स्त्रियो का संसार ,आधी आबादी का संसार
आज समाज के हर क्षेत्र में आधी आबादी का महत्वपूर्ण योगदान है |
महानगरो में ,बड़े शहरो में ,छोटे शहरो में अपने कार्यो के अनुरूप महिलाये पुरस्कृत होती है और ये हम सबके लिए गौरव कि बात है किन्तु अपने सिमित साधनो में ,विपरीत परिस्थियो में भी छोटे शहरो कि कस्बो कि ,आधी आबादी निरंतर अपना पूरी क्षमता के साथ समाज को नये आयाम दे रही है चाहे वो पुरस्कृत न होती हो ?न ही कोई संस्था से जुडी हो? ऐसे ही एक स्त्री अपने घर संसार को चलाते हुए अपनी अध्यापन कार्य को बख़ूबी निबाहते हुए अपने इर्द गिर्द कि महिलाओ को एकत्र कर ,उनकी क्षमता को ,उनकी योगयता के अनुसार उन्हें अपने आत्मविश्वास के साथ ,जीवन जीने कि प्रेरक बनी है और इन्ही के साथ समय चुराकर कागजो में अपनी भावनाओ को कलम के द्वारा उकेरने कि भी भरपूर कोशिश कर रही है उसी टुडे मुड़े कागज से ये कविता उभरी है भरपूर सवेदना के साथ कीर्ति भट्ट ने इस समाज से सिर्फ एक विनती की है ...
"बेटी कि पुकार "
दो आँगन कि खुशियाँ हूँ मैं
अपनी लाड़ली बिटिया हूँ मैं
कात्यायनी ,मैत्रैयी सी विदुषी हूँ मैं
उर्मिला सीता सी धर्म परायण हूँ मैं
मुझे हवस भरी नजरो से देखने वालों
तुम्हारे आँगन कि भी शोभा हूँ मैं
मत अपनी पशुता का परिचय दो बार बार
मेरे अस्तित्व को न करो यूं तार तार
जन्म लिया जिस कोख से ,उसे न करो शर्मसार
माँ ,बहन , पत्नी के रूप में मैं ही देती हूँ प्यार
न मेरी आत्मा को करो तिरस्कार
न हो सकेगा सृष्टि का विस्तार
मैं ही हूँ जीवन का आधार ,मैं ही हूँ जीवन का आधार --------
कीर्ति भट्ट
देवास म. प्र .
आज समाज के हर क्षेत्र में आधी आबादी का महत्वपूर्ण योगदान है |
महानगरो में ,बड़े शहरो में ,छोटे शहरो में अपने कार्यो के अनुरूप महिलाये पुरस्कृत होती है और ये हम सबके लिए गौरव कि बात है किन्तु अपने सिमित साधनो में ,विपरीत परिस्थियो में भी छोटे शहरो कि कस्बो कि ,आधी आबादी निरंतर अपना पूरी क्षमता के साथ समाज को नये आयाम दे रही है चाहे वो पुरस्कृत न होती हो ?न ही कोई संस्था से जुडी हो? ऐसे ही एक स्त्री अपने घर संसार को चलाते हुए अपनी अध्यापन कार्य को बख़ूबी निबाहते हुए अपने इर्द गिर्द कि महिलाओ को एकत्र कर ,उनकी क्षमता को ,उनकी योगयता के अनुसार उन्हें अपने आत्मविश्वास के साथ ,जीवन जीने कि प्रेरक बनी है और इन्ही के साथ समय चुराकर कागजो में अपनी भावनाओ को कलम के द्वारा उकेरने कि भी भरपूर कोशिश कर रही है उसी टुडे मुड़े कागज से ये कविता उभरी है भरपूर सवेदना के साथ कीर्ति भट्ट ने इस समाज से सिर्फ एक विनती की है ...
"बेटी कि पुकार "
दो आँगन कि खुशियाँ हूँ मैं
अपनी लाड़ली बिटिया हूँ मैं
कात्यायनी ,मैत्रैयी सी विदुषी हूँ मैं
उर्मिला सीता सी धर्म परायण हूँ मैं
मुझे हवस भरी नजरो से देखने वालों
तुम्हारे आँगन कि भी शोभा हूँ मैं
मत अपनी पशुता का परिचय दो बार बार
मेरे अस्तित्व को न करो यूं तार तार
जन्म लिया जिस कोख से ,उसे न करो शर्मसार
माँ ,बहन , पत्नी के रूप में मैं ही देती हूँ प्यार
न मेरी आत्मा को करो तिरस्कार
न हो सकेगा सृष्टि का विस्तार
मैं ही हूँ जीवन का आधार ,मैं ही हूँ जीवन का आधार --------
कीर्ति भट्ट
देवास म. प्र .
3 टिप्पणियाँ:
Bahut achchhi kavita hai Didi.. Lekin Kirti ji ki kavita se aisaa nahin lag raha ki wo purush samaaj se aagrah ya vinati kar rahi hain aur khud ke Sita aadi hone ka saboot de rahi hain..
Zarurat is maanasikta ko badalne ki hai.. Is kavita ke bhaav tabhi saarthak honge jab ek samarth naari ko aisi kavita likhne ki awashyakta na pade!
Mera samman unake liye!!
बेटियां होती हैं आँगन की खुशियों का सार !
अच्छी कविता थोडा और प्रयास मांगती है !
संवेदनशील ... बेटियाँ हर आँगन की खुशियां होती हैं ... दरअसल कायर, डरपोक तो वो हैं जो उनका उपयोग करते हैं ... दबा के रखते हैं ..
Post a Comment