Tuesday, September 07, 2010

"हर सिंगार कि महक "




गुलाब के आलावा और भी
बहुत कुछ है


हर साल
हमेशा


सफेद खिले चांदनी के फूल
कहते है मुझे

हम अनगिनत है
तौले नहीं जा सकते ?

हममे कांटे नहीं
बच्चे भी सहला ले हमे

मेरा भाई है भी तो है कनेर
लाल है ,
पीला
है ,नारंगी है

गूँथ लो हमे साथ साथ
साथ में चाहो तो गुडहल लगा लो
साथ
में चाहो तो तिवड़ा लगा लो
हम
है एक परिवार आते है
साथ
साथ रहते है
साथ

पर तुम तो
गुलाबो
के आदि हो गये हो
क्या
हुआ ?
क्या
कहा ?
खुशबू
नहीं है ?
इतने में
हर सिंगार महक उठा
मै तो हूँ खुशबू के लिए
मुझे भी गूँथ दो साथ साथ
अकेले मुरझा जाऊंगा
मुझे अकेले रहने की आदत नहीं
सारे फूल खिलखिला उठे
एक ही माला में
और मै
गुलाबो की आरजू
छोड़
महक गई हर सिंगार में |



24 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी यह रचना महका गयी ....

पीले रंग में लिखा हुआ पढ़ा नहीं जा रहा ..इसका रंग बदल दें ..

शोभना चौरे said...

संगीता जी
धन्यवाद
|मैंने रंग बदल दिया है |

Unknown said...

दी नमस्ते ....
बहुत सुन्दर रचना ...
क्या बरनन किया है आपने
और गुलाब का विकल्प भी दे दिया .
......आभार

shikha varshney said...

अरे शोभना जी ! रंग बदलिए ..कुछ पढ़ा नहीं जा रहा .सब चमक सा रहा है .

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर लिखा है आपने, चांदनी के बारे में और अंत में हरसिंगार तो महका ही गया पूरी रचना को और पढ़ने वालों को, आभार ।

Aruna Kapoor said...

...हर सिंगार की महक इस कविता में रचि-बसी है.....अति सुंदर!

kshama said...

Haar singaar to hai hi..aap molashree kaise bhool gayin? In dono ke saath badee madhur yaaden judee huee hain!

रचना दीक्षित said...

सच ही कहा आपने हर श्रृंगार की खुशबू तो दीवाना बना देती है हर सिंगार की महक इस कविता में बसी है आभार

रश्मि प्रभा... said...

ek ek rishton kee khushboo hai in phulon me

ZEAL said...

सारे फूल खिलखिला उठे
एक ही माला में
और मै
गुलाबो की आरजू छोड़
महक गई हर सिंगार में |

शानदार रचना !

स्वप्न मञ्जूषा said...

दी,
क्षमा चाहती हूँ देर से आई हूँ..
हर फूल की अपनी अहमियत है ..कितनी अच्छी तरह बता गई आपकी कविता...

बहुत सुन्दर..!

vandana gupta said...

इस महक से तो हम भी महक गये।्खूबसूरत अभिव्यक्ति।

कविता रावत said...

...रिश्तों की भीनी भीनी सुगंध में पिरोई माला एक साथ जीने का सन्देश देती हुयी मन की गहराई में उतर कर जैसे सच में यही कह रही है......
मुझे भी गूँथ दो साथ साथ
अकेले मुरझा जाऊंगा
मुझे अकेले रहने की आदत नहीं
सारे फूल खिलखिला उठे
एक ही माला में
और मै
गुलाबो की आरजू छोड़
महक गई हर सिंगार में
......बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

P.N. Subramanian said...

बहुत सुन्दर रचना. इस माह के अंत में हमारे अंगने के हरसिंगार के पेड़ में पत्ते नहीं दिखेंगे. फूलों से लदा होगा. सुबह नीचे एक चादर सी बनेगी.

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी मधुर है फूलों की अभिव्यक्ति।

k.r. billore said...

har singar ke phulo ki mahak se ham sarabor ho gaye aour ek bar phir apne bachapan ki yad aagaijab dadi bhagvan ki puja ke liye phul lane ko kahti aour ham bhagkar aangan me jakar pead ko hilate aour aangan me phulo ki chadar si bich jati aour ham unko dhire -dhire chunkar apni jholi bharkar dadi ke pas aa jate ....kaha gaye vo din aour vo har singar ki khushbu,,,,,,,kamana mumbai..........

Udan Tashtari said...

सुन्दर महकती रचना.

दीपक 'मशाल' said...

खुशबू से सराबोर करती यह हरसिंगारी रचना हर पुष्प की अपने अधिकार के लिए लड़ाई की तरह दिखी... बहुत बढ़िया मैम..

शोभना चौरे said...

कामना
सच वो यादे ही ही तो हमारी धरोहर बन गई है |दादी हर चोमासे में सवा लाख की " लाखोलई "चढ़ातीजिसमे फूल ,और अनाज के दाने होते फूल में पारिजात के फूल ही चढाये जाते (शायद गिनती में वही सवा लाख हो सकते हो ?)हम बच्चे(कामना मेरी छोटी बहन ) फूल चुनकर लाते सुबह -सुबह, और स्कूल जाने के पहले गिनती कर लिख जाते दादी के पास मंदिर में |
सुब्रमन्य्हमजी
आपके आंगन के हरसिंगार देखने आना पड़ेगा |मन ललचा दिया है |
आप सभी का दिल से धन्यवाद जो अपने हरसिंगार की महक को स्नेह से महसूस किया |

rashmi ravija said...

फूलों की खुशबू सी महकती ये कविता...बहुत सुन्दर

नीरज गोस्वामी said...

बेमिसाल महकती हुई , महकाती हुई रचना...

नीरज

दिगम्बर नासवा said...

सच है हर कोई गुलाब को चाहता है .... काश ये धारणा बदल सके ...

Mumukshh Ki Rachanain said...

और मै
गुलाबो की आरजू छोड़
महक गई हर सिंगार में |

इसी से तो इस फूल को हरसिंगार कहते हैं.
सुन्दर रचना सुन्दर भाव
हार्दिक आभार

चन्द्र मोहन गुप्त

अजय कुमार said...

ढ़ेर सारी खुशबू समेटे हुए सुंदर रचना ।