Saturday, October 26, 2013

अपनी बात

सुधा से मिले बहुत दिन हो गये थे सोचा चलो आज मिल लू |सुधा मेरी छोटी बहन है , वो अधिक्तर बीमार ही रहती है ,इसीलिये यो कहिये सबको उससे मिलने उसके घर ही जाना होता है |
दोपहर को ही उसके घर जा पहुंची थी उसकी बहू ने अच्छे से मेरा स्वागत किया बढिया चाय नाश्ता कराया |
हम दोनों बहनों को बाते करते करते बहुत देर हो गई|
मै आने के लिए उठी ही थी की उसकी बहू रीना आई फ़िर पूछा ?
मम्मीजी शाम को कितनी भूख है /वैसे बता दीजिये उतना ही खाना बनाऊ ?
मै हैरत में थी रात को खाना है अभी से कैसे बता सकते है ?
सुधा मेरी ओर दयनीय नजरो से देखने लगी |
मै भी उनके घर की व्यवस्था के बारे में अपने विचार रखकर बात बढाना नही चाहती थी |
मै ये अनोखा प्रश्न लेकर सोच में पड़ गई |सुधा ने पहले भी कहा था रीना रोज रोज घर के सारे सदस्यों से पूछकर ही खाना बनाती |
तभी मुझे याद आया माँ की एक सहेली गीता मौसी हमेशा घर आती थी एक दिन मै भी बैठी थी तभी मैंने सुना ।
मौसी माँ से कह रही थी -देख सुधा की माँ -कभी भी रात के खाने के लिए मना मत करना -चाहे एक रोटी ही खाना |
माँ ने बडी मासूमियत से पूछा ?
क्यो?
मौसी ने इधर उधर देख और बडे रहस्यमय अंदाज में कहा -अगर तू एक दिन खाने का मना करेगी तो दोबारा कभी भी तेरी बहू रात को तुझे खाने को नही पूछेगी |
तो क्या सुधा की बहू भी इसी दिशा मे जा रही थी ????????/
क्या अगला सवाल यही होगा ?
मम्मीजी आज आप खाना खायेगी या नही ?
और अगर सुधा ने आज न कहा तो??????////

1 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय said...

रोचक मनोविज्ञान..