Wednesday, December 01, 2010

दर्शन

वो मोर मुकुट वाला
आँखों में शरारत लिए
मेरे सम्मुख खड़ा है
मै उसे निहारती |

उसके होठो से लगी
मुरली की तान सुनकर
जीवंत होती
या कि अपनी
सुध बुध खो देती |


मेरी कल्पना है
या ,आभास
उसमे डूबती उतरती
परमानन्द को पाती |

मेरी कामना हो पूरी
ये आकांक्षा नहीं
सदा मै
तुम्हे पुकारू
ये आकांक्षा
रहे मेरी |

18 comments:

  1. मेरी कल्पना है
    या ,आभास
    वो मोर मुकुट बंसी वाला ...सामने खड़ा उसे निहारती ...

    गदगद हुए ...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  2. मुरलीधारी मधुर मनोहर।

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  3. बहुत पावन सुन्दर सी रचना.

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  4. सदा मै
    तुम्हे पुकारू
    ये आकांक्षा
    रहे मेरी |
    बस यही आकांक्षा बनी रहनी चाहिये…………भक्ति रस से ओत-प्रोत रचना।

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  5. ईश्वर आपकी आकांक्षाओ और कामनाओ दोनो को पूरा करे।
    सच्ची भक्ति पूर्ण रचना

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  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (2/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  7. मुरली वाले की बात ही कुछ और है ...

    निराला है कृष्ण

    मनोज खत्री
    ---
    यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल - अंतिम भाग

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  8. मेरी कल्पना है
    या ,आभास
    उसमे डूबती उतरती
    परमानन्द को पाती |
    बिलकुल भाव-विभोर कर देने वाली रचना

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  9. बहुत सुन्दर भक्ति रस से ओत-प्रोत रचना।

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  10. उसके होठो से लगी
    मुरली की तान सुनकर
    जीवंत होती
    या कि अपनी
    सुध बुध खो देती |
    बहुत ही सुंदर स्तुति..... मनोहारी रचना

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  11. .

    श्रीकृष्ण चिंतन और मुरली की धुन में ही जगत की समस्त समस्यायों का हल है। इश्वर आपको खुशियाँ और मन का सुकून दे। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका आभार।

    .

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  12. आदरणीया शोभना चौरे जी
    प्रणाम !


    कृष्ण-भक्ति और प्रेम की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आपने अपनी रचना के माध्यम से पहुंचाई है … आभार !

    मेरी कामना हो पूरी
    ये आकांक्षा नहीं
    सदा मै
    तुम्हे पुकारू
    ये आकांक्षा
    रहे मेरी


    सच है , प्रेम प्रत्युत्तर में कुछ मांगता नहीं … प्रेम करते रहना ही चाहता है सच्चा प्रेमी !


    कृष्ण-प्रेम में लिखी मेरी एक ग़ज़ल का एक शे'र और फिर मतला आपको सादर समर्पित कर रहा हूं -
    वो तब भी सबसे दूर था , वो अब भी पास है
    काइम जहां में उसकी ही ज़ादूगरी रही

    उस मोरपांख वाले से दीवानगी रही
    उसकी ही बंदगी में ज़िंदगी मेरी रही

    सादर शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  13. मेरी कामना हो पूरी
    ये आकांक्षा नहीं
    सदा मै
    तुम्हे पुकारू
    ये आकांक्षा
    रहे मेरी ...

    यह आकांक्षा पूरी होना ही जीवन की उपलब्धि है..बहुत सुन्दर भक्तिपूर्ण रचना...आभार

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  14. शोभना माँ,
    सुन्दर चित्रण,
    जय श्री कृष्ण.
    आशीष
    ---
    नौकरी इज़ नौकरी!

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  15. मेरी कामना हो पूरी
    ये आकांक्षा नहीं
    सदा मै
    तुम्हे पुकारू
    ये आकांक्षा
    रहे मेरी |
    ....man ke sachhe udgaar...
    saparpit bhakti ka sundar roop... man ko bahut achha laga..

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  16. मेरी कल्पना है
    या ,आभास
    उसमे डूबती उतरती
    परमानन्द को पाती |
    Kaisi awastha hogi ye bhee!

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