Tuesday, December 18, 2012

मेरा शहर ,तुम्हारा शहर

सबके  अपने शहर होते है ।
कुछ सामने होते है ,
कुछ यादो में रहते है ।

चमकती बिन्दियों के सुनहरे पत्तों में
एक अदद  लाल   गोल "माथे की बिंदी "
खोजती रही  मै ,मेरे शहर में .....

सैकड़ो   तरह  की सजी  मिठाइयों के बीच 
कागज की पुडिया  में बंधे "पेड़े " की मिठास 
खोजती रही  मै , मेरे शहर में ....

मन्दिरों में बजते डी .जे .के शोर में ,,
घंटियों की सुमधुर  ध्वनि  और" हरे राम" की धुन 
खोजती रही मै, मेरे शहर में ....

मोबाईल फोन , लेपटाप की दुकानों की बाढ़ में 
मेरे बच्चों के बचपन का पुस्तकालय 
खोजती रही मै मेरे शहर में ....

अतीत क्या कभी बूढ़ा होता है ?
खोजने की जरुरत नहीं  
मेरा शहर "मार्डन  "  हो गया है 
मेरे पोते पोतियों (ग्रेंड चिल्ड्रेन )की तरह ।










Thursday, September 13, 2012

"और एक अभिलाषा "

 बहुत दिनों बाद कुछ लिख पा  रही हूँ ,इस बिच आप  सभी लोगो को थोडा थोडा ही पढ़ पाई ऐसा लगा मनो बहुत कुछ छुट रहा है कोशिश करुँगी आप सबसे जुडी रह पाऊ ।आपसभी ने मुझे समय समय पर यद् किया अनेकानेक धन्यवाद ।

नदी?
 कब ?कैसे जन्मी ?
अपनी
अनवरत यात्रा में
अनगिनत
 जीवन सींचती रही
अपने ही
 किनारों के  ।

किनारे सम्रद्ध  होते रहे,
समर्थ होते रहे  ।
यूँ तो,
 किनारे मिलते रहे
कभी नाव के सहारे
कभी पुल के माध्यम से
किन्तु,
नदी की अभिलाषा
 पनपती रही
अपने किनारों को,
आपस में जोड़ने की ।
और  ,
नदी
 अपनी ही इस जिद में
सिकुड़ती गई ,सिकुड़ती गई
और
एक दिन
सुनसान रेत
बन गई
नदी  :










Saturday, May 26, 2012

कुछ कड़ियाँ ,जो आपस में जुडती ही नहीं ?

     1.

मेरे सिरहाने
बैठी यादे
जुड़ जाती है
और
सक्रीय होकर
सपने बुन लेती है ,
अपनी कल्पनाओ की
झालरों के साथ 
       2.
फूलो की बस्ती में ,
पत्थरों का क्या काम?
रंगों की मस्ती में ,
सफेदी का क्या काम?
चंदा की चांदनी में ,
रूपसी का क्या काम?
सूरज की रौशनी में ,
चिरागों का क्या काम ?

        3.
अपराधी पिता को
बचाने
संकल्पित पुत्री को देखकर
उसी पिता के पुत्र का
उत्तर -
हाँ !वे ऐसा कर सकते है ?
उत्तराधिकारी को
परिभाषित कर गया .........












Sunday, April 08, 2012

बस कुछ यू ही ?

बहुत दिनों बाद अप सबसे मिलना हो रहा है सभी को स्नेह भरा नमस्कार |


बरसो से
कटोरा सामने रखकर
नुक्कड़ पर बैठी
कभी भी बूढी
न होने वाली
बुढिया

और
बरसो से
फुटपाथ पर
चाय और सिगरेट
बेचती
असमय ही
बूढी होती
बुढिया
मानो ,
अकर्मण्य सरकार का
लम्बा खोखला जीवन