अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर संसार की समस्त महिलाओ का हार्दिक अभिनन्दन
धात्री
वो कभी हिसाब नही मागती
तुम एक बीज डालते हो
वो अनगिनत दाने देती है
बीज भी उसी का होता है ,
और वो ही उसे उर्वरक बनती है
अपनी कोखमेंअनेक कष्ट सहकर
उस बीज को पुष्ट बनाती है
और जब अकुरित हो
अपने हाथ पाव पसारता है
तब वो खुश होती है आन्दित होकर तुम्हे पनपने देती है
किंतु तुम उसे कष्ट देकर बाहर आ जाते हो
इतराने लगते हो अपने अस्तित्व पर
पालते हो भरम अपने होने का
लोगो की भूख मिटने का
तुम बडे होकर फ़िर फ़ैल जाते हो
उसकी छाती पर
अपना हक़ जमाने
तुम हिसाब करने लगते हो
उसके आकर का ,उसके प्रकार का
भूल जाते हो उसकी उर्वरा शक्ति को ,
जो उसने तुम्हे भी दी
तुमनिस्तेज हो पुनः
उसी में विलीन हो जाते हो
न ही वो बीज को दर्द सुनाती है न ही बीजडालने वाले को
वो निरंतर देतीजाती है
Sunday, March 08, 2009
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2 टिप्पणियाँ:
your poems is hart tiuchung. pl come for rivew
http://katha-chakra.blogspot.com
akhileshji dhanywad
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