दो सामानांतर
रेखाओ को
काटती है
है एक
खड़ी लकीर |
ऐसा तुम !
कई बार कह चुके हो|
मै खोज में हूँ ?
वो अद्रश्य
खड़ी लकीर कहाँ से आई ?
तुम्हारी ख़ामोशी
मेरी ख़ामोशी
समानांतर
रेखा
तो नहीं ?
बहुत कुछ छिपाने की
तुम्हारी
ख़ामोशी
मेरे खालीपन की
ख़ामोशी को
समानांतर
कैसे मान लिया ?
Monday, September 05, 2011
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26 टिप्पणियाँ:
गहन भाव हैं रचना में ...सुन्दर.
शोभना दी!
खामोशियाँ दो प्राणियों के बीच उन परिस्थिति से उपजी जिनकी बात आपने कही है, हमेशा दो स्वतंत्र रेखाएं ही हो सकती हैं..समानांतर तो हो ही नहीं सकती.. मगर ऐसे में भी एक अदृश्य रेखा अवश्य काटती है दोनों को, दोनों ओर से!! आवश्यकता है एक ज़रा सा झुकाव पैदा कर कोण बनाने की.. बस तीसरी रेखा उसे काटेगी नहीं उससे जुड़ेगी और बनेगा एक त्रिभुज यानी घर!!
बहुत ही संवेदनशील रचना!!
दोनों की खामोशियों के कारण अलग थे फिर समानांतर कैसे हुए ...
प्रश्न तो है !
खाली पन में सारा जगत समानान्तर लगने लगता है, कोई मिलता या बिछड़ता हुआ सा नहीं दिखता है। अद्भुत पंक्तियाँ।
तुम्हारी ख़ामोशी
मेरी ख़ामोशी
समानांतर
रेखा
तो नहीं ?
...सही है। खामोशियाँ कभी समानांतर रेखा हो ही नहीं सकती। खामोशी का मतलब ही है वे यात्री, जो दो विपरीत दिशाओं की ओर जाना चाहते हैं लेकिन गलती से एक ही नैया पर सवार हो गये। तिर्यक रेखाएं सिर्फ छेड़छाड़ करती हैं। दर्द बढ़ाती हैं।
खालीपन के भावों को उकेरती सुन्दर प्रस्तुति
तुम्हारी ख़ामोशी
मेरी ख़ामोशी
समानांतर
रेखा
तो नहीं ?... kamaal ka prashn
उत्तम प्रस्तुति...बधाई स्वीकारें
नीरज
जिंदगी को रेखाओं से समझने का काम कविता के माध्यम से बखूबी निभाया और रेखाओं के कोणों में अपना दृष्टिकोण रखने में कामयाब कविता.
बहुत कुछ छिपाने की
तुम्हारी
ख़ामोशी
मेरे खालीपन की
ख़ामोशी को
समानांतर
कैसे मान लिया ?
Badee gaharee baat kah dee aapne!
कविता के भावो को इतनी गहराई से समझने और उस पर अपना द्रष्टिकोण रखने एवम पंक्तियों की व्याख्या करने के लिए आप सभी का ह्रदय से आभार |मै अभिभूत हूँ आप सबके स्नेह को पाकर |
बहुत गहरे भाव...एक उम्दा अभिव्यक्ति!!
बहुत ही गहरी रचना शोभना जी ..
मौन और प्रेम की गहन अभिव्यक्ति है आपकी कविता में . सच में ...
बधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
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Great philosophy is hidden in the lines. Tough to answer the question.
On a lighter note a thought crossed my mind that a line intersecting the two parallel lines constituting equal and opposite alternate interior angles....
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आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 08 -09 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में आज ... फ़ोकट का चन्दन , घिस मेरे नंदन
सुन्दर भाव
सोचने को बाध्य करती सुन्दर रचना !!
अंत की पंक्तियाँ बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती हैं।
सादर
गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ।
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति है...बधाई...
ख़ामोशी.... सामानांतर रेखा....
उम्दा!
आशीष
--
मैंगो शेक!!!
बढ़िया प्रस्तुति !
शुभकामनायें आपको !
भावपूर्ण प्रस्तुति.....
बहुत बढिया लिखा है .. अच्छा लगा !!
खामोशी......।
इधर वैसे भी कुछ ज्यादा रही..हां आपकी रचना की तरह नहीं किंतु खामोशी खामोशी है। आपके आशीर्वाद मुझे समय समय पर मिलते रहे हैं..यह मेरी पूंजी है।
रचना में-
.....बहुत कुछ छिपाने की
तुम्हारी
ख़ामोशी
मेरे खालीपन की
ख़ामोशी को
समानांतर
कैसे मान लिया ?
बस कुछ यूं ही..., भी तो हो सकता है?
अच्छी रचना है। बहुत दिनों बाद आया..क्षमा भी।
वाह! वही खड़ी लकीर इन समांतर रेखाओं को जोड़ती भी है। हाँ, अंतर की समता ही सन्दिग्ध हो तो बात एकदम बदल जाती है। बहुत सुन्दर!
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