Tuesday, May 18, 2010

गर्मी में महकता मोगरा



गर्मी
में
लदी है मोगरे की डालियाँ
गर्मी में
फैली है, हर तरफ
आमो की खुशबू
तरबूजो की ,खरबूजो की
बहार है
लीची ,शहतूतो ,जामुनो की भरमार है
फिर भी
हाय गर्मी ,हाय गर्मी
कहते हुए हम बेहाल है |
इस साल बहुत गर्मी है, जब भी किसी से मिलते है ?तो प्रार भिक बातचीत के बाद यही एक जुमला होता है |अरे भाई साल दर साल इतनी ही गर्मी होती है हाँ ये बात अलग है की टी वि पार रोज चढ़ा हुआ पारा देखकर हमे ज्यादा गर्मी का अहसास होने लगता है औरहो भी क्यों न ?बाजारवाद हम पार हावी जो हो चला है |और इस बाजारवाद ने हमारी सहनशक्ति को ही लील लिया है |बिजली के उपकरणों के बिना हम जीना ही भूल गये है |किसी समय में हर मध्यम वर्गीय घर में एक अदद टेबल फेन होता था जो किसी मेहमान के आने पर लगाया जाता था \धीरे धीरे छत के पंखे आये ,फिर कूलर और अब तो बिना ए .सी के गुजारा ही नहीं |



जमीन से लगा पौधा और उसमे फूल ही फूल |
अगर बिजली चली जाय तो छोटे छोटे बच्चे सो ही नहीं पाते |और गाँव में ये आलम है की बहर खुले में भी लोग कूलर चलाकर सोते है (अगर घंटा दो घंटा बिजली रही तो )|१० साल पहले भी ४५ डिग्री पारा था २० साल पहले भी और रिकार्ड बताते है की ५० साल पहले भी इतना ही पारा रहता था तब भी लोग काम करते थे अब भी करते है फर्क इतना है की अब सुविधाओ में रहकर ही काम किया जा सकता है |प्रकृति अपने नियम से ही चलती है ये अपने उपर है की हम उसे कितने सामान्य ढंग से जीते है |इस पर मुझे एक लोक कथा याद आ रही है जो मेरे दादाजी अक्सर हमे बचपन में सुनाया करते थे |
गर्मी की छुट्टियों में पूरे दो महीने गाँव में ही बीतते थे उस समय कोई समर क्लासेस नही होती थी और चाचा ,बुआ मामा के सभी भाई बहन एक साथ रहकर आम ,तरबूज इमली के चटखारे लेना ,मिटटी के खिओलोने बनाना घर के काम करना और बस मस्ती करना |तब भरी दोपहर से हम सबको बचाने के लिए बैठक में दादाजी हाथ में पंखा लिए ये कथा कहते |
एक बूढी माँ गंगा के किनारे रहती थी अपनी झोपडी बनाकर |गर्मियों में सूत काटती चरखा चलाकर ,जड़ो में स्वेटर बुनती बरसात में गोदाड़ियाँ सिलती और कभी कभी खेत में भी मजदूरी करने चली जाती |सुबह शाम भगवान की आराधना करती |
साधू संतो को भोजन कराती दीन दुखियो की सेवा करती |बरसो तक उसका यही क्रम चलता रहता चाहे कितनी बरसात हो कितनी ही गर्मी ही कितनी ही ठण्ड हो |भगवान राम उसकी इस दिनचर्या से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सोचा चलो आज मै की परीक्षा ली जाय ,वो साधारण इन्सान का भेष बना कर माँ की कुटिया में गये ,माँ ने उन्हें आदर के साथ बैठाया जलपान कराया |
फिर रामजी ने माँ से पूछा ?
क्यों माई ?
खूब धूप पड़ रही है ,सूरज आग उगल रहा है तुम यहाँ कैसे रह पाती हो ?तुम्हे तकलीफ नहीं होती क्या ?
माँ ने जवाब दिया -क्यों भैया धूप नहीं पड़ेगी तो बादल कैसे बने गे और बादल नहीं बनेगे तो बरसात कैसी होगी ?
और ये भी तो भगवान की ही देन है |
फिर रामजी ने माँ से पुछा ?
फिर तो बरसात में तुम को बहुत परेशानी होती होगी गंगा जी में तो बहुत पानी भर जाता होगा? तुम्हारी झोपडी मेभी पानी भर जाता होगा चारो और कीचड ही कीचड ?
माँ ने प्यार से कहा -भैया बरसात नही होगी तो किसान अन्न कैसा बोयेगा धरती में ?फिर हम सब क्या खायेगे ?
और मेरी झोपडी का क्या ?जहाँ पानी टपकता है बर्तन रख देती हूँ मुझे कितनी जगह चहिये सोने को ?और गंगा माँ को भरपूर देखकर जो आनंद मन में उठता है उसकी तो तुम कल्पना भी नहीं कर सकते |
फिर रामजी ने पुछा ?
सर्दियों में तो बहुत ठण्ड लगती होगी ?नदी का किनारा है |
मै फिर उमंग से बोली बेटा -सर्दियों में बर्फ नही जमेगी तो गंगा मै में पानी कहाँ से आवेगा ?और पानी नहीं होगा तो भाप कैसे बनेगी भाप नहीं बने गी तो बरसात कैसे होगी?फसल कैसे होगी ?
देने वाले श्री भगवान
इस पर भगवान प्रसन्न होते है औरमाँ को दर्शन देकर उस झोपडी की जगह महल बना देते है |
किन्तु बूढी माँ की दिनचर्या फिर भी वही रहती है |
अब माँ के पडोस में एक और बुढिया रहती थी उसने माँ का महल देखा तो माँ से पूछने लगी? रातो रात ये चमत्कार कैसा हो गया ?
माँ ने सहज भाव से कहा रामजी आये थे किरपा कर गये |
बस फिर क्या बुढिया सुबह शाम रामजी की मूर्ति पर जल चढ़ाती ,अगर भूले भटके में कोई आता तो उसे भगा देती मेरे घर में कुछ नही है ,दिन भर खटिया पर पड़ी रहती और मुझे महल दे दो , मुझे महल दे दो रटा करती |
रामजी ने सोचा ?चलो कैसे भी हो मेरा स्मरण करती है दर्शन दे ही दू ?
रामजी गये बुढिया के घर
पूछा ?और माँ क्या हाल है ?
अरे भाई मत पूछो ?पसीना निकल रहा है ,न कुछ खाने को है ?न कुछ पीने को ?
मै तो तुझे पानी भी नहीं पिला सकती |

आग लगे इस गर्मी को |
फिर रामजी ने पुछा ?फिर तो तुमको बरसात में अच्छा लगता होगा पानी ही पानी ?अरे बरसात तो इससे भी बुरी -पूरी झोपडी टपकती है चारो तरफ कीचड ही कीचड न कही आ सकती न कही जा सकती ?
खीजते हुए बुढिया ने उत्तर दिया |
तब तो जाड़े में बहुत अच्छा लगता होगा ?रामजी ने पुछा ?
अरे कहा ठंड के कारण अकड जाती हूँ कोई पानी देने वाला भी नहीं रहता |
और बुढिया ने रामजी से कहा -अरे भाई जाओ न क्यों मेरा माथा खा रहे हो /
मुझे महल दे दो , मुझे महल दे दो जपने लगी!
रामजी ने कहा -मै तो महल ही देने आया था पर उसमे भी तुम्हे तकलीफ होगी ,इसलिए तुम ऐसे ही रहो |और झोपडी भी चली गई और रामजी अन्तर्धान हो गये |
तो जैसे ठूंठ का अपना सौन्दर्य होता है ,फिर गर्मी तो हमे बहुत कुछ देकर जाती है साल दर साल फिर हाय गर्मी क्यों?

Monday, May 03, 2010

रिटायर मेंट और स्वामीजी का नजरिया ..........









`ट्रेन से जैसे ही उतरते है सामान लेकर| तुरंत कुली आता है .
कितना लोगे ?चार डाक (नग )का ?कुली अपने सर पर रखने वाला वाला कपडा अपने ही हाथो से गोल गोल घुमाता है और सामान उठाने का उपक्रम करता है और कहता है १०० रूपये ?
अरे !अरे! चार नग के इतने रूपये ?सब तो हलके है |मै सिर्फ खड़ी हूँ और देखती हूँ की मुझे कैसे इसमें से अपना सामान उठाना है क्योकि मुझे मालूम है मेरे पति देव कभी भी इतने रूपये तो कुली को देगे नहीं ?१० मिनट तक बहस होगी ,और फिर भी बात नहीं बने गी |जब मोल तोल कर ५० रपये पर कुली राजी हुआ तो पति देव बोले ४० रूपये ले लो मै रिटायर्ड आदमी हूँ |
तो यात्रा क्यों करते हो ?टका सा जवाब देकर वो कुली चलता बना |
जब आजू बाजू देखा तो प्लेटफार्म लगभग खली हो चुका रहता है और कोई कुली भी नहीं दिखाई दे रहा है काफी सारे लोग कुली के सर पर या जिनका ज्यादा सामान है वो गाड़ी में लदवाकर शान से चले जा रहे है |हम दोनों भी याने की मेरे पति और मै मूक निगाहों एक दुसरे की भाषा समझ कर सामान उठाकर चलने लगते है और पुल से नीचे आने पर देखते है कुली हमे देखकर मुस्कुरा रहा होता है |
अब सामने रिक्शा वाला खड़ा है
बाबूजी कहाँ चलना है ?
पतिदेव उसकी तरफ देखते नहीं!? उन्हें लगता है ये ज्यादा पैसा मांगते है एकदम बाहर निकलकर आते है रेलवे स्टेशन के और सडक पर आने जाने वाले रिक्शा को हाथ दिखाते है, उससे वही बहस मै रिटायर्ड आदमी हूँ इतने पैसे कहाँ से दूंगा |रिक्क्षा वाले की मुस्कराहट मेरे सब्र के बांध तोड़ देती है मै इन पर खीज जाती हूँ \और कहने लगती हूँ क्या घर तक भी पैदल चलना होगा ?घर पांच किलोमीटर दूर है तब ये रिक्क्षा में बैठते है |घर आने तक हमारा मौन वाक युद्ध चलता है हमारे रिटायर मेंट से कुली और रिक्श्वाले को क्या लेना देना |उन्हें भी तो अपनी रोजी रोटी कमाना है? मन ही मन बुदबुदाती |रिटायर्ड नहीं हुए थे तो जितने पैसे वो मांगते थे तो दे देते थे क्या ?
सब के सब लूटने बैठे है |क्या हमारे पास फोकट में पैसा आता है ? इन्ही विचारो के साथ मौन बहस के साथ घर आजाते |
इन्ही सब के गुजरते हमे भी हरिद्वार कुम्भ स्नान की लालसा हुई हमारे कुछ मित्रो के परिवार साथ हम लोगो का कार्यक्रम तय हुआ |
सभी परिवार मुंबई से थे हमारे पुराने साथी |कुल ९ लोग थे |बड़ी मुश्किल से एक निर्माण धीन धर्मशाला में रूकने की जगह मिली |जब हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर उतरे तो पूरा प्लेटफार्म लोगो से पटा पड़ा था बड़ी कठिनाइयों से अपने अपने ट्राली बेग खीचकर बाहर आये तो पता चला स्टेशन से दो या तीन किलोमीटर तक कोई वाहन नहीं मिलेगा \अब हमारे पतिदेव को न तो कुली से और नहीं रिक्क्षावाला को ये कहना पड़ेगा की भाई मै रिटायर हो गया हूँ अपने आप ही पैसे बच गये |हमारी धर्मशाला बहुत दूर थी कोई भी वाहन वहां जाने को तैयार नहीं था पिछले १० दिनों से और दर्शनीय स्थल देखते देखते वैसे ही हम सब लोग थक गये थे और अमावस्या के स्न्नान के दूसरे दिन भीड़ के रेले के रेले चले जा रहे थे कोई स्नान करके लौट रहा था तो कोई स्नान करने जा रहा रहा था |हर की पोड़ी
ऋषिकेश


हमें
तो कोई दिशा का ज्ञान ही नहीं हो पा रहा था हमारे कुम्भ आने का उत्साह फीका पड़ता जा रहा था जिस भी टेक्सी वाले को पूछो कोई जाने को तैयार नहीं पुलिस से जानकारी मांगी तो कहते थोडा और आगे
चलो वहां से टेक्सी मिल जावेगी |,अभी तक सिर्फ टी.वि पर कुम्भ मेला देखा था प्रत्यक्ष मेला देखने का सुयोग पहली बार ही मिला था |लोग अपना सामान कोई हाथ में कोई सर पर रखकर चलते जा रहे थे |और उन सबके बीच हम सब लोग अपनी अपनी ट्रालिया बेग पर्स घसीटते हुए मेले का तमाशा बने जा रहे थे |बड़ी मुश्किल से एक बड़ा रिक्क्षा मिला उसने कहा -अगर
वाहनों को जाने देना शुरू किया होगा तो ले चलूँगा वर्ना वही छोड़ दूंगा हम सब तो कही तक भी जाने को तैयार थे |भाव भी नहीं पुछा उसने ५०० रूपये मांगे सम सब मय सामान के बैठ गये उसमे कैरियर भी नहीं था सारा सामान गोद में में लेकर हवा आने को भी जगह नहीं थी बस तसल्ली थी की अपने गंतव्य पर जा रहे थे और संयोग से वाहन प्रतिबन्ध हट गया था तो सीधे धर्मशाला पहुँच गये|
सामान से लदे फदे ....





धर्मशाला पहुंचने पर हमारा बहुत अच्छी तरह से स्वागत हुआ कोई आश्रम के भक्तो के लिए भक्तो के सहयोग से ही धर्मशाला बन रही थी |महा कुम्भ के चलते भक्तो के लिए अस्थायी व्यवस्था कर दी थी |हमें अपने एक परिचित भक्त के सहयोग से यहाँ आश्रय मिला था |उस दिन तो दिन भर आराम किया शाम को पास ही गंगा घाट था वहां गये गंगाजी के दर्शन करते ही सारी थकावट दूर हो गई |लोटते में फिर पैदल ही चलना था रास्ते भर आश्रमों के पोस्टर राम कथा ,भगवत कथा सत्संग अलग अलग सम्प्रदायों के बड़े बड़े पोस्टर |मन में एका एक ख्याल आया जिस तरह मुंबई में सिने स्टार की भरमार है जगह जगह उनके द्वारा अभिनीत फिल्मो के पोस्टर है कुछ इसी तरह यहाँ अनेक साधू संतो के बड़े बड़े सेट्स पंडाल और पोस्टर लगे है |
अलग ही अनुभूति हो रही थी |
दूसरे दिन आश्रम के बड़े स्वामीजी वहां आये थे हम सभी लोगो ने उनके दर्शन करने का निश्चय किया उनके शिष्यों ने व्यवस्था की स्वामीजी हमारा इंतजार ही कर रहे थे |सुन्दर वातानुकूलित कमरा ,चाँदी का स्वामीजी का सिहांसन ,सामने बड़े बड़े सोफे, नीचे सफेद चादरे बिछी हुई थी |ऐसा लग रहा था मानो कोई सीरियल का सेट था |हम सभी लोग नमस्कार कर बैठ गये हमसे पहले एक भक्त परिवार आया दर्शन किये प्रणाम किया और साथ ही मोटा सा लिफाफा भेंट किया \हम सब एक दूसरेका मुंह देखने लगे क्योकि हम सब तो खाली हाथ ही दर्शन करने आ गये थे |
इस बीच स्वामीजी लगातार मोबाईल पर बात कर रहे थे |
कुछ इस तरह कह रहे थे -मुझे पूरी खबर दो कल की भगदड़ में क्या हुआ ?
फिर हमारे तरफ मुखातिब हो कहने लगे -अच्छा आप लोग मुंबई से आये है ?
कोई तकलीफ तो नहीं ?
नहीं नहीं कोई तकलीफ नहीं बहुत अच्छा इंतजाम है |हम सब एक साथ बोल उठे |
फिर हमारे साथ के पुरुषो से परिचय पाने लगे |कोई बैंक से रिटायर्ड , कोई मार्केटिग कोई रिटायर्ड इंजिनियर |हम सब महिलाये भी अपने अपने क्षेत्र में पूरी तरह समर्पित थी और अपना नौकरी का कार्यकाल पूरा करने बावजूद हर कोई ,कोई न कोई सेवा की गतिविधियों से जुड़ा था |
हम सबका परिचय जानने के बाद उन्होंने अपने शिष्य जो की उनकी सेवा में तैनात था उसे धीरे से कुछ कहा -उसने हम सबको एक -एक चाकलेट दी और कहा स्वामीजी को आजअभी निकलना है दिल्ली के लिए पिछले तीन महीने से यही है |
आगे की बहुत सारी योजनाये है उसके लिए उन्हें दोरे पर जाना है |
बिलकुल !
हम सब उठ गये |तरुण स्वामीजी प्रेस किये भगवा कपडे पहने , हाथमे लेपटाप लिए बड़ी सी वातानुकूलित गाड़ी के लिए उठ गये ,धर्मशाला में जितने लोग ठहरे थे सब हाथ जोड़े उन्हें विदाई दे रहे थे |साथ ही दिल्ली के कुछ बड़े व्यापारी उनके खाने पीने की वस्तुए रखवाने में व्यस्त थे |
और हमनोकरी पेशा रिटायर्ड लोग न ही बराबर हाथ जोड़ पा रहे थे और नहीं उनकी कोई व्यवस्था कर पा रहे थे |
उनके जाने के बाद मालूम पड़ा जो रसोइये भोजन बना रहे थे वे भी चले गये |हमे अपनी व्यवस्था खुद करनी होगी |
जाते जाते स्वामीजी कह गये थे हम यहाँ आराम से रह सकते है रिटायर्ड लोग जो ठहरे ....