Wednesday, August 25, 2010

"स्त्रियाँ "

राखी का त्यौहार आते ही रेडियो पर बजने वाले राखी के गीत कानो में गूंजने लगते है और भावनाओ में हम भाई बहन के स्नेह को और मजबूत पाते है \राखी भाई बहन का त्यौहार तो है ही साथ ही इसमें भाभी के स्नेह कि मजबूत डोर भी होती है |कल जब मै अपने भाई के घर राखी बांधने गई तो रास्ते में अनेक बहनों को सजे धजे अपनी गोद में छोटे छोटे बच्चो को ले जाते हुए बसों में ,ऑटो में ,कारो में रास्ते पर चलते हुए हुए देखकर मन अनोखी सुन्दर भावना से भर गया \हमारे त्यौहार हमे कितना कुछ दे जाते है |भाभिया अपनी ननदों का इंतजार करती है उनके लिए सुन्दर साड़ियाँ उपहार खरीदती है |मिठाई पकवान बनाती है सुबह से अपने पति से कहना शुरू कर देती है नहा लो जल्दी से दीदी को ले आना |
दीदी तुम्हे राखी बांध ले ,खाना खा ले फिर मै अपने भाई को राखी बांधने जाउंगी |पतिजी, जो भाई भी है छुट्टी के दिन
अपनी नींद में खलल पड़ी जानकर कुनकुनाते हुए उठते है ,अभी अभी रविवार को पूरा दिन सोये फिर यह कहना नहीं भूलते कि छुट्टी के दिन भी सोने नहीं देती |
बहनों के आपस के प्रेम कि तो कोई तुलना नहीं , किन्तु भाभी और ननद का रिश्ता भी बेमिसाल है अपने सारे दुःख सुख आपस में बहुत ही स्नेह से बाँट लेता है ये रिश्ता |मेरी एक सहेली कि सासू माँ का अपनी ८० साल कि उम्र में भी अपनी भाभियों से इतना लगाव रखती है जितने अपने बेटे बेटियों से भी नहीं |कुछ ऐसा ही मुझे भी अपनी भाभी से स्नेह मिला है हम चार बहने और एक भाभी मिलकर हम पांच बहने ही बन जाती है |
एक लोक गीत की कुछ पंक्तिया याद हो आई ...

सुनी पड़ी है मेरे जी की अटरिया ,
अब तक न लीन्ही तुमने कोई खबरिया
कागा भाभी के अंगना जइयो
उड़ उड़ के इतना कहियो
कहियो की हम है तोरी -
ननदी की बतियाँ ,ननदी की बतिया ...

ऐसे
ही स्नेह से भरे क्षणों में कुछ भाव उभरे है |

धनिया मिर्ची हल्दी कि खुशबू
में रमती पेंटिंग के रंग बिखेरती है
स्त्रियाँ

दाल चांवल और रोटी में सामंजस्य
बिठाती कविता रचती है
स्त्रियाँ

धान कूटती
नर्म कपास बिनती
नाजुक चाय कि पत्ती तोडती
पशु का चारा सर पर उठती
मिलो दूर से सर पर पानी उठाती
दीवारों और आँगन मे
जीवन के "मांडने "(अल्पना )बनाती है
स्त्रियाँ

खनखनाती चूडियो के बीच भी
कलाई घडी सुई कि तरह
ऑफिस में
मॉल में
अस्पताल में
पेट्रोल iपम्प मे
चाय कि दुकान में
सब्जी कि दुकान मे
समय को संभालती
घर कि धुरी बनती है
स्त्रियाँ

धुले कपड़ो मे
स्नेह कि तह लगाती
विचारो को बुनती
घर को" घर "बनाती है
स्त्रियाँ

राजनीती कि बिसात पर
भले ही बिछाई गई हो
कभी ?
आज राजनीती
कि किताब है
स्त्रियाँ

बिन पिए ही
सच्चे रंगों के नशे मे
जीवन कि सच्चाईयों के साथ
जीवट जीवन जीती है
स्त्रियाँ

पिता ,भाई
पति ,पुत्र
के सुखमय
जीवन के लिए
अनेक व्रत
रखती है
स्त्रियाँ









26 टिप्पणियाँ:

रचना दीक्षित said...

हम चार बहने और एक भाभी मिलकर हम पांच बहने ही बन जाती है
काश ऐसे ही विचार सब के हो जाएँ बहुत अच्छी प्रस्तुति

Manoj K said...

क्या खूब..

शोभना जी, इस पावन पर्व पर आपने बहुत ही अच्छी रचना पाठकों को उपहार स्वरुप दी है. जीवन की पूंजी यह रिश्ते ही तो हैं जो जीवन संघर्ष में हमें संबल देते हैं.

धन्यवाद.

मनोज खत्री

Unknown said...

दी नमस्ते
सच में आप ने रक्षाबंधन के इस सुभ अवसर पर एक बहुत ही प्यारी से पोस्ट भेंट की है हम सब को और ये पंक्तियाँ तो अनमोल है ......
........
सुनी पड़ी है मेरे जी की अटरिया ,
अब तक न लीन्ही तुमने कोई खबरिया
कागा भाभी के अंगना जइयो
उड़ उड़ के इतना कहियो
कहियो की हम है तोरी -
ननदी की बतियाँ ,ननदी की बतिया ......
...

और इन पंक्तियों की आप ही मिसाल हैं ....

...
दाल चांवल और रोटी में सामंजस्य
बिठाती कविता रचती है
स्त्रियाँ
...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शोभना जी ,

आज की कविता बस कमाल है ...स्त्रियां क्या क्या रच लेती हैं ....बहुत सहजता से लिखा है ...बहुत ही पसंद आई आपकी यह रचना ..सुन्दर रचना के लिए आभार .

rashmi ravija said...

बहुत ही प्यारी बात लिखी है.."हम चार बहने और एक भाभी मिलकर हम पांच बहने ही बन जाती है"
भाभी और ननदों में भी बहन सा स्नेह हो जाता है, कुछ ही दिनों में...

कविता ने तो स्त्री के सारे रूप ही व्यक्त कर दिए...बहुत ही सुन्दर रचना

Aruna Kapoor said...

सुनी पड़ी है मेरे जी की अटरिया ,
अब तक न लीन्ही तुमने कोई खबरिया
कागा भाभी के अंगना जइयो
उड़ उड़ के इतना कहियो
कहियो की हम है तोरी -
ननदी की बतियाँ ,ननदी की बतिया ...

भाई और भाभी से मिलने के लिए तडपता बहन का व्याकुल मन...सुन्दर प्रस्तुति...रक्षबंधन की हार्दिक बधाई!

kshama said...

सुनी पड़ी है मेरे जी की अटरिया ,
अब तक न लीन्ही तुमने कोई खबरिया
कागा भाभी के अंगना जइयो
उड़ उड़ के इतना कहियो
कहियो की हम है तोरी -
ननदी की बतियाँ ,ननदी की बतिया ...
Bahut hee sundar lokgeet hai!

ज्योति सिंह said...

aese rishte bahut sukh dete hame ,sach kaha tyohaar madhyam hai aapsi rishto ki dor ko majboot banaye rakhne ka ,aap bahut bahut achchha likhti hai naari aur samajik vishyo par .padkar sukoon milta hai .ati sundar .

shikha varshney said...

वाह शोभना जी ..बेहद खूबसूरत भाव संजोये हैं आपने.
बहुत पसंद आई रचना.

राज भाटिय़ा said...

शोभना जी , बहुत सुंदर लिखा, काश आज सब ऎसे ही हो जाये

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही सुंदर ... लाजवाब ... स्त्रियों के अलग अलग रूप को बखान करती सजीव कविता ....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन्दर कविता.

ZEAL said...

.
आपका लेख पढ़कर सर्वत्र मिठास घुल गयी । खुशनसीब हैं वो जो ऐसे माहोल में रहते हैं।
.

रचना said...

kavita adbhut

अजय कुमार झा said...

एक अद्बुत पोस्ट.....

Mithilesh dubey said...

क्या कहूँ , निशब्द कर दिया आपने । लाजवाब पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार्य करें।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर ...

sandhyagupta said...

बहुत कुछ समेट लिया आपने इस पोस्ट में.कविता भी गहरा प्रभाव छोडती है.शुभकामनायें.

कविता रावत said...

Rakhi ke suawasar par likhi naari ke vividh roop ka sajeev chitran karti aapki rachna rishton kee praghadhta ko bakhubu darshati hai..
Rakshavandhan kee haardik shubhkamnayon sahit aabhar

अमिताभ श्रीवास्तव said...

स्त्रिया ही हैं। पालक। किसी भी रूप में हो..पालन करना उनका एक्मेव धर्म हैं। इसीलिये हर रूप में पूजनीय।

रंजना said...

भावुक कर दिया आपने....
आपके इस पोस्ट का एक एक शब्द अपने साथ बहा ले गया......
बहुत ही सही कहा है आपने....
दिल को छूती,मोहती,बहुत ही लाजवाब पोस्ट...

ZEAL said...

जनीती कि बिसात पर
भले ही बिछाई गई हो
कभी ?
आज राजनीती
कि किताब है
स्त्रियाँ

जितनी तारीफ करूँ , कम होगी !...बेहेतरीन एवं सार्थक रचना ।

gaurtalab said...

aise rachna to keval aap hi rach sakti hai...bahut khub!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 31 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

धुले कपड़ो मे
स्नेह कि तह लगाती
विचारो को बुनती
घर को" घर "बनाती है
स्त्रियाँ

striyaan ..waah !

पवन धीमान said...

धुले कपड़ो मे
स्नेह कि तह लगाती
विचारो को बुनती
घर को" घर "बनाती है
स्त्रियाँ.....स्त्रियों के बिना कायनात अधूरी नहीं, अर्थहीन है....matr सत्ता को प्रणाम....बहुत सुन्दर और तथ्यपरक रचना.