बहुत दिनों बाद अप सबसे मिलना हो रहा है सभी को स्नेह भरा नमस्कार |
बरसो से
कटोरा सामने रखकर
नुक्कड़ पर बैठी
कभी भी बूढी
न होने वाली
बुढिया
और
बरसो से
फुटपाथ पर
चाय और सिगरेट
बेचती
असमय ही
बूढी होती
बुढिया
मानो ,
अकर्मण्य सरकार का
लम्बा खोखला जीवन
बरसो से
कटोरा सामने रखकर
नुक्कड़ पर बैठी
कभी भी बूढी
न होने वाली
बुढिया
और
बरसो से
फुटपाथ पर
चाय और सिगरेट
बेचती
असमय ही
बूढी होती
बुढिया
मानो ,
अकर्मण्य सरकार का
लम्बा खोखला जीवन
17 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
शोभना जी!...स्वागत है आपका!...बहुत दिनों बाद आप आई और इतनी सुन्दर रचना का उपहार दिया....शुभकामनाएं!
Bade dinon baad aapko padhna bahut achha laga!
मार्मिक स्थिति समाज की, विकास की।
दीदी,
सचमुच बहुत लंबा बीत गया.. मगर सारी शिकायतें दूर हो गयीं इस कविता से!! दिल को छूती हुई रचना!!
मानो ,
अकर्मण्य सरकार का
लम्बा खोखला जीवन
Bahut Badhiya...Gahan Abhivykti...
सटीक और सार्थक रचना ...
अकर्मण्यता लंबे जीवन को खोखला कर देती है. बेमानी बना देती है...
अत्यंत सार्थक सन्देश. आभार इस सुंदर प्रस्तुति को हम सब तक पहुंचाने के लिये.
सुन्दर प्रस्तुति
सच्चाई बयां करती पंक्तियां ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति.............
saarthak rachna..badhai
स्वागत है आपका लंबे समय के बाद ... प्रभावी उपस्थिति दर्द की है आपने ...
आसपास बिखरी सच्चाई के दो रूप ...
बहुत कुछ बदल रहा और बहुत कुछ नहीं भी !
sach baaten to bahut kahi jaati hain lekin vote batorne ke baad sab apne mein kho jaate hai..aas-paas ka dikhte hi nahi ki kya hora hai..
samajik bidambana ka chintansheel yartharth chitran prastuti hetu aabhar!
लंबे समय बाद आईं है वापस पर लेखनी की धार कायम है । स्वागत है ।
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