मेरा ये भ्रम
मुझे जीवन देता है
की चाँद ,
तुम मेरे साथ-साथ
चलते हो |
ये भ्रम ,ये आभास
ये कल्पना भी
तभी है
जब मै
तुम्हे चाँद
ही रहने देती हूँ |
तुम्हे पाऊं
तुमहारे कांधे प़र
सर रखू
ऐसी मेरी
कोई तमन्ना नहीं
तुम्हारी तरह
अपनों के काँधे
प़र बन्दूक रखू
ऐसी मेरी फितरत नहीं
तुम्हारे शब्दों के
तीर सहू
तुम्हारी अंकशायिनी बन
इतराऊं
सिर्फ
ये ही तो
मेरी किस्मत नहीं ?
मुझे जीवन देता है
की चाँद ,
तुम मेरे साथ-साथ
चलते हो |
ये भ्रम ,ये आभास
ये कल्पना भी
तभी है
जब मै
तुम्हे चाँद
ही रहने देती हूँ |
तुम्हे पाऊं
तुमहारे कांधे प़र
सर रखू
ऐसी मेरी
कोई तमन्ना नहीं
तुम्हारी तरह
अपनों के काँधे
प़र बन्दूक रखू
ऐसी मेरी फितरत नहीं
तुम्हारे शब्दों के
तीर सहू
तुम्हारी अंकशायिनी बन
इतराऊं
सिर्फ
ये ही तो
मेरी किस्मत नहीं ?
25 टिप्पणियाँ:
waah...
waah...
बेहतरीन।
सादर
तुम्हे पाऊं
तुमहारे कांधे प़र
सर रखू
ऐसी मेरी
कोई तमन्ना नहीं
तुम्हारी तरह
अपनों के काँधे
प़र बन्दूक रखू
ऐसी मेरी फितरत नहीं
Kya baat hai!
ये भ्रम ,ये आभास
ये कल्पना भी
तभी है
जब मै
तुम्हे चाँद
ही रहने देती हूँ |
खूबसूरत भाव ,
तुम्हारी तरह
अपनों के काँधे
प़र बन्दूक रखू
ऐसी मेरी फितरत नहीं
गहनता से कही बात .
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 16-- 11 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज ...संभावनाओं के बीज
तुम्हे पाऊं
तुमहारे कांधे प़र
सर रखू
ऐसी मेरी
कोई तमन्ना नहीं
तुम्हारी तरह
अपनों के काँधे
प़र बन्दूक रखू
ऐसी मेरी फितरत नहीं
क्या बात कही है शोभना जी ! बहुत खूब.
वाह! भ्रम को भ्रम बना रहने दें इसी में भलाई है।
shabdo me bahut gahrayi hai.
bahut dino baad aapko padhne ko mila....hope sab theek hoga ?
गहरे अर्थ से सजी बहुत अच्छी कविता के लिए बधाई!
बेहद सुन्दर शब्द.. लाजवाब रचना .. बधाई
मै जब तुम्हे चाँद ही रहने देती हूँ ,बहुत खूब...!फितरत ,किस्मत से परे .....एक विशवास ....अच्छा लगा
वाह बहुत सुन्दर रचना...
सादर बधाई
शोभना दी,
अच्छा लगा चाँद के साथ ये बतियाना और उलाहना देना!!
बेहतरीन बिम्ब संयोजन एवं गहन भावाभिव्यक्ति शोभना जी ! बहुत ही सुन्दर रचना है ! हर शब्द अर्थपूर्ण है ! अति सुन्दर !
बेहद सुन्दर रचना है
गहरे भाव लिए रचना |कभी मेरे ब्लॉग पर भी
आइये |
आशा
चांद चांद ही रहे तभी सुन्दर है ।
बेहतरीन रचना। नववर्ष की मंगलकामनायें!
चाँद का जब भी किसी ने ज़िक्र छेड़ा,मैं भावुक हो गई.ये चाँद ही तो है जो गवाह है कालिंदी के तट 'उसके' आने का. इसलिए चूम लेना चाहती हूँ चाँद के गालों को. आपको शिकायते हैं चाँद से.हा हा हा पर.........बहुत खूब है.जो प्यार करती तो मुझे रस्क होता.
बेहतरीन रचना।
एक खूबसूरत कविता ,गंभीरता लिए ।
very nice
ख़ूब लिखा है शोभना जी
तुम्हारी अंकशायिनी बन
इतराऊं
सिर्फ
ये ही तो
मेरी किस्मत नहीं ?
- खासतौर से पसंद आया
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