
अब तक दादा कि ४० पुस्तके प्रकाशित |
प्रस्तुत कविताये उनके एकमात्र काव्य संग्रह " क्रोंच कि चीख " १९९५ से साभार है |
"यज्ञ की समिधा "
मैंने कभी यज्ञ नहीं किया ,
मै स्वयम यज्ञ कि समिधा हूँ |
मैंने कभी गंगा नहीं नहाया ,
मेरे शरीर से
पसीने कि गंगा यमुना बहती रहती है |
मैंने कभी उपवास नहीं किया
मै स्वयम भूखा हूँ |
मैंने कभी दान नहीं दिया ,
मेरा शरीर झाड़े गये तिल्ली(तिल ) के ,
खोखले डंठल कि तरह खड़ा है |
मैंने कभी कलम नहीं चलाई,
मुझपर कलम चलाकर ही
वे अपनी दुकाने चला रहे है |
मैंने कभी सेवा नहीं की
मेरी सेवा के नाम पर
वे सत्ताधीश बने बैठे है |
मैंने कभी भोज नहीं किया ,
हर भोज में
रक्त की गंध आती है |
"नैवेध्य"
फुल्के की तरह
रात के काले
तवे पर
उलटने पलटने के पश्चात् ,
दिन की भट्टी में सिककर
जिस जिन्दगी पर
दाग नहीं लगता ,
वही भगवान को
नैवेध्य
लगाने के काम
आती है |
-रामनारायण उपाध्याय
Behad sashakt rachanaon se aapne parichay karwaya!
ReplyDeleteदोनों रचनाये बहुत अच्छी हैं.आभार.
ReplyDeleteआत्म के आलोक से उत्पन्न दोनों कवितायें। हर पंक्ति विचार उड़ेलती हुयी।
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ हवन करती सी ....खुद को होम किया तभी ऐसी कविताओं ने जन्म लिया ...
ReplyDeleteइन कविताओं को पढवाने के लिए आभार
दोनों रचनाये ही बहुत जबरदस्त हैं.विचारणीय . शुक्रिया हमें पढाने के लिए.
ReplyDeleteसच तो यह है कि हम दादा की इतनी बेहतरीन रचना पर अपनी छोटी सी बुद्धि लगाकर कोई कमेंट कैसे कर सकते हैं? यह हमारे लिये सूरज को दिया दिखाने जैसा है। उन्हें नमन और आपसे निवेदन कि और भी इस तरह की रचनायें प्रस्तुत करें ताकि हमारी रचनात्मकता को प्रकाश मिलता रहे। दिशा मिलती
ReplyDeleteमैंने कभी यज्ञ नहीं किया ,
ReplyDeleteमै स्वयम यज्ञ कि समिधा हूँ |
क्या बात है!! बहुत बहुत आभार इतनी सुन्दर रचनायें पढवाने के लिये.
बहुत सुंदर विचारों की बानगी हैं रचनाएँ.... .... पढवाने के लिए आभार .....
ReplyDeleteपद्मश्री रामनारायण उपाध्याय जी की दोनों कवितायेँ मन को झंझोड का रख देने वाली हैं.
ReplyDeleteदोनों में अभिव्यक्ति बहुत ही जबरदस्त है..
खास कर पहली कविता में तीखे कटाक्ष सोच को पैना करते हैं.
ज़बर्दस्त रचनायें पढवाने के लिये आभार्।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट का लिंक कल शुक्रवार को (२६--११-- २०१० ) चर्चा मंच पर भी है ...
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
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एक महान विभूति से परिचय करवाने का आभार! उनकी रचनाएँ कालजयी हैं!! बहुत छोटा पाता हूँ उनके लिखे पर कुछ कहने के लिए,सिवा नतमस्तक होने के कोई प्रतिक्रिया नहीं!!
ReplyDeleteआप सभी का ह्रदय से आभार |
ReplyDelete@अमिताभजी मै जरुर कोशिश करुँगी दादा की और रचनाये पोस्ट करने की |धन्यवाद |
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ReplyDeleteऐसी उम्दा सोच विरले ही किसी की होती है । दादा रामनारायण को मेरा नमन एवं इस उत्कृष्ट रचना को पढवाने के लिए आपका आभार।
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बहुत ही प्रभावी रचनाये हैं ... शाशाक्त ... लाजवाब ... आपका बहुत बहुत शुक्रिया .....
ReplyDeleteअंतर्मन आलोकित करती,प्रकाश बिखेरती अद्वितीय कवितायें...
ReplyDeleteआभार पढवाने के लिए...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसशक्त रचनाओं से परिचय कराने हेतु आभार!
ReplyDeleteदोनों रचनाये बहुत विचारणीय हैं. आभार
ReplyDeleteउजासमयी, मर्मस्पर्शी रचनाएं पढ़वाने के लिए आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
मैंने कभी कलम नहीं चलाई,
ReplyDeleteमुझपर कलम चलाकर ही
वे अपनी दुकाने चला रहे है |
मैंने कभी सेवा नहीं की
मेरी सेवा के नाम पर
वे सत्ताधीश बने बैठे है |
मैंने कभी भोज नहीं किया ,
हर भोज में
रक्त की गंध आती है |
waah, bahut acchhi lagi !
बहुत ही जबरदस्त हैं दोनो ही रचनायें । नैवेद्य बहुत बढिया ।
ReplyDeletebehatreen
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