"सीता राम चरणरति मोरे "
आज श्रावण शुक्ला सप्तमी है ,आज श्रीरामचरित मानस के रचयिता श्री गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है |
आज का दिन आते ही यादो में आ जाती है, तुलसी जयंती की वो "झलकिया" जो खंडवा शहर को अलग से पहचान देतीथी||वैसे तो खंडवा शहर दादा ( हम लोग उन्हें दादा ही कहते थे )माखनलाल चतुर्वेदी जी की कर्मभूमि ,हरफनमौला अभिनेता प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार की जन्म भूमि के नाम से ज्यादा जाना जाता है | मै60- 70 के दशक की बात कर रही हूँ जब खंडवा साहित्यिक द्रष्टि .सांस्क्रतिक द्रष्टि से मध्य प्रदेश के कई जिलो में अग्रणी माना जाता था |वहां का बसंतोत्सव ,तुलसी जयंती ,कवि सम्मेलन और कितनी ही साहित्यिक गतिविधिया अपने चरमोत्कर्ष पर थी | उस समय के वरिष्ट कवियों का आगमन बार बार होता ही रहता था |
तुलसी जयंती उत्सव तीन दिनों तक मनाया जाता था , इसके अंतर्गत पहले सभी सरकारी (उन दिनों निजी पाठशाला नही होती थी ) पाठशालाओं में भाषण प्रतियोगिता ,वाद विवाद प्रतियोगिता ,कविता प्रतियोगिता और सबसे आकर्षण का केन्द्र होती थी रामायण की चोपाई और दोहो की अन्ताक्षरी |अन्ताक्षरी में रामायण की अनेक चोपाई कंठस्थ करना होता था |
जो की स्कूली छात्र -छात्राओ वहां लिए बड़ा दुष्कर होता था |पहले अपनी स्कूल से स्पर्धा फ़िर दूसरी स्कूलों से स्पर्धा और अंत में तुलसी जयंती के दिन चयनित छात्र -छात्राओकी अन्तिम स्पर्धा |
अन्तिम और निर्णायक स्पर्धा शहर के बडे ग्रंथालय में आयोजित होती ,जहाँ नगर के सभी गणमान्य अतिथि उपस्थित रहते ,और वहां पर सामान्य जनता भी आमंत्रित रहती |सावन की रिमझिम बारिश में भीगते जाना ,अपने सहपाठियों का उत्साह वर्धन करना कभी न भूलने वाला मंजर है |सभी प्रतियोगिताओ के विषय रामचरित मानस के ही प्रसंग होते | राम भरत मिलाप , उर्मिला का त्याग बडा या सीता का त्याग बड़ा ?"ढोल गवार क्षुद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी ",इस चोपाई पर बड़े ही आक्रामक रूप में वाद विवाद होता था छात्र और छात्राओ के बीच |और इन सबमे एक विषय अनोखा होता था वो था ,"खंडवा में तुलसी जयंती का उत्सव इतनी धूमधाम से क्यो मनाया जाता है"?उस समय तो ठीक से इस विषय की गहराई नही समझ पाए ,क्योकि कभी दूसरे शहर में देखा नही था और कभी गये भी नही थे |
इस विषय के संस्थापक थे दादा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी "एक भारतीय आत्मा ",जिनका उद्देश्य था की बच्चो को स्कुल से ही रामचरित मानस का ज्ञान सरल तरीके से आत्म सात करने को मिले और इसीलिए ये परम्परा का बीजा रोपण किया था तात्कालिक स्कूली शिक्षा के साथ |जिसमे सारा खंडवा "राममय और तुलसीमय "हो जाता था |बच्चो को बहुत कुछ अभ्यास करना होता था और अभिभावकों को उनका मार्ग दर्शन करना होता था |शिक्षको को अपनी स्कुल को अव्वल रहने का प्रयत्न करना होता था ,इसिलिये घर घर में रामायण के गुटके खरीदे जाते थे |इतना ही नही प्रतियोगिताओ के आलावा सांस्क्रतिक कार्यक्रम का आयोजन भी विभिन्न सरकारी गैर सरकारी संस्थाए ,भी अपने स्तर पर आयोजित करती थी जिसमे छोटी छोटी नृत्य नाटिकाए ,रामायण पर आधारित नाटक और रात में विशाल कवि सम्मेलन! जिसमे आज भी मुझे याद है हम कापी पेन लेकर जाते थे और नीरजजी ,शिवमंगल सिह सुमन आदि कवियों की कविता लिखकर लाते थे |
कुछ यादे और संस्कार जीवन में रच बस जाते है ,और किसी के साथ बाँटने में बडा सुख मिलता है बशर्ते की कोई उसे उतनी गंभीरता से सुने जितना गम्भीर और गरिमामय विषय हो |मै अपने को और उस समय के सभी लोगो को भाग्यशाली मानती हूँ , जिनको रामचरित मानस को इस रूप में जीवन में उतारने का अवसर दिया आदरणीय दादा ने |
आज के इस पावन पर्व पर भक्ति काल के प्रमुख कवि गोस्वामी तुलसीदास जी को कोटि कोटि प्रणाम|
और एक भारतीय आत्मा को श्रधा सुमन |
इस विषय के संस्थापक थे दादा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी "एक भारतीय आत्मा ",जिनका उद्देश्य था की बच्चो को स्कुल से ही रामचरित मानस का ज्ञान सरल तरीके से आत्म सात करने को मिले और इसीलिए ये परम्परा का बीजा रोपण किया था तात्कालिक स्कूली शिक्षा के साथ |जिसमे सारा खंडवा "राममय और तुलसीमय "हो जाता था |बच्चो को बहुत कुछ अभ्यास करना होता था और अभिभावकों को उनका मार्ग दर्शन करना होता था |शिक्षको को अपनी स्कुल को अव्वल रहने का प्रयत्न करना होता था ,इसिलिये घर घर में रामायण के गुटके खरीदे जाते थे |इतना ही नही प्रतियोगिताओ के आलावा सांस्क्रतिक कार्यक्रम का आयोजन भी विभिन्न सरकारी गैर सरकारी संस्थाए ,भी अपने स्तर पर आयोजित करती थी जिसमे छोटी छोटी नृत्य नाटिकाए ,रामायण पर आधारित नाटक और रात में विशाल कवि सम्मेलन! जिसमे आज भी मुझे याद है हम कापी पेन लेकर जाते थे और नीरजजी ,शिवमंगल सिह सुमन आदि कवियों की कविता लिखकर लाते थे |
कुछ यादे और संस्कार जीवन में रच बस जाते है ,और किसी के साथ बाँटने में बडा सुख मिलता है बशर्ते की कोई उसे उतनी गंभीरता से सुने जितना गम्भीर और गरिमामय विषय हो |मै अपने को और उस समय के सभी लोगो को भाग्यशाली मानती हूँ , जिनको रामचरित मानस को इस रूप में जीवन में उतारने का अवसर दिया आदरणीय दादा ने |
आज के इस पावन पर्व पर भक्ति काल के प्रमुख कवि गोस्वामी तुलसीदास जी को कोटि कोटि प्रणाम|
और एक भारतीय आत्मा को श्रधा सुमन |
29 टिप्पणियाँ:
ये तो बहुत ही सुन्दर जानकारी दी……………अगर आज भी ऐसी प्रतियोगिताये आयोजित हो तो बच्चों मे अच्छे संस्कारों का बीजारोपण किया जा सकता है।
तुलसी जयंती की बधाई।
दी मन गद-गद हो गया आपका अविस्मरनीय आलेख पढ़ कर
मैं तो कल्पना मात्र कर सकता हूँ पर आपने तो जिया होगा ये सब
बहुत बहुत धन्यवाद इस जानकारी के लिए
और महां कवी तुलसी दास जी को सत -सत नमन ....
और आप को तुलसी जयंती की ढेर सारी बधाई
nice
५०/६० दशक पुरानी बातों को बता कर कुछ समय के लिए हमने भी अपनी घडी पीछे कर ली. वे परम्पराएँ ऐसे छोटे शहरों में ही पायी जाती थीं. कितना उल्लास होता था.तुलसी जयंती ही क्यों, हर ऐसे पर्व पर चाहे गणेश चतुर्थी हो या कुछ और, वृहद् सामुदायिक आयोजन हुआ करते थे जिनमें वे सभी बातें होती थी जिनका आपने उल्लेख किया है. आभार.
तुलसी जयंती की बधाई
हमारे आपके पास ऐसी ही कितनी सुनहरी यादें हैं ....जब बच्चों को बताती हूँ तो बड़े मायूस हो जाते हैं ...अफ़सोस कि हम उन्हें ऐसी यादें नहीं दे पा रहे हैं ...
बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट ...!
कुछ यादे और संस्कार जीवन में रच बस जाते है --सच कहा है आप ने..ऐसी ही कुछ सुन्दर यादें आप ने भी बांटीं हैं..ऐसे कार्यक्रम स्कूलों में कम से कम चलते रहें चाहिए.
-सच कहूँ तो ,तुलसी जयंती पर मैं ने अपने स्कूल आदि मैं ने कभी कोई कार्यक्रम होते नहीं देखा.आज के बच्चे तो शायद परिचित भी न हों इस दिवस से..
शोभना जी,
यह जानकार बहुत अच्छा लगा की ऐसी प्रत्योगिताएं होती थीं और वह भी रामचरितमानस जैसे विषय पर. जैसा की सुब्रमण्यमजी ने कहा की ऐसी गतिविधियां बहुत बड़े स्तर पर होती थी तथा उनमें सब लोग बहुत उत्साह से भाग लिया करते थे.
मैं आपको भाग्यशाली समझता हूँ जो आपने यह सब जिया है...
आपकी पोस्ट को बड़े ध्यान और गंभीरता से पढता हूँ, आप जो साझा करेंगी, वह हमारे लिए किसी उपहार से कम न होगा.
रेगार्ड्स,
मनोज खत्री
-अपने स्वर में तुलसीदास रचित कुछ सुनवा भी देती तो आनंद दुगुना हो जाता.
पहले दी ,आप अपने स्वर में भजन लगाती थीं अब तो आप ने लगता है बिलकुल ही पॉडकास्टिंग बंद कर दी !
vandana ji ne sahi kaha ,guru dev tulsi das ko shat shat naman ,dekhiye sanjog ki baat hui ,main indore gayi to aapki yaad behad aai lekin mera cell ph. bhopal me rah gaya tha aur aap bhi nahi thi wahan .bhopal to jaati hi hoon aksar phir kabhi ....
बहुत बढ़िया जानकारी...
मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ( नदी और चाँद )... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
अल्पनाजी
धन्यवाद |
आपने मुझे दी कहा बहुत ही अच्छा लगा |
मै कोशिश करुँगी फिर से भजन गाने की असल में मैंने अक ही गाना किया था |मुझे ज्यदा तकनिकी प्रयोग नहीं आता बहू ने कर दिया था अभी पोता(निमांश) छोटा है एक साल का वो कुछ करने ही नहीं देता |
सब से पहले आप को तुलसी जयंती की बधाई। बहुत पहले मैने भारत छोड दिया, इस लिये बहुत सारी बाते हमे याद भी नही रही, लेकिन जब से ब्लांग जगत से जुडा हुं तो आप जेसे लोगो की सुंदर ओर संस्कारो से भरी पोस्टे पढ कर बच्चो को भी बहुत कुछ समझा देता हुं अपने देश अपने देश ओर संस्कारो के बारे, आप का बहुत बहुत धन्यवाद इस अति सुंदर लेख के लिये
गोस्वामी तुलसी दास जी को सादर नमन!
बहुत सुन्दर, जानकारी से लबरेज़ पोस्ट. बधाई.
is sundar jaankaari k liye shukriya aapka....
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
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यह परम्परा चलती रहे ।
बहुत रोचक जानकारी दी है। उस समय ऐसी प्रतियोगिताएँ कमसे कम कुछ छोटे पैमाने पर जगह जगह होती थीं। यदि आज भी कोई टी वी चैनल या ढेरों पुरुस्कार दे सकने वाला ऐसे आयोजन करे तो बच्चे भाग लेंगे।
घुघूती बासूती
बहुत ही सार्थक आयोजन हमारी संस्कृति के वाहकों को याद करने हेतु।
thanks for this knowledgeable post!
तुलसी जयंती पर बहुत ही सुन्दर पोस्ट....अब खंडवा में ऐसी प्रतियोगिता होती है या नहीं?...छोटे स्तर पर ही सही पर इसे जारी रखना चाहिए था..
आपकी पोस्ट ने स्कूल की एक सहली की याद दिला दी...जिसे रामायण की ढेरों चौपाइयां याद थीं. और अन्तयाक्षारी में वह जिस टीम में हो,वो टीम कब्भी नहीं हारती थी. होड़ रहती थी उसे अपनी टीम में लेने की. आज के बच्चे तो खैर क्या समझेंगे...पर दोषी कहीं हम भी हैं....इतना वक़्त कहाँ देते हैं...मेरी नानी के यहाँ ग्रहण के समय रामायण पढने का प्रचलन था...खेल खेल में ही हम बच्चे देखादेखी ही रामायण पढने लगते थे.
टी.वी. ने सब चौपट कर दिया....अब तो बच्चे ननिहाल जाकर भी टी.वी. से ही चिपके होते हैं...
Aisi swasth pratiyogita hone se sahi jaankari milti hai,, jaankari ke abhav mein arth ka anarth hone se logo tarah tarah kee baat karte hai, jo dukhad hota hai..
Tulsi jayanti ke suawasar par saarthak post ke liye aabhar
रश्मिजी
तुलसी जयंती उत्सव खंडवा में अब भी मनाया जाता है लेकिन रस्मी तौर पर अभी कुछ दिन पहले मेरी एक सहेली से बात हुई थी जो की स्कूल की प्रिंसिपल है उनका कहना है की अब बच्चे बिलकुल भी रूचि नहीं लेते |
और बहुत सारे आयोजनों में एक रस्म निबाह ली जाती है | प्रमुख ग्रंथालय में "तुलसी" पर विद्वानों ke व्याख्यान आदि तो होते है पर स्कूली प्रतियोगिताये नहीं के बराबर है |
सुन्दर संस्मरण.
बहुत बढ़िया ...शुभकामनायें आपको !!
Hey
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Steve
...आपका अनुभव आपने गहनता से सामने रखा है, आभार!..वैसे सुप्रसिद्ध अभिनेता दादामुनी याने कि स्व. अशोक कुमार और महान कलाकार एवं गायक स्व. किशोर कुमार भी खंडवा शहर की ही देन थे!...बहुत सुंदर आलेख, बधाई!
अच्छी जानकारी , आभार
आप को राखी की बधाई और शुभ कामनाएं
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