विचार तो बहुत से मन में आ रहे है, पर अपनी ही व्यस्तताओ में उन्हें शब्द नहीं दे पा रही हूँ तो आज मेरी ही एक पुरानी पोस्ट फिर से पोस्ट कर रही हूँ |
उनमे कोई न कोई
कहानी जीवित है ,
इसीलिए
खंडहर सदा आकर्षित
करते रहे
मुझे
मेरी सांसो में
बस जाते है
लिपे पुते मिटटी के घर
क्योकि
जीवंत खुशबू
दे जाते है मुझे |
फिसलते चिकने फर्श
उदासी भर देते है
तो,
रूमानियत उत भर देते है
खुरदुरे फर्श मुझे |
चमकते माल्स के
दमघोटू वातावरण
से दूर
नुक्कड़ का
"हाट "
नई ताजगी दे जाता है
मुझे |
सितारों से जडी साडी
चुभती है नजरो को
मलमल की छींट
सभ्यता समझा
जाती है
मुझे |
मंदिरों की दान पेटी ,
पुजारी की आरती
मेरे इमान को डिगा देती है
तो ,
पास ही झोंपडी में
साँझ को जलता
छोटा सा दीपक
नतमस्तक होने पर विवश
कर देता है
मुझे |
गुरुओ की "दीक्षा और "प्रवचन "
बिच्छू सा डंक देते है मुझे
तो मेरे सहयोगी की कर्मठता
जीवन का सत्य
सिखा देती है
मुझे |
भोजन का बाजार
कितना भी स्वादिष्ट हो
त्रप्ति दे जाती है
मोटे से आटे की रोटी
मुझे |
तथा कथित
आधुनिकता की दौड़ में
बहुत पीछे हूँ मै ,
पर
अंतरजाल की सामाजिकता
शांति दे जाती है
मुझे .......................
'
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21 टिप्पणियाँ:
संदेशात्मक रचना....अच्छी लगी
उनमे कोई न कोई
कहानी जीवित है ,
इसीलिए
खंडहर सदा आकर्षित
करते रहे
मुझे
सुंदर अभिव्यक्ति!
पास ही झोंपडी में
साँझ को जलता
छोटा सा दीपक
नतमस्तक होने पर विवश
कर देता है
मुझे |
बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
सच है, प्रगति के नाम पर आधुनिकता में कितने ख़ूबसूरत अहसास खो जाते हैं.
खंडहरों में छिपी कहानी
सुन्दर कल्पना ।
प्राकृतिक खुलेपन से सराबोर ।
वाह जी अहसासो से भरी आप की यह रचना बहुत अच्छी लगी धन्यवाद
Khandhar dekhna mujhe khud bahut bhata hai...ajeeb rahasymayi aakarshan hota hai inme...
Dua karungi,ki,aapko hamesha shanti milti rahe.
वाह वाह
उनमे कोई न कोई
कहानी जीवित है ,
इसीलिए
खंडहर सदा आकर्षित
करते रहे
मुझे
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है..
बहुत अच्छी लगी आपकी ये अभिव्यक्ति.
Past is more beautiful often. the poetry made me nostalgic.
Beautiful creation !
sundar abhvyakti ,aaj ki aadhunikata me shaanti nahi yah to bilkul satya vachan hai
उनमे कोई न कोई
कहानी जीवित है ,
इसीलिए
खंडहर सदा आकर्षित
करते रहे
मुझे
पास ही झोंपडी में
साँझ को जलता
छोटा सा दीपक
नतमस्तक होने पर विवश
कर देता है
मुझे |
bahhut hi sundar rachna har shabd man ko chhoo rahe hai .poori rachna laazwaab hai ,bahut dino baad aapki koi rachna padhne ko mili ,khushi hui .
विचारहीन कैसे कोई रह सकता है..और फिर वह तो कत्तई नहीं जो कविमन हो...हां व्यस्ततायें उन विचारों को कलमबद्ध करने के आडे आ जाती हैं। भले ही आये किंतु गति अवरोध को पार भी किया जाता है और गाडी मंज़ील तक लगाई भी जाती है। इस बीच पुराने पडाव पर रुक कर सुस्ताने का भी अपना मज़ है...आपकी पुरानी रचना आज फिर नई नई सी ही लग रही है। यह रचना आपकी बेहतरीन रचनाओं में अव्वल हैं। जिसमे प्रार्म्भ से ही अर्थ की खनक है। खंडहर का आकर्षण पूरे जीवन के करीब खडा करता है। और जब भी हवा संग गोबर की महक नथूनों में जाती है तो ओक़्सीजन भी अपनी पवित्रता पर इतराती है। खुरदुरे फर्श हमारी वयोवृद्ध अवस्था की तरह सहलाते हैं। और नुक्कड का हाट खींच लेता है अपनी तरफ जहां ताज़ेपन और सस्ती दर का सुख भोगा जा सकता है।.......सब ही तो है बिल्कुल जीवन सा....।
कृपया शब्द सुधार के पढे -
मंज़िल,मज़ा, प्रारम्भ
क्या कविता है!!!!
शोभनाजी, आज तो दिल ही जीत लिया आपने। इतनी श्रेष्ठ अभिव्यक्ति है कि क्या लिखूं। बस ऐसा ही लिखती रहें यही जीवन का आकर्षण है।
सच ही है खँडहर कुछ न कह कर भी बहुत कह जाते हैं एक एक बात लाजवाब
खंडहर सदा आकर्षित
करते रहे
मुझे ...
एक इतिहास छुपा होता है .. इन बेजान दीवारों में ... बहुत गहरी अभिव्यक्ति है ...
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
गुरुओ की "दीक्षा और "प्रवचन "
बिच्छू सा डंक देते है मुझे
तो मेरे सहयोगी की कर्मठता
जीवन का सत्य
सिखा देती है
मुझे |सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर ... जीवन में कुछ नए हो रहे हैं तो कहीं न कहीं पुरानी दकियानूसी बातों की वजह से कवी ह्रदय को चोट पहुँचती है ...
पास ही झोंपडी में
साँझ को जलता
छोटा सा दीपक
नतमस्तक होने पर विवश
कर देता है
मुझे |
वाह वाह वा...इस अप्रतिम रचना के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें...
नीरज
बेहतरीन अहसासों से लबरेज कविता।
bahut umda rachna hai,,,,!!
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