़का !भई इसका नाम तो नन्हा था,
पर हमने बदलकर कृष्णा रख दिया इसी बहाने दिन भर भगवान का नाम भी ले लिया जायगा |
अच्छा ठीक है पांच हजार में बात तय होगी चलेगा न ?अबकी छुट्टियों में गाँव जायेगे तब जरुर आपके लिए भी गोविंदा ले आवेगे |नमस्ते ...
अरे कृष्णा !जरा एक कप चाय तो ले आना !
सर भारी हो गया है !
प्रोफ़ेसर साहब अभी भी बधाई लेने में व्यस्त है !!!!!!!!!!!!
शीना ने इधर उधर घर में लगे कुछ मेडल ,कुछ शील्ड ,कुछ ट्राफियो को कवर किया और दोपहर की ब्रेकिग न्यूज बना डाली |
एक महान वैज्ञानिक द्वारा रचित साहित्य का अद्वितीय उपन्यास "सवेदनाओ की राख "को प्रदेश के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजा गया है ...........
बस ऐसा ही है क्या किया जाये..कथनी ओर करनी का फरक है सारा.
ReplyDeleteise kahte hai hathee ke daat khane ke our dikhane ke our .
ReplyDeleteयही विसंगतियां हैं हमारे समाज की...मुहँ पर कुछ और रहता है और कर्म कोई और कहानी कहते हैं...बहुत ही सार्थक लघु -कथा..
ReplyDeleteसार्थक लघुकथा!
ReplyDeleteKya kahun, Shobhna ji? Padh ke man bahut bhari ho gaya..kaisi vidambana hai yah..bahut saral aur sashakt lekhan hai aapka..
ReplyDeleteironical but true..
ReplyDeleteyehi ho raha hai aajkal, samvedna dikhane wale asal mein samvedna rahit hain...
सच बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ कह गयीं
ReplyDeleteक्या भूमिका बांधी है
शोभना जी .
ReplyDeleteयह लघुकथा दोहरे चरित्र को उजागर करती है ।
अति प्रशंसनीय ।
संवेदनशील लघुकथा.....संवेदनाओं की राख का ढेर तो लेखक के घर ही था....
ReplyDeletevirodhatmak nazariyaa ... bada dukhad hai
ReplyDeleteजी हाथी के दांत दिखाने और , और खाने के और होते हैं .....!!!
ReplyDeleteBEHAD UMDA ABHIVYAKTI!
ReplyDeleteAUR SANDESH DENE MEIN SAKSHAM LAGHUKATHA!
AABHAR TATHA SAADAR VANDAN!
dekhan me chhote lage ,ghanv kare gambhir .chhoti rachna magar baate gambhir hai .isliye har baat par yakeen nahi kiya jata .sundar .
ReplyDeleteलघु कथा पढ़ी |बहुत अच्छी लगी |बधाई
ReplyDeleteआशा
samvedan sheel laghu katha.
ReplyDeleteKarni aur kathni mein antar aaj hamare samaj kee ek bahut badi bidambana hai...
ReplyDeleteLaghukatha ke madhyam se aapne es virodhabhas ka bakhubi anjaam diya hai..
यह लघु कथा हमें समझाती है कि जो लोग बड़े बन जाते हैं, जरूरी नहीं कि वाकई बड़े हों..कथनी और करनी में भारी फर्क होता है.
ReplyDeleteकिसी को सही समझने के लिए यह देखना चाहिए कि वह अपने से कमजोर तबके के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है..?
..प्रेरक व् जनोपयोगी शानदार लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें.
अधिकतर यही देखने को मिलता है हमारे यहाँ ....क्या कहें ...!
ReplyDeleteकथनी और करनी में कितना फ़र्क होता है ... अच्छी व्यंग कथा है ... हक़ीकत के बहुत करीब ...
ReplyDeleteसुन्दर, सार्थक लघु-कथा.
ReplyDeleteलघु कथा बहुत अच्छी लगी ..
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