Thursday, August 14, 2008

झंडे की खुशबु


बचपन में जब केले का आधा टुकडा मिलता ,सेब की एक फांक मिलती
तो उसका स्वाद अम्रत था
आज के दर्जनों केलो में ,
किलो से स्टीकर लगे सेबों में
वो मिठास नही
एक फहराते हुऐ झंडे को निहारने में
जो धड़कन थी ,
जो रोम रोम की सिहरन थी
वो गली में बिकते हुऐ
तीन रंग की
प्लास्टिक की पन्नी
चोकोर आकार लेते हुऐ
जो कभी कार में सजते है
जो कभी गमले में खोंस दिए जाते है
जो कभी एक सालके बच्छे के हाथ में दे दिया जाता है
उसका मन बहलाने के लिए ,
वो तीन रंग


क्या
वेसा रोमांच ,वेसी सिहरन दे पायेगे कभी

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