Friday, July 25, 2008

सावन



सावन के महीने में झूमी डाली डाली है



धरती की हरियाली से आंखे हाली -हाली है
तेरे प्रेम के संदेश से चारो और फेली खुशियाली है
नदियों के कलकल ने संगीत बिखेरा है
कोयल की कुक ने कोमल राग छेड़ा है
हिरनियों ने जंगल को ख्न्गोला है
आज पर्वतों ने भी धानी चुनर को ओढा है


पंछियो ने नीडो को घेरा है
किसान ने अपने बेलो को खोला है


रे मन,तू फ़िर क्यों अकेला है
ये सब क्या तेरे मीत नही ?
आ उस मीत से मिलने की आस में ,
इन मीतो के साथ हो जा
ये तुझे जीवन का ज्ञान देगे
और मीत से मिलने की पहचान देगे
तेरा मीत है उन्नति के शिखर पर
तेरी पुकार उसे अटल रखेगी और
यही तेरे प्रेम की जीत होगी \
से मिलने की पहचान दे |

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