जब ५८ साल की उम्र में खुद सरपंच है तब भी आगंतुको को खुद ही चाय और नाश्ता बनाकर प्रेम से खिलाती है |
अभी कुछ दिन पहले अपने
गाँव गये अब ऐसे ही तो गाँव चले नहीं गये ?दिन रात ब्लॉग पर गाँवो की पोस्ट पढ़कर और टी.वी .पर "देसी गर्ल "देखकर हम अपने आप को रोक नहीं पाए |भरी तपती दोपहरी में ठसाठस भरी बस से जब गाँव के बाहर उतरे तो गाँव आने का का उत्साह थोडा ठंडा पड़ने लगा था पर बड़े बड़े नीम के ,बड़ के पेड़ देखकर मन प्रसन्न हो गया |

साथ की उसके नीचे लगी पान की गुमटिया जिनमे पान तो कम ,पर कई प्रकार के पान मसालों के पाउच की लम्बी लम्बी लडिया देखकर मन में कुछ खटक गया !हम ये सोचते ,जब तक देखा पतिदेव घर की पीछे वाली गली के मुहाने तक पहुँच गये चुके थे |मुझे हमेशा गुस्सा आता है वो उबड खाबड़ रास्ते से ही ले जाते अब तो आगे वाली गली भी पक्की बन गई ?फिर क्यों पीछे से जाना ?हमेशा उनका तर्क रहता सभी लोग ओटलो पर बैठे रहते है उन्हें अच्छा नहीं लगता |वैसे तो उन्हें गाँव जाना जरा कम ही पसंद है मेरी जिद के आगे ज्यादा ना नुकुर नहीं कर पाए बेचारे !(वैसे इतने भी बेचारे नहीं है वो)घर पहुंचे तो माताजी को छोड़ और कोई बहुत खुश नहीं था उन्हें मालूम है दो चार दिन के लिए आये है बड़ी बड़ी बाते करेगे चले जायेगे |उन्हें तो यही रहना है १६ घंटे बिजली कटौती का सामना करना है ,बीज ,खाद ,सरकारी तय की हुई कीमत के बावजूद ब्लैक में लेना है |वैसे भी मानसून आज कल करते १५ दिन निकाल ही चुका है |फिर भी "अतिथि देवो भव "खातिरदारी तो करनी ही है |हम कहते ही रह जाते जैसी तुम्हारी दिनचर्या ,खानपान है सोना उठाना बैठना है हम भी उसी में शामिल हो जायेगे कितु वो हरपल ये "जताते "की आप हमारे मेहमान हो और हमको ये समझना चहिये की मेहमानों को कितने दिन और कैसे रहना चाहिए ?
साँझ को आँगन में खाट पर बैठना और बिजली के अभाव में सबका साथ ही आंगन में भोजन करना अलग ही आनन्दानुभूति दे गया |रात में खुले आसमान में चाँद तारो को निहारना कभी बंद ना हो !बस ऐसे ही लगता रहा|
कभी बदली चाँद को पूरा ढँक लेती कितु चाँद की रौशनी में बदली का रंग कुंदन सा होगया |और बदली चाँद की आभा लिए आगे बढ़ गई और चाँद ने अपनी रौशनी तेज कर दी और चांदनी में पूरा गाँव नहा उठा |
दुसरे दिन सुबह सुबह ही पडोस वाली भाभी आ गई भैया इनके बचपन के मित्र है जितने दिन ये गाँव में रहते खाने के आलावा सारा दिन इनका उन्ही के साथ गुजरता |
अरे !तुम तो कल ही आ गई थी मै जरा शहर गई थी ब्लाक ऑफिस में वहां मीटिंग थी |
मैंने उन्हें सरपंच बनने पर बधाई दी |धन्यवाद कहते हुए ख़ुशी और निराशा के मिश्रित भाव आये और चले गये |
चलो चाय पीने ?भाभी ने कहा -
मैंने माताजी की तरफ देखा ,माताजी ने कहा -जाओ ,जाओ सरपंच बुला रही है ?उनकी स्वीकृति में एक तरह से व्यग्य था |
मै उनके साथ ही चल दी |हाल समाचार पूछने के बाद मैंने उनसे पूछा ?
आजकल तो आप बहुत व्यस्त रहती होगी सरपंच को तो कितने काम होते है ?मैंने अपना ज्ञान बघारा ?
कितनीही सरकारी योजनाये है हम आये दिन अख़बार में पढ़ते है अब तो गाँव में बहुत विकास हुआ होगा ?हम दोनों साथ ही रसोई में आये |रसोई में शहरी रसोई का आभास था | स्टील के बर्तन ,बिजली के रसोई उपकरण गैस का चूल्हा सब आधुनिक वस्तुए पारम्परिक वस्तुओ का स्थान ले चुकी थी |
इतने में ही भैया भी आ गये |
एक कान से ,बिलकुल भी सुनाई नहीं देता , दुसरे में मशीन लगी है \एक आँख का मोतियाबिंद का आपरेशन हो चुका है
कुशल क्षेम पूछने के बाद उन्होंने भाभी को फरमान जारी किया -पड़ोसी गाँव के पटवारी और शहर से अधिकारी आये है नाश्ता चाय जल्दी भिजवा देना |भाभी ने जल्दी से पोहे धोये और प्याज काटने लगी |
मैंने कहा - लाइए मै कर देती हूँ ,आपने कोई सहायक नहीं रखा?
अरे !यहाँ गाँव में घरेलू काम के लिए कोई भी नहीं मिलता |और जो भी मिलते है १०० रूपये रोज मांगते है जितनी भी योजनाये चल रही है मजदूरों की मजदूरी १०० रूपये ही निर्धारित है ,अगर कुछ भी काम करवाना हो तो इतना ही देना पड़ता है ||घर में पड़े पड़े खाट तोड़ते रहेगे पर काम नहीं करेगे |
आप लोग तो शहर में रहने चले गये थे ?गोपाल और बहू के पास ?फिर क्यों वापिस आ गये और फिर आपका सरपंच बनना |सालो पहले भैया ने जो काम किये थे अब तो उनके अवशेष ही नजर आते है जैसे की गोबर गैस प्लान |बिजली के कनेक्शन आदि |
कहाँ ?अब तो लोगो ने मीटर ही कटवा दिए है डायरेक्ट पोल से बिजली लेलेते है |
पीने के पानी के कुछ निम्नतम रूपये लेते थे पिछले चुनाव में जो सरपंच ने वादा किया था इसलिए वो भी अब मुफ्त में मिलता है |सरकार ने सब कुछ मुफ्त में देकर इन सबकी आदत बिगाड़ दी है |
इतने में ही पोहे तैयार हो गये उन्होंने अपने छोटे बेटे बनवारी को आवाज दी, और कहा -ये नाश्ता लेजा |
बनवारी जिसे बचपन में तेज बुखार आया और उसके बाद से ही वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठा था ,बस घर के छोटे मोटे काम कर देता है और दिन भर बाहर घूमता रहता है |
आप पंचायत भवन में नहीं बैठती ?
नही !तुम्हारे भैया ही सब काम देखते है मै तो दस्तखत भर करती हूँ |

मै अपने घर आ गई |शाम को नदी तरफ घूमने गये रास्ते में एक बड़ा सा चूहा मरा पड़ा था |"सरपंच पति "मरा चूहा फेंकने वाले से मोल भाव कर रहे थे, वो किसी भी तरह ५०० रूपये से कम में नहीं मान रहा था |अब पंचायत में इसका कोई बजट तो नहीं था |
आखिर वो ये रूपये कहाँ से लायेगे ?
कोनसी योजना से ?
और क्या राजनीती में इतना आकर्षण है ?

क्या हम लेखो ,आलेखों ,कविताओ से अपने गाँवो की नैसर्गिक तस्वीर फिर से बना सकते है ?