Monday, July 05, 2010

रिश्ते की आस

बहुत तपिश होती है
मन में
सिर्फ
तुम्हारे ख्याल से ही
ठंडी फुहार
बरसने लगती है ..

मन में होते है
अनेक बोझ
तुम्हारी आँखों में
विश्वास देखकर
बोझ उतरते से लगते है..

बहुत दूर हो
सिर्फ
तुम्हारे
एहसास से
खुशिया बिखरी है
आसपास
..

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?


22 टिप्पणियाँ:

kshama said...

Kitne manoram,sanjeeda aur pyarse paripoorn ehsaas hain yah!

shikha varshney said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न
बेमिसाल पंक्तियाँ.

Alpana Verma said...

अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.
बहुत अच्छी कविता.

प्रवीण पाण्डेय said...

रात की थकान, वे जानते हैं कि पूछने से ही उतर जायेगी,
अगली रात, नींद नहीं आयी तो, उनकी याद आयेगी ।

वाणी गीत said...

रिश्तों की कैसी ठेकेदारी है...
पूछते हो सब ठीक है ना !
और कैसे पूछें ...:):)

सुन्दर अभिव्यक्ति ...!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?

बहुत सुन्दर..यह बात दिल तक पहुंची...

The Straight path said...

बहुत अच्छी कविता...

Aruna Kapoor said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?

मनुष्य के स्वभाव का यह भी एक पहलू है!... सुंदर भावोक्ति!

अनामिका की सदायें ...... said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?

कैसे सब के से मन की बात लिख दी आपने इतनी सुंदरता से..मज़ा आ गया पढ़ कर..

आप की रचना 9 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका

देवेन्द्र पाण्डेय said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?
...vakai ye panktiyan dil ko chhoo lene vaali hai.
...aabhar.

Manish said...

रिश्ते?
इनका मतलब क्या होता है? रिश्तों पर एक संस्मरण लिख रहा हूँ फ़िर भी समझ से परे है :( :(

Akanksha Yadav said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?
....खूब लिखा अपने अंदाजे-बयां में...बेहतरीन.

rashmi ravija said...

बहुत ही गहरे भाव लिए सुन्दर कविता...

ज्योति सिंह said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?
laazwaab panktiyaan ,man ko chhoo gayi .adbhut hai jahan me thikana basane wali .achchhi kavita .

ज्योति सिंह said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न
bahut badhiya ,adbhut

अरुणेश मिश्र said...

प्रिय के प्रति असीम स्नेह को व्यक्त करती रचना ।
प्रशंसनीय ।

meemaansha said...

dooriyo ke beech ek poora samvaad..........tooo much nice

Avinash Chandra said...

रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?

aseem vyuh hain in shabdon me, aur koi tootta bhi nahi.

bahut andar tak utre ye shabd.

Dhanyawaad aisa likhne ke liye

रश्मि प्रभा... said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?
adbhut bhaw

ZEAL said...

रिश्तो की कैसी
ठेकेदारी है ये ?
रात आँख भी नहीं लगी
और तुम पूछते हो
सब ठीक है न ?

aajkal, sab kuchh ek khana-purti hi hai.

.

k.r. billore said...

shobhanaji ,sadhuvad .....kya khub piroya hai jindgi ke phulo ko ,ek bar phir mahak uthi jindgi jine ko ,,,,,,,kamana billore mumbai......

Unknown said...

""अपनी तमनाओं की तस्वीर सजाने में बरसों लगे
तुम आये तो तो पल में ही सब कुछ हो गया ""
.....आपकी कविता पढ़ के
यूँ लगा मानो क्या मिल गया
अन गिनत सवालो का
एक छोटा सा प्यारा सा उतर ...
Thanki so much...