मै नहीं जानती ये कविता कैसे बन कैसे बन गई ?एक क्षण कुछ महसूस किया और अगले एक मिनिट में
यह रचना बन गई |
घर में रखे पुराने सामान की तरह
चमकाए जाते है, कभी कभी वो
आज निर्जीव ही सही
कभी जीवन्तता थी उनमे
महकता था उनकी सांसो से घर
चहकता था उनके बोलों से घर
गूंजते थे अमृत वाणी से मंत्र
सौंधी खुशबू से महकती थी रसोई
भरे जाते थे कटोरदान ,पड़ोसियों के लिए
किससे कहे ?कैसे कहे ?
निर्जीव क्या बोलते है ?
उनकी सारी खूबियों पर है प्रश्न चिन्ह ?
बिताते है इस उक्ति के सहारे
वो जीवन की शाम
"कर लिया सो काम ,भज लिया सो राम "|
यह रचना बन गई |
घर में रखे पुराने सामान की तरह
चमकाए जाते है, कभी कभी वो
आज निर्जीव ही सही
कभी जीवन्तता थी उनमे
महकता था उनकी सांसो से घर
चहकता था उनके बोलों से घर
गूंजते थे अमृत वाणी से मंत्र
सौंधी खुशबू से महकती थी रसोई
भरे जाते थे कटोरदान ,पड़ोसियों के लिए
किससे कहे ?कैसे कहे ?
निर्जीव क्या बोलते है ?
उनकी सारी खूबियों पर है प्रश्न चिन्ह ?
बिताते है इस उक्ति के सहारे
वो जीवन की शाम
"कर लिया सो काम ,भज लिया सो राम "|
गहरे तक छू गयी ये रचना बल्कि उदास कर गयी..
ReplyDeleteएक सच यह भी है
समय को साधे रहें, जब तक हो गतिमान बने रहें,
ReplyDeleteगहरी कविता।
उदासी लिए ... गहरी रचना ...
ReplyDeleteहिला गई अंदर तक ...
सच को कहती मार्मिक रचना ।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना बनी है ..!
ReplyDeleteखरा सच.. और कड़वा भी, ज़हर की मानिंद
ReplyDeleteअपेक्षाएं और दुखी करती हैं उस शाम की बेला में. ह्रदयद्रवित करती प्रस्तुति लेकिन सच के करीब.
ReplyDeleteबिताते है इस उक्ति के सहारे
ReplyDeleteवो जीवन की शाम
"कर लिया सो काम ,भज लिया सो राम "|
...एक कटु सत्य..अंतस को छू गयी..
एक सच ... हर शब्द के साथ शुरू से अंत तक चल रहा है ...
ReplyDeleteसादर
दिल के गहराई से निकली रचना ।
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