Thursday, September 18, 2014

बस कुछ यूँ ही ----

यादो के साथ पीछे जाना सुखद है ,
और वो सुख प्रत्यक्ष में दंश है।


एक अदद आश्रय पाकर निराश्रय हो  गए हम,
तुम्हारे घर में बेगाने हो गए अपनापन ढूंढते ढूंढते।

आये थे ख़ुशियो के भागीदार बनने ,
खारे  पानी के साथी बनकर रह गए हम ।




Monday, September 01, 2014

निमाड़ का वरत वर्तुळा

आज संतान सातो है  याने शीतला सप्तमी . आज के दिन निमाड़ मालवा में व्रत  वर्तुले  का समापन दिवस है यानि की हरितालिका तीज से से लेकर आज सैलई सात्तो तक निमाड़ी गृहिणी यो का कढिन उपवासों के साथ अपने परिवारों के लिए मंगल कामना करने का व्रत आज पूरा होता है. शीतला माता की पूजा करके ठंडा खाना बनाने से लेकर खाने से  खिलने तक का। हरतालिका तीज  का निर्जला व्रत ,उसी वर्त में में पुरे घर परिवार के लिए खाना बनाना और नियमितता के घर के काम पुरे करना फिर पूजा रात्रि जागरण कर सुबह से गणेशजी के आगमन की तैयारी में लग जाना ,लड्डू बनाना आज तो  लड्डू बना आसान हो गया है पहले तो खलब्बते में कूट कर चूरमे के लड्डू बनाकर गणेशजी को घर लाया जाता था ,उसके बाद ऋषि पंचमी में खेत में जहाँ हल चला हो वहां का कुछ भी नहीं खाना मतलब शककर भी नहीं तालाब में होने  वाला सिंगाड़े के आटे से बनी कोई चीज खाना इस बीच घर परिवार के सारे  काम निबटाना। फिर आई हल षष्ठी( हलछट )याने आज भी खेत का हला हुआ कुछ नहीं खाना पंसार के चांवल खाना पूजापाठ  करना कहानी सुन्ना सुहागन महिला को भोजन कराना।
फिर शाम को अगले दिन शीतला सप्तमी के लिए खाना बनाना जिसमे मीठे परांठे ,नमकीन पराठे , सादी दो पूड की रोटी सुखी सब्जी बनाना। आज तो हम सब अपनी सुविधा और  साधन के चलते पुरियां बना  लेते है।
मुझे आज भी याद है   जब माँ चूल्हे पर घंटो पराठे सकती रहती थी। और हम सब गणेशोत्सव के कार्यक्रम देखककर लौटते तो माँ चूल्हा लीप रही होती थी क्योकि जिस चूल्हे पर शीतला सप्तमी का नैवेद्य बना होता उस दिन वह चूल्हा नहीं जलाया जाता था।
इस व्रत वर्तुले में सभी बहनो को बधाई और अपनी माँ, दादी ,छोटी दादी , ताईयाँ ,काकियाँ , भाभियाँ , बुआओ
सासुमा ,जेठाणी देवरानी सभी को नमन करती हूँ जो अपनी परम्पराओ के साथ रहकर इन व्रतो को सार्थक बनाती है और हमारे जीवन को ऊर्जा से भर्ती है  उतस्वों में प्राण डालती है।
इस  अवसर पर माँ तुम बहुत   बहुत याद आती हो।