Thursday, July 31, 2014

हम सब उसकी संतान है

कितने लोग ईश्वर के अस्तित्व को मानते है ,नहीं मानते सबके अपने अपने तर्क है अपनी आस्था है अपना विश्वास है यह बहस युगो से चली आ रही है और चलती रहेगी । दिन रात समाचारो में अपराध ,बलात्कार हत्याए समाचार देख सुन अच्छा क्या होता है ?मानो घटता ही नही है  बहुत मेहनत     करके भी अपना परिवार का गुजर मुश्किल से कर प् रहे है इसमें कितनी ही महिलाये अपने परिवार के लिए अथक मेहनत करती है सुबह शाम तक ऐसी ही चिकर घिन्नी की तरह घूमती  एक महिला है जो एक ब्यूटी पार्लर में काम करती है जहा वह सुबह ११ बजे से ७ बजे तक जाती है और उसके पहले सुबह तीन घरो में खाना बनाती है और छुट्टी के दिन मालिश का काम करती है और अपने दो बच्चो को अच्छे ?स्कूल  में पढ़ाती है ,उसका पति ड्राइवर है महीने में तीन या चार बार ड्राइवरी करता है और हफ्ते भर शराब पिता है और जब कम पड़  जाते है पत्नी के आगे हाथ फैला  देता है | दोनों ने १२ साल पहले प्रेम विवाह किया था | धर्म परिवर्तन करके सेवा कार्य करने अग्रणी संस्थाओ के ईश्वर को वह नहीं मानता और रात को दाल चावल आटा  नमक सब मिलकर रख देता है सुबह अपनी पत्नी को कहता है बुलाओ तुम्हारे ईश्वर को और उससे कहो -ये सब चीजे अलग करे |

कितने अलग अलग तरह के दुखो से गुजरती होगी यह महिला उसकी इस  तकलीफ को देखकर निशब्द हो जाते है हम जब वो कभी घर आती है मैंने पिछले सात साल में कभी उसको मुस्कुराते हुए नहीं देखा |


Thursday, July 03, 2014

"नाम में क्या रखा है ?"

आज से ४० से ५० साल पहले तक अधिकांश घरो में सात ,आठ ,नौ भाई बहन होना आम बात थी इससे ज्यादा भी हो सकते है और साथ साथ ही गुड्डू ,बड़ा गुड्डू ,छोटा गुड्डू , पप्पू ,मुन्नू ,नन्नू ,बाबा ,बबली ,गुड़िया जैसे ही घर के नाम रखे जाते थे. वो तो भला हो राजकपूर जी का जिनपर फिल्माए गए गीत "मेरा नाम राजू घराना अनाम बहती है गंगा जहाँ मेरा धाम "से घर घर राजू हो गए राजू चाचा ,राजू मामा आज तक चल रहे है। हमारे एक रिश्तेदार थे घर में बुलाये गए  नाम से बच्चो को ज्यादा जानते थे एक बार अपने ही एक बच्चे के एडमिशन के लिए स्कूल गए जब वह बच्चे का नाम लिखने की जगह ,तो नाम ही नहीं मालूम उस समय ५ साल के बच्चे को भी अपना असली नाम नहीं !मालूम उसने पप्पू बता दिया .| पिता श्री ने भी तुरंत नया नामकरण कर दिलीप रख दिया क्योकि उस समय बहुत फेमस थे  हीरो दिलीप कुमार। घर जाकर जन्म पत्री देखि तो उसमे अशोक नाम था । लड़कियों को ज्यादा स्कूल भेजने का प्रचलन नहीं था सो जो नाम घर में वही बाहर भी|  ऐसी एक परिवार में सात बहने थी उनका नाम था ,काजू ,किसमिस ,केसर, बादामी ,इमरती ,जलेबी और बर्फी | बहुए आती तो अगर दूसरे शहर या गांव की होती तो उनका परिचय उनका गांव या शहर ही रहता या मुन्ना की बहु आदि आदि और अगर उसी शहर  की होती तो उनके मोह्हले से उन्हें पुकारा जाता।
ये तो आज बच्चो के के हिसाब से काफी पुरानी बात लगती है. हम आज के १५ साल पहले जिस टाउनशिप में रहते थे वहाँ महिलाओ को भाभीजी ,या मिसेस वर्मा या शर्मा जो भी सरनेम हो उससे ही पुकारा जाता था क्योकि फैक्ट्री की टाउनशिप में फैक्ट्री में काम करने वालो का ही परिवार रहता था और काम करने वाले पुरुष ही थे इसलिए उनके नाम से ही जाना जाता था। आज जब" फेसबुक "जैसा माध्यम हो गया है अपने पुराने साथियो से मिलने का, तो कभी कभी बड़ी कोफ़्त होती है की हमने कुछ बहनो के आलावा और बहनो के नाम क्यों नहीं जाने ?कम से कम नाम मालूम  होते तो उन्हें ढूंढा तो जा सकता है। इसलिए" नाम में क्या रखा है "
इसे हल्के में न लेकर उसके महत्व को पहचानना जरुरी है।