Thursday, July 30, 2009

परिवर्तन

बहुत सालो पहले शायद २० साल पहले मैंने यह व्यग्य लिखा था कही भी प्रकाशित नही हुआ था |उस समय सत्ता में परिवर्तन की लहर चली थी और उसी से प्रेरित होकर लिखा लिखा था |आज कितना प्रासगिक है आप तय करेगे |

इधर कुछ सालो से मेरे देश में परिवर्तन की एक लहर सी चली है ,फ़िर वो परिवर्तन चाहे सत्ता में हो ,समाज में हो या फ़िर मुझमे ही हो ?देश में तो परिवर्तन की लहर ही क्यो ? समझो आंधी ही आई और इस आंधी ने सारी सारी सत्ता को ही परिवर्तित कर डाला और यह परिवर्तन बडा सुखद है ऐसा लोग कहते है ?कितु क्या आपने उस परिवर्तन को देखा है ?जिसने समाज के स्वरूप को ही बदलकर उसे कितना कुरूप बना दिया है ?आपसी संबंधो और रिश्तो की पहचान ही ख़त्म हो गई है |अपनापन प्यार ममता सब कुछ स्वार्थ और दिखावापन की भेट चढ़ गये है |तभी तो बेटो के रहते माँ बाप को वृधाश्रमो का सहारा लेना पड़ा |कभी जिन बुजुर्गो से घर की बैठक आबाद होती थी ,आज उन्ही को ड्राइंग रूम में प्रवेश न करने की हिदायते दी जाती है
और यह परिवर्तन की ही देन है की जिन पालकों ने हमे एक खुशनुमा मुकाम तक पहुचाया वाही आज बोझ समझकर हमारे द्वारा सिर्फ़ ढोए जा रहे है |
जिन बच्चो की किलकारियों से घर का कोना कोना गूंजता था उनका बचपन छीनकर उन्हें सुदूर होस्टलों में भेजकर उसके भविष्य को सुरक्षित रखकर उसे आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दी जाती है |
चाहे वो माँ बाप के प्यार को तरसता अनेक बुराइयों की ओर ही क्यो न अग्रसर हो जाय | और ये सब परिवर्तन के नाम पर ही होगा न ?क्योकि जिन स्कूलों में पुरानी पीढी ने शिक्षा ली है उनका वो स्टेंडर्ड ही कहाँ रहा अब ?
फ़िर मेरे देश में मेरे समाज में ऐसा परिवर्तन आया की न किसी की आह निकली न ही किसा का दिल पसीजा क्योकि पहले कुछ बहुए जलाई जाती थी, अब तो कुछ के आकडे चोगुने या फ़िर आठ गुने होते चले गये और मेरा ये समाज मौन साधे इस घ्रणित परिवर्तन को स्वीकार करता चला गया ,क्योकि कही न कही, थोड़ा न थोड़ा प्रत्येक इन्सान के मन में दहेज का लालच चाहे वो उपहार ही क्यो न हो?विद्यमान रहता है |और उसकी निमित्त बनती है बहुए !क्योकि वः दुसरे की बेटी होती है |
पहले तो कन्या को जन्म होते ही मार दिया जाता था परन्तु परिवर्तन अब इतना की गर्भ में ही भ्रूण के रूप में ही उसको समाप्त कर देते है |इसके लिए हम आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं के आभारी है की न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी |
और साहब मै तो परिवर्तन की आदी हो गई हूँ |जीवन की हरेक दिशा में परिवर्तन लाने में की जैसे मुझे धुन सवार हो गई है|
अपने लंबे बालो को मैंने छाँट लिया है ,साडी जिसे पहनने में मुझे तखलीफ़ होती है और फ़िर बरसो से मेरी दादी नानी साडी पहनती आई है , आख़िर इसे तो मुझे बदलना ही होगा ?और परिवर्तन के नाम पर मैंने अपनी सम्पूर्ण गरिमा को महज तथाकथित आधुनिका बनने के चक्कर में खो दिया |परन्तु लाख कोशिश के बावजूद भी मै अपने रुढिवादी विचारो और ही अपनी संकुचित मनोवृति और स्वार्थी आदतों में परिवर्तन नही ला सकी |वैसे भी कहते है !मनुष्य की आदते कुत्ते की पूंछ सी होती है चाहे उसे कितना ही सीधा करो वो टेढी की टेढी ही रहेगी ,ठीक उसी प्रकार देश में कितने भी अच्छे परिवर्तन जाय ,मेरा निजी लालच स्वार्थ और स्वांग कभी भी परिवर्तित नही होगा |यही स्वार्थी मन आदते और संकुचित मनोवृति विनाशकारी परिवर्तनों को जन्म देगी |

विशेष नोट ;महानुभावो ,ये तो थी मेरे देश में परिवर्तन की छोटी सी" तस्वीर" आप चाहे तो इसे इनलार्ज करके अपने ड्राइंग रूम में लगा सकते है और बारीकिया देखकर उन्हें नज़र अंदाज करके उसमे परिवर्तन लाने का प्रयत्न करेगे |
धन्यवाद

Friday, July 24, 2009

निमित्त

मै ही सीता हूँ
जिसे
अपनी मर्यादा को
बचाने केलिए
वन भेज दिया

मैही शूर्पनखा हूँ
जिसे तुमने
प्रणय निवेदन करने पर
क्षत विक्षत कर दिया

मै ही द्रोपदी हुँ
जिसे तुमने
अंधे के दरबार में
दाव पर लगा दिया

कभी तुमने मर्यादा का
अहंकार किया
कभी तुमने
अपने पुरूष होने का
अहंकार किया
कभी तुमने
अपने पद का अंहकार किया
मुझे क्षत विक्षत
करके भी तुमने
मेरा ही अपहरण किया ?

मेरा चीर हरण
करके
मुझे महाभारत का
निमित्त बनाया ?

मैंने ही
तम्हें रचा ,तुम्हारा सरजन किया

तुमने मुझे

कभी बिह्डो में छोडा

कभी बाजार में बेचा

एक

सुंदर ससार की सहभागी बनू

ये समानता थी मेरी

कितु तुमने ही

मुझे कैकयी बनाया

मन्थरा बनाया

अपने ग्रंथो में


मै चुप रही

आज तुमने मुझे

फिरसे

आदमियों के जंगल में

खड़ा करदिया है

बिकने के लिए


नही?

अब कोई मेरा
अपहरण nhi करेगा
न ही मेरा चीर हरण करेगा

न ही मुझे धरती में समाना होगा

न ही मुझे किसी की
जंघा पर बैठना होगा
मालूम है ?
तुम्हे
क्यो ?
क्योकि !
शक्ति ने
स्वीकार ली है,
नर- बलि |
shobhana chourey






Monday, July 20, 2009

रेल की पटरी

सूर्य देवता फिर अपने नियत समय पर आगमन कर चुके थे .उनकी रश्मिया चारो और छा गई थी | बाहर की हलचल साफ सुनाई देने लगी थी| दूध वालो कि सायकिल की घंटिया अपने चिर परिचित अंदाज में चहकने लगी थी |
अख़बार वाले कि घंटी कि आवाज सुनकर सीमा गैस बंद कर मुख्य दरवाजा खोलने आई ,दरवाजा खोलकर अखबार उठाकर उसने दरवाजा खुला ही रहने दिया सोचा! अभी तो दूध वाला आएगा? और अखबार पढ़ने बैठी ही थी कि,
विशाल आँखे मलता हुआ बाहर आया .और सीमा के हाथ से अखबार ले सीमा को चाय लाने का कहकर सोफे पर पांव पसारकर अखबार पढ़ने बैठ गया |अखबार पढ़ते पढ़ते उसकी नजर बाहर के खुले दरवाजे कि तरफ गई |उसने जोर से सीमा को आवाज लगाई और कहने लगा कितनी बार तुम्हे कहा है? दरवाजा खुला मत छोड़ा करो ?पर सुनता कौन है ?बाहर वालो को कैसे मालूम पडे ?कि हमारे घर में हेमा मालिनी रहती है ?और उठकर दरवाजा टिका दिया |सीमा आई और चुपचाप चाय रखकर चली गई, उसने कोई जवाब नही दिया, वः तो ऐसी बातो कि आदी हो गई थी रसोई में जाकर उसने जल्दी से परांठे बनाये विशाल का टिफिन भरा अपना टिफिन भरा इतने में ही सासू माँ का स्वर सुनाई दिया;
अभी तक मेरी चाय नही बनी क्या?
सीमा फटाफट उनको चाय का कप दे आई |तब तक फिर से विशाल कि से जोर- जोर से आवाज सुनाई देने लगी ,मेरे सारे सहयोगी कार से आते है एक मै ही हूँ ?जो ससुराल के इस फटीचर स्कूटर से ऑफिस जाता हूँ ,सोचा था फ्लैट नही तो कम से कम अपनी इकलौती बेटी को कार तो देगे ससुरजी |
पर अपनी ऐसी किसमत कहाँ ?इतने में विशाल कि माँ भी बेटे कि हाँ में हाँ मिलाने आ बैठी |विशाल नहाकर तोलिया लपेटकर कपडे ढूंढ़ते उसने फ़िर सीमा को आवाज दी ,मेरे कपड़े कहाँ है ?सीमा फ़िर अपना हाथ काम छोड़कर आई उसने चुपचाप कपड़े निकालकर विशाल के सामने रख दिए |उसे अपने पति की रोज की इस दिनचर्या की आदत हो गई थी |उसने जाते जाते इतना कहा -नाश्ता टेबल पर रखा है, मेरी बस निकल जायेगी मै जा रही हूँ |
बाहर आकर माजी से कहा आपका खाना ,नाश्ता सब टेबल पर रखा है !खा लीजियेगा |
माजी भी तैयार ही बैठी थी सीमा को प्रसाद देने -सोचा था बहु आएगी तो सेवा करेगी पर यहाँ तो सुबह से शाम तक अकेले ही घूरते रहो दीवारों को ?और सारे घर की रखवाली करो |अरे कार नही तो कुछ रोकडा ही दे देते ?या नौकर रख देते ??दहेज मे भी बस कुछ बर्तन और वो ठीकरा देकर छुट्टी पा लिए ,इससे तो शर्माजी की बेटी आती तो मुह मांगी रकम तो मिलती सावली थी तो क्या?रूप रंग तो थोड़े दिनों का होता है |
इतने में फोन बज उठा -सीमा बाहर पांव रख भी न पाई थी की विशाल जोर से बोल चिल्लाया अरे! फोन तो सुनती जाओ शायद तुम्हारे पूज्य पिताश्री का हो ?तुम कितनी तकलीफ में हो ,कहकर ये जानने के लिए फोन किया हो ?मै तो हेल्लो कहूगा तो फोन रख देगे? या उपदेश देना शुरू कर देगे || |सीमा ने कभी अपने घर की बात पिता के घर में नही की| कितु उन लोगो का व्यवहार देखकर वो अच्छी तरह जान गये थे, किस प्रक्रति है ये लोग ?
उसने फोन उठाया ,और बात की उसके चेहरे पर चिता की रेखाए उभर आई |
उसने कहा -मै आ रही हूँ
विशाल बोला- अभी तो तुम्हे देर हो रही थी और अब कहाँ जा रही हो ?क्या कहा ?किसका फोन था ?
सीमा जिसने कभी पलटकर जवाब नही दिया था -खडी हो गई ठीक विशाल के सामने और उसकी आँखों में आँखों में डालकर बोली -पिताजी ने कहा है -मैंने रेलवे में एक बोगी का आर्डर कर दिया है 1तुम्हे दहेज में देने के लिए किन्तु
जिनके पास रेल चलाने पटरी होगी उन्हें ही मिल सकती है? वो बोगी |तो दामादजी से कहना पटरियों का इंतजाम कर ले |
इतना कहकर तेजी से सीमा बाहर निकल गई उसे अस्पताल जाना था, जहाँ अभी अभी उसके पिताजी को लेकर गये थे क्योकि उन्हें दिल का दौरा पडा था .....................

Sunday, July 19, 2009

ऐसा क्यों है ?

कभी कभी दिमाग में , और मन में हमेशा कुछ प्रशन उठते रहते है कि लोगो कि जिन्दगी और उनसे जुड़े कार्यो में इतना विरोधाभास क्यों है ?


ऐसा क्यों होता है ?
,अधिकतर
सबका रूप निखारने वाली ,स्वयम डरावनी क्यों है?
जिम का मालिक इतना मोटा क्यों होता है?
फल बेचने वाले इतना कड़वा क्यों बोलते है?
बादाम बेचेवालो का दिमाग सुस्त क्यों होता है?
बैंक में कम करने वालेकी मुस्कराहट इतनी महंगी क्यों होती है ?
दूसरो का घर बनाने वाले वाले खुद बेघर क्यों होते है ?
बेशुमार अन्न पैदा करने वाले किसान ही भूखे पेट आत्महत्या क्यों करते है ?
जीवन भर दूसरो के लिए महा म्रत्युन्जय के जप पाठ करने वालो को दिन रात अपनी म्रत्यु का भय क्यों होता है ?
जीवन भर शादी कराने वाले पंडित कि बेटी आजीवन क्वारी क्यों रह जाती है ?
हर विश्व सुन्दरी और क्रिकेट खिलाडी समाज सेवा का व्रत लेते है ,फिरभी गली गली बच्चे अनपढ़ क्यों है?
शादी में लाखो का खर्च करके भी तलाकों कि बढ़ती संख्या क्यों है?
बेटिया लक्ष्मी का रूप है पर घर में जन्मते ही बाप का bojh kyo hai .......

Saturday, July 11, 2009

बचपन तो जी लेने दो

कौनसी श्रेणी ?
अभी दो दिन पहले समाचार था की १४ वर्ष से कम के बच्चे बाल श्रम (बाल श्रम कानून हम सब जानते है)कानून के अंतर्गत आते है |यह कानून कई सालो से है बावजूद इसके होटलों में ,दुकानों में , dhabo में रेलवे स्टेशनों आदि जगहों पर बाल श्रमिक देखे जा सकते है बहुतायत से |
इसके आलावा टेलीविजन पर धारावाहिकोंमें ,विज्ञापनों में रियलिटी शो में सेक्डो की संख्या में बाल श्रम देखा जा सकता है |अभी तक ये नही मालूम? की ये कलाकार जिनकी उम्र लगभग ५ साल से लेकर १२ या १३ साल तक की है
इन्हें कोनसे श्रम की श्रेणी में रखा है ?
आज एक बहुत अजीब बात देखने को मिली मुझे अ जीब लगी पर शायद पहले भी किसी ने देखा हो ?मैने यहा बेगलोर में घर पास ही एक छोटा सा गणपति का मन्दिर है वहा देखा एक १० साल का बच्चा रेशम की धोती पहने ,गले में जनेऊ धारण किये पुजारी की डयूटीका निर्वाह कर रहा था |यहा ज्यादातर मंदिरों में रिवाज है जितने भी भक्त आते है,( पुजारी हाथ में आरती जिसमे दीपक होता है एक हाथ में घंटी होती है) हर भक्त लिए अलग से भगवान की आरती उतारते है और भक्त उसमे पैसा डालते है |उस बच्चे का रोज का यही काम है |सुबहरोज ७ से ११ बजे तक और शाम को ४से ९ बजे तक |असे और भी कितने ही बच्चे भक्तो की सेवा करते होगे ?
ऐसे बच्चे कोनसे श्रम की श्रेणी में आयेगे ?

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Thursday, July 09, 2009

अपनी बात

सालो बाद मेरी पुरानी सहेली से मुलाकात हुई| कुशल क्षेम पूछने के बाद आदतन मैंने अपनी ताना मारने वाली शैली में पूछ ही लिया -और बहुए कैसी हा?
उसने सहजता से जवाब दिया -अच्छी है |
मेरे अन्दर कुछ भरभराकर ढह गया |मै बहुत सारी उम्मीद लगाकर बैठी थी की बहू का नाम सुनते ही अभी वो ठंडी साँस लेगी और इस बहाने मै भी थोड़ा मन हल्का कर लूगी आख़िर वो मेरी सहेली है ?और उसकी भी तो बहूऐ है?|ऐसा कैसा हो सकता है ?ये तो बिल्कुल ही खामोश है |
मैंने बेवजह नकली हँसी हँसते हुए फ़िर पूछा ?
तुम्हारी तो एक बहू नौकरी करती है ,और दूसरी ब्यूटी पार्लर चलाती है ,तब तो तुम्हे ही सारे के काम करने पड़ते होगे ?
देखो क्या जमाना गया है ?बेटो की शादी करो बहू लाओ ?सोचते है अब बहू गई है तो चलो घर के काम से छुटकारा मिलेगा ?और भगवत भजन करेगे किंतु तुम तो अभी भी वही घर के तंतो में पडी हो |
भाई मैंने तो इसीलिए कह दिया था- अपने पति और बेटे से? मुझे कोई नौकरी वाली बहू नही चाहिए |हा कह देती हूँ ?
वो मेम सा .तो चली बाहर? और मै पुरा

दिन चूल्हे चक्की में पिसती रहू और इनके ताबरो (बच्चो ) को भी संभालो ?
मेरी बात ख़त्म ही हुई थी की मेरी सहेली ने मुझसे पूछ लिया ?
अच्छा तुम्हारी बहू तो घर मेही रहती है तो तुम्हे आराम ही आराम है |गर्म रोटी खाने को मिलती होगी ?
अरे कहाँ ?थोड़े दिन साथ में रही घर में ,फ़िर तो वही नौकरी का भूत सवार !अपन तो शुरू से ही इसके खिलाफ थे |
सो अपने से तो पटी नही?और अब हमसे अलग रहती है ,और १००० रूपये के लिए मारी मारी नौकरी करती फिरती है |
इस बीच मै देख रही थी मेरी सहेली के चेहरों के भावो को मुझे ऐसा लगा मानो वो मुझसे पीछा छुडाने की कीकोशिश कर रही थी ,कही वो इस शादी के रिसेप्शन की भीड़ में खो जाय और मै जान भी पाऊ? उसकी बहुओ के नजारे ......
मैंने फटाफट एक जलेबी उसकी प्लेट में डाल दी !अरे ;बस वो कहती ही रही| मै आश्वस्त ! हो गई ,अब तो जरुर कुछ कहेगी
मेरे सब्र का बाँध टूटने को था आख़िर रिसेप्शन में एक जन से ही थोड़ा मिला जाता है ?मुझे और भी लोगो से मिलना था |
मैंने फ़िर पूछ ही लिया ?तुम्हारा तो सब ठीक है ?बहुओ के साथ ?
मै जितनी आतुर और व्यग्र हो रही थी उसने उतनी ही शान्ति से जवाब दिया |
मेरी बहूये ? हम साथ ही रहते है सब मिलकर काम करते है ,उन्होंने घर के काम के लिए मेरे लिए पूरे दिन की सहायिका रख दी है और साफ कह दिया है - मम्मीजी आप ज्यादा काम नही करेगी |बहुत कर लिया काम आप तो बस आर्डर करो और जो भी काम ,कोई भी अपनी पसंद का जिसे आप पहले कभी कर नही पाई थी अब शुरू कर दो |बस मैंने भी तब से पेंटिग बनाना शुरू कर दिया तुम तो जानती ही हो ?मुझे पेंटिग का कितना शौक था |

मेरे हाथ में रखी प्लेट का वजन मुझे ज्यादा लगने लगा था|
मै
नजरे घुमा कर देख रही थी शायद कोई परिचित मिल जाय |
उसने फ़िर कहा -मेरी बहुओ से मै हमेशा कुछ कुछ सीखती हूँ ,वो दूसरे परिवार से आई है संस्कार ,संस्क्रती के नये रूप लेकर| उनके घर के रीति -रिवाज ,रहन सहन ,खान-पान की विविधता को अपनाने में हम साँस बहुयें कब एक साथ हो गये मालूम ही नही पडा |
मैंने कहा -पानी पीने चले ?मेरी आवाज की तल्खी जाने कहाँलुप्त हो गई ?
उसने कहा -हाँ !चलो बातो बातो में कुछ ज्यादा ही खा लिया फ़िर स्टेज पर लिफाफा देने भी भी तो जाना है |
हम दोनों ने प्लेट रखी और चलने लगे -
मेरे तो जैसे शब्द ही चुक गये थे |उसने मुझसे कहा -तुम भी तो इतने सुंदर भजन लिखती थी और साथ में गाती भी थी क्यो उनकी एक किताब छपवा लो ?
अब तो बस मै सुन रही थी ,इतने में ही उसके पति उसे ढूंढ़ते हुए गये उसने मेरा परिचय करवाया और अपने पर्स में से एक कार्ड निकल कर दिया और कहा -मेरी पेंटिग की प्रदर्शनी है अगले रविवार को |तुम जरुर आना |फ़िर अपने पति की और देखकर कहा -आपके वो प्रकाशक मित्र है ? ?उनसे मेरी इस सहेली को मिलवा दीजियेगा ये भजन बहुत अच्छे लिखती है |उन्होंने कहा -क्यो नही ?
फ़िर उन्होंने कहा -आप प्रदर्शनी में आयेंगी तब आपको उन प्रकाशक महोदय से मिलवा दूंगा |
अच्छा चलें !
कहकर दोनों ने हाथ जोड़कर नमते कहा और जाते जाते मेरी सहेली कहते गई -कार्ड में फोन नंबर है जरुर करना |
मै उस .कार्ड को हाथ में लिए देखती रही ............


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Wednesday, July 08, 2009

राखी का स्वयंबर

"बाजारवाद की अतिरंजना "

Tuesday, July 07, 2009

गुरू प्रणाम

गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर ब्लॉग जगत के सभी लोगो को हार्दिक शुभकामनाये |
और इसी अवसर पर प्रत्यक्ष ,अप्रत्यक्ष रूप से ब्लॉग लिखने की , पढ़ने की और जिनसे ब्लॉग के जरिये इस एक साल में बहुत कुछ पाया ,उन सभी गुरू को मेरा सादर नमन.
शोभना चौरे

Saturday, July 04, 2009

क्या आप मेरा साथ देगें ????????


मै लिखती रही
चाँद सितारों पर
मै लिखती रही
समुंदर के किनारों पर
मै भरती रही पन्ने
मजदूर के पसीने की
फुहारों पर !

मै लिखती रही
बदलती सरकारों पर
मै भरती रही पन्ने
रोज़ होते रहे
बलात्कारों पर !

मैंने पूछा ?
चाँद तारो से ,समुंदर के किनारों और
मजदूरो से ?
तुमने कभी पढा मुझे ?

मैंने पूछा?
सरकारी मन्त्रियों और
बलात्कारियों से ,
तुमने कभी पढ़ा मुझे ?

मै बहसती रही
दूसरो के साथ |
शब्दों के तीर
एक दूसरे पर चलाकर |

क्या?

आतंक फैलाने वालो
आतकवादियोंने
कभी पढ़ा मुझे ?????????/

चाँद सितारे ,
मुझे रौशनी देने वाले ,
समुंदर के किनारे,
मुझे सहारा देने वाले ,
मजदूर
मुझे घर देने वाले
मुझे पढे या न पढे ?
फिर भी रिणी
हूँ मै उनकी |

फिर भी
मुझे पढना ही होगा ?
मै पढूंगी -
मै पढना चाहती हूँ ?
चाँद तारो की रौशनी को ,
किनारों की सच्चाई को ,
मजदूरों की मजबूरी को ,
मै समझना चाहती हूँ ,
मंत्रियो के
उस सिलेबस को
जो कभी भी
वो पूरा नही पढ़ते
और
बैठ जाते है परीक्षा देने !

और
मै पढना
चाहती हूँ ?

जिन्होंने

अनर्थ किया है
मेरे देश का
उन

बलात्कारियों और आतंकी
की जाति; - को ?
क्या आप मेरा साथ देगे ??????????



Thursday, July 02, 2009

मानसून को आने तो दीजिये

आज के अख़बार में देखा मानसून की चर्चा ,ब्लॉग में मानसून की चर्चा अभी तो सिर्फ़ फुहारे आई है अभी तो धरती बहूत प्यासीहै |हम थोड़े से में खुश हो लेते है जगह जगह प्लास्टिक की थैलियों के अटकने से जाम हो जाता है तो सडको पर भी पानी भर जाता है हम खुश हो जाते है अख़बार वाले एक फोटो छाप देते है ,टी .वि .वाले एक गढ्डाभरा दिखा देते है |और ख़बर दे देते है मानसून आ गया |अभी तो सिर्फ़ छीटे बोछारे आई है जरा झमाझम बरसने दीजिये अभी से क्यो छाता निकल लिया ?थोड़ा भीग लीजिये |अभी तो किसान बैठा है !बीज डालने को तैयार? जब बीज डलेगा तो समझो मानसून आया|
नदियों को भरने दीजिये |कुओ को भरने दीजिये |मेंढक को टर्र टर्र करने दीजिये .........

अभी तो आओ बरखा को थोड़ा सा मनुहार करके बुलाये .......

पाणी बाबा, आओ रे काकडी भुट्टा लाव रे |

(पानी बाबा बरसो रे और संग में काकडी औरमकई के भुट्टे लाओ )

और जब झमाझम झडी लगे पानी की चारो तरफ जल ही जल हो कुए तालाब लबालब हो ,पशु पक्षी के लिए सर्वत्र घास ही घास हो हरी हरी, किसान को दम मारने की फुर्सत न हो पक्षियों का मधुर कलरव हो तो ......
तब firसे एक बार प्यार से मनुहार करना बरखा रानी की -

बरसो राम धडाके से
बुढिया जी उठे कडाके से .................