एक पान कि दुकान पर कुछ ,
कुछ भी काम न ?
करने वाले वाले
ये लडके!
सिगरेट के छल्ले छोड़ते हुये
नौजवान लडके?
आने जाने वाली
काम करने वाली
लडकियों,
शादीशुदा उम्र दराज
काम करने वाली
ओरतो को भी
छेडते हुये,
तंग जींस चितकबरे शर्ट
बदन पर लटकाए
चोरी के
मोबाईल से गाने सुनते हुए
आवारा से लड़के
अपने आप को ?
उनकी इन नजरो से बचाती
बरसात हो ?तपती दुपहरी हो ?
या कि हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड
अपनी शादी के लिए पैसे जुटाती ,
ऐसे ही वर (लडको )पाने के लिए
अपने आप को झोंक देती
अपने जीवन को सार्थक करने में ये
लड़कियां....
अपने बेटे कों प्राइवेट स्कूल में
पढ़ाने के लिए
दिन रात चकरी कि तरह घूमती
इन्ही बेटों कि
माँ??
कमाऊ औरत!
मार खाकर भी
कुछ न बोलने वाली
औरत!
मेहनत से कमाए पत्नी के रुपयों
को शराब में खर्च करने को
अपना अधिकार समझने वाला
ही है .....
ऐसे बेटों का पिता!
Sunday, March 14, 2010
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23 टिप्पणियाँ:
यह रचना अपसंस्कृति की दशा का वास्तविक चित्रण है।
बहुत सही खाका खींचा है आपने. हर जगह, हर शहर की पान की दुकानों पर ऐसे लडके मिल जायेंगे.
बहोत दिनों के बाद आपका पोस्ट पढ़ने को मिली. नारी की पीड़ा क्षेत्र वार अलग-अलग सी दिखते हुए भी एक जैसी है...कहाँ तक महसूस किया जाय..!
उफ़..न जाने कब सुधरेगी यह स्थिति..! देखना है महिला विधेयक कहाँ तक असरकारी सिद्ध होती है.
...अच्छी पोस्ट के लिए बधाई.
आभार .
सच में अनूठी कल्पना है, अच्छा लगा.
कमाऊ औरत!
मार खाकर भी
कुछ न बोलने वाली
औरत!
मेहनत से कमाए पत्नी के रुपयों
को शराब में खर्च करने को
अपना अधिकार समझने वाला
ही है .....
ऐसे बेटों का पिता!
- डॉ. विजय तिवारी "किसलय"
मैम बहुत दिनों के बाद आपकी पोस्ट देखी बहुत अच्छी लगी.जब तक पान की दुकानें रहेंगी ये ही नज़ारा रहेगा और यही स्थिति
आभार
रब दा शुकर साढे पान दी दुकान ही नही है जी
एकदम जीवंत तस्वीर....
ek-ek line ke saath poori film dekh li.....sahi hai ...in ladko pe gauranvit Mata-pita aur samaj....betiyon ko aane hi nahi dete dharti par
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
नकी इन नजरो से बचाती
बरसात हो ?तपती दुपहरी हो ?
या कि हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड
अपनी शादी के लिए पैसे जुटाती ,
ऐसे ही वर (लडको )पाने के लिए
अपने आप को झोंक देती
खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...बहुत सुन्दर..
शोहदों और अपसंस्क्रित का सही चित्रण
paan kee dukaan ka sahee chitran kheecha hai aapne...
dekhiye shobhajee kaiyo ne aapkee lambee anupasthitee ko mahsoos kiya...........
shayad aap baahar chalee gayee thee . aapka comment maine dekha jaalsaaz par.mail aur koi nahee milee .
shubhkamnae.........
सामाजिक समस्या का बहुत सटीक वर्णन ....
bahut dino baad aapka likha hua padhne ko mila ,ek khushi hui man ko ,mano is parivaar me ek sadasya ki bani rahi ,inti khoobsurat rachna ke saath aapko mahila divas ki badhai .
ek sahi chitra prastut kiya hai,
आपने वास्तविकता को बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है! इस उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ !
यह त्राज़दी तो है ।
जी बिल्कुल सही। यथार्थ। किंतु एक सत्य और है, जो अपनी पूरी ताक़त से व्याप्त हो रहा है कि अब पान की दुकान पर खडे लडकों को करारा जवाब भी मिल रहा है। खैर...। बहुत बहुत दिनो बाद आपकी कोई अभिव्यक्ति पढने को मिली। कहां थीं आप इतने दिनों?
शोभना जी करारी चोट की है आपने .....!!
सही बात है ,बाप के कर्म देखते है वही अनुकरण करते है ,| तंग जींस और उसमे भी छै छै पाकेट ,और सब के सब खाली | पिचके गाल ,रूखे बाल ,फ़्लाइंग शर्ट पहिन भू पर उड़ रही जवानी ,और ऐसों की संख्या निरंतर बढ़ रही है
really gerat , first time u really explain about real picture of paan ke dukan ki reality, really great. good to learn.
बहुत दिनों बाद आपकी कोई रचना आई है...सच ही ये कैसी त्रासदी है....पूरा चित्रण कर दिया है आपने शब्दों में....
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