Thursday, June 17, 2010

आओ धरती में बीज डाल दे

आषाढ़ की पहली
बदली बरस चुकी है
कृषक की आस
जाग चुकी है |
आओ बुवाई कर ले
सद्य नहाये खेत में|

नन्ही बिटिया
श्री गणेश
करने को है
आतुर
सौंधी माटी की
सन्देश की


दादी बैठी है
खाट पर ,खेत में

नन्हा छोटू
बैठा है हाथ में
दाने लेकर
दादी की गोद में ,
अपनी बारी का
इंतजार करता हुआ

भैया बैठा है
कुए की परेल पर
हाथ में मोबाईल लिए

आओ कोयल
अपना राग सुना जाओ
मेंढक तुम दूर हट जाओ

माँ घर में
मीठा बनाकर
इन्द्र देवता से
प्रार्थना कर रही है |

दादा ने बाबू को
नारियल दिया
बाबूजी ने
देवता को नमन किया
नारियल का पानी
माटी भिगो गया
और बुवाई का
श्री गणेश हो गया|

18 टिप्पणियाँ:

मनोज कुमार said...

विषय को कलात्‍मक ढंग से प्रस्तुत करती है ।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह!
..इस अभिव्यक्ति में अपनी माटी की खुशबू है.

kshama said...

Kitna sundar chitr kheench diya aapne! Ek gaanv,ek khet jahan poora parivaar hai..

Apanatva said...

hamare krushi pradhan desh kee aashad mas kee kheto kee badee sunder jhalak dikhadee aapne.......
aabhar

प्रवीण पाण्डेय said...

जय हो, बुवाई का श्री गणेश हो गया है ।

वाणी गीत said...

बारिश के इन्तजार में नयी फसल की बुवाई की यह कविता सौंधी मिट्टी सा एहसास दे रही है ...!!

Alpana Verma said...

आषाढ़ की पहली बदली बरसने पर होने वाली रस्मों का बखूबी जिक्र किया है इस कविता में ..अब भी क्या ये सभी रस्में ऐसे ही निभायी जाती होंगी..शायद हाँ ..क्योंकि गावों में अब भी अपनी संस्कृति जीवित रखे हुए हैं .

अजय कुमार said...

सजीव वर्णन ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बुवाई का सजीव चित्रण करती अच्छी रचना.

दिगम्बर नासवा said...

आपकी अबीव्यक्ति में भी माटी की खुश्बू आ रही ... सोंधी सोंधी खुश्बू ....

shikha varshney said...

वाह सोंधी सोंधी अभिव्यक्ति.

ज्योति सिंह said...

bas fasal ab lahlaha hi uthi samjhiye,itni siddat se jo lagaya gaya aur saath hi parivaar ke sampoorn sadsaya ka sahyog .sachmush sajiv ho utha sab aankhon ke aage ,itna sundar likha .

rashmi ravija said...

मिटटी की सोंधी खुशबू जैसे चारो तरफ फ़ैल गयी...सब कुछ साकार हो गया आँखों के आगे...

हरकीरत ' हीर' said...

आषाढ़ की पहली
बदली बरस चुकी है
कृषक की आस
जाग चुकी है |
आओ बुवाई कर ले
सद्य नहाये खेत में|

माटी की महक आ रही है रचना से ....!!

hem pandey said...

'और बुवाई का
श्री गणेश हो गया|'

- इस आशा के साथ कि फसल अच्छी होगी.

रचना दीक्षित said...

नारियल का पानी
माटी भिगो गया
और बुवाई का
श्री गणेश हो गया
कविता ही माटी की सुगंध से सुगन्धित हो गयी है

Anonymous said...

बहुत ही सुंदर विचार।
---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

Asha Joglekar said...

बुवाई जैसे विषय को कितनी सुंदर रीती से आपने कविता में ढाला है ।