Tuesday, December 18, 2012

मेरा शहर ,तुम्हारा शहर

सबके  अपने शहर होते है ।
कुछ सामने होते है ,
कुछ यादो में रहते है ।

चमकती बिन्दियों के सुनहरे पत्तों में
एक अदद  लाल   गोल "माथे की बिंदी "
खोजती रही  मै ,मेरे शहर में .....

सैकड़ो   तरह  की सजी  मिठाइयों के बीच 
कागज की पुडिया  में बंधे "पेड़े " की मिठास 
खोजती रही  मै , मेरे शहर में ....

मन्दिरों में बजते डी .जे .के शोर में ,,
घंटियों की सुमधुर  ध्वनि  और" हरे राम" की धुन 
खोजती रही मै, मेरे शहर में ....

मोबाईल फोन , लेपटाप की दुकानों की बाढ़ में 
मेरे बच्चों के बचपन का पुस्तकालय 
खोजती रही मै मेरे शहर में ....

अतीत क्या कभी बूढ़ा होता है ?
खोजने की जरुरत नहीं  
मेरा शहर "मार्डन  "  हो गया है 
मेरे पोते पोतियों (ग्रेंड चिल्ड्रेन )की तरह ।