आज एक पुरानी कविता ही पोस्ट कर रही हूँ |
शायद आप सब भी मेरे साथ यादो में खो जाये |
मेरे सिरहाने रखी
यादो की पोटली में
बंधी यादों ने
विनती कर मुझसे कहा -
अब तो मुझे खोल दो
कितने बार ही
खुश होती हूँ
जब तुम ये पोटली खोलती हो?
अब मेरी आजाद होने की बारी है
लेकिन ,तुम मुझे?
तह करके फिर से लगा देती हो
करीने से
और बांध देतो हो फिर पोटली में
मै तुम्हारी
इस करीने वाली आदत से
परेशान हो गई हूँ
यादो ने बड़ी मासूमियत
से कहा-
मुझे बिखरे रहना ही अच्छा लगताहै|
और यादो ने
बाहर निकलने के लिए
अपने लिए अपने कोना निकाल ही लिया
और मुझे मुंह चिढ़ाकर
बिखरने लगी
तुम्हारी मीठी याद
जब तुमने अपनी माँ की
आँखों में
अपने लिए प्यार का सागर देखा
तो तुमने महसूस किया
ईश्वर तुम्हारे पास है
जब तुमसे
सबंधित ,असंबंधित,और आभासी लोग भी
भी तुमसे अपार स्नेह रखते है
तब भी ईश्वर को तुमने
महसूस किया है
जब जब ,तुममे इर्ष्या द्वेष
के भाव जगे है
तब भी तो तुम्हारे अन्दर
बसे ईश्वर ने ही
तुम्हे उससे उबारा है |
तुम्हारी इन डबडबाई
आँखों को देखकर मै
तुम्हारे इन आंसुओ को
लेकर मै
वापिस पोटली में चली जाती हूँ
क्योकि
ये ही तो तुम्हारी पूँजी है |
ऐसी ही तो होती है यादें ...मर्मस्पर्शी रचना.
ReplyDeleteये पोटलियाँ अपने में कितने बेशकीमती खजाने छिपाए रहती हैं... एक ऐसी दौलत जो हर किसी के पास है और रहती है उसी के पास जो इसकी क़द्र करना जानते हैं.. जैसे आप!!
ReplyDeleteयादे सच में ऐसी ही हुआ करती हैं .... ....संवेदनशील भाव शोभना जी
ReplyDeleteआपकी यह यादों की पोटली पहले भी बहुत पसंद आई थी ..आज भी ...बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteयादें तो सच में प्यारी होती हैं, रोचक होती हैं।
ReplyDeleteबहुत ही कमाल की है ये यादों की पोटली
ReplyDeleteबेहतरीन प्यारी सी रचना...
ये यादों की पोटलियाँ कभी कभी सुख देती हे तो कभी कभी बहुत दुख देती हे, बहुत सुंदर रच्ना, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना| धन्यवाद|
ReplyDelete.
ReplyDeleteइश्वर अनेकों रूप में हमारे आस पास ही होते हैं । बहुत बार साक्षात दर्शन किये हैं इश्वर के , स्नेह करने वालों में। आँखें जब डबडबाती हैं तो हर बार कोई अपना मिल ही जाता है इस भीड़ में उन मोतियों को संभालने के लिए ।
स्मृतियों की सुन्दर , सरल पोटली भावुक कर गयी ।
.
यादो के पात अनुभव भी कराती है नेत्रों को छलकाती भी है सुख के साथ दुःख भी बाँटती है
ReplyDeletebahut sunder hai aapki yaadonki potli...
ReplyDeleteयादों की पोटली कभी कभी खोल लेनी चाहिए संवेदनशील रचना , बधाई
ReplyDeleteyaade aesi hi hoti hai ,bahut sundar .
ReplyDeleteयादों का वर्तमान से द्वन्द. सुंदर मर्मस्पर्शी रचना.
ReplyDeletemarmsparshee rachana.
ReplyDeleteaap apana phone number de deejiye mai aapko sampark kar lungee.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
एक बन्द पिटारी खोली तो
ReplyDeleteकुछ गर्द उड़ी, कुछ सीलन थी
कुछ पन्ने उड़कर हाथ आ गए
इक बूंद आँख से तभी गिरी -----
मुझे मेरी कविता की पंक्तियां याद आ गयी। शौभना जी यह पोस्ट मैंने पहले ही पढ़ ली थी लेकिन नेट के कारण टिप्पणी नहीं कर पायी थी। बहुत भावुक कविता है, बधाई।
yaadein yaad ati hain........
ReplyDeleteजब जब ,तुममे इर्ष्या द्वेष
ReplyDeleteके भाव जगे है
तब भी तो तुम्हारे अन्दर
बसे ईश्वर ने ही
तुम्हे उससे उबारा है |
यादों की पोटली बेहतरीन
yaadon ki potli kahti hai mujhe kholo ... yaadon ke sang yun baaten ek uplabdhi hai, bahut badhiyaa
ReplyDeleteअतीत की सुनहरी स्मृतियां शायद ऐसी ही पोटलियों में महफूज रह पाती हैं ।
ReplyDeleteअतीत की सुनहरी स्मृतियां शायद ऐसी ही पोटलियों में महफूज रह पाती हैं ।
ReplyDeletebahut ander tak kuchh jagah bana gayi aapki ye kavita.
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