Sunday, April 07, 2013

माटी .......

   माटी ....... 
माटी   याने जीवन ,धरती ,हमारा मूल ,कुदरत ,
माटी ,याने इंसानियत  ,विनम्रता ,धरती से जुडाव ।
हम सबको ,इन्सान व अन्य जीवों  को जोडती ,जोडती एक कड़ी ।
और सबसे अहम- जीवन के पश्चात् हमारा घर ...



और इसी माटी  को लेकर हमारेहर प्रदेश के  संतो ने जिनमे सूफी संतो की बहुलता है उनके कहे उद्गार आप तक पहुचने की एक छोटी सी कोशिश है मेरी ,जो की "लोकनाद टीम "का  संकलन है । 




अशी धरत्री ची माया ,
अरे तिले  नाही सीमा  ,
दुनिया चे सर्वे पोटं ,
तिच्या मधी झाले जमा ॥ 
-बहिणाबाई 
धरती की माया असीम है ,अपार  है  । 
दुनिया के हर उदर के लिए उसके भीतर पर्याप्त भंडार है । 

बहिणाबाई चौधरी (१ ८ ८ ० -१ ९ ५ १ )
जलगाँव के ,महाराष्ट्र  के किसान परिवार की बहिणाबाई का धरती से खेती से खास जुडाव था । 
उनकी कविता में अक्सर गृहस्थ जीवन और खेती के रुपको. द्वारा  जिन्दगी के गहन मसलो.  पर 
सटीक अभिव्यक्ति  दिखती है ।वे लेवा ओवी  मराठी रूप में रचनाये करती थी । साक्षर न  होने की वजह से उनकी कई कृतियों को उनके बेटे  ने लिखित रूप दिया | 




1 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय said...

माटी में बीता है बचपन, माटी में मिल जाना है।