जिन्दगी से निराश कुछ नवयुवको को देखकर सन२००० मेंयह कविता लिखी थी
तुझे पाने की चाह में ,
अपनी मासूमियत खो बैठे हम |
तेरे नजदीक पहुंचते पहुंचते ,
अपनी इंसानियत खो बैठे हम |
हम भी थे स्कूल के अच्छे बच्चे ,
माँ के सानिध्य में सुस्न्स्कारो में,
प्ले दुलारे |
पिता की आशाओ के तारे
तेरी पथरीली ने प्गदंदियो ने
लहुलुहान कर दिया
तेरी राह के कटीले तारो ने ,
हमे छलनी कर दिया |
निकले थे तुझे खोजने सुंदर से
शहर में,
किंतु
तेरी दम तोड़ती व्यवस्थाओ और
हमरी म्ह्त्वाकंक्षाओ ने
हमे बियाबान दे दिया |
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2 टिप्पणियाँ:
bhut sundar jari rhe.
aap apna word verification hata le taki humko tipani de me aasani ho.
बहुत बढिया लिखा है-
तेरी दम तोड़ती व्यवस्थाओ और
हमरी म्ह्त्वाकंक्षाओ ने
हमे बियाबान दे दिया |
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