बहुत दिनों से अलग अलग और महत्वपूर्ण विषयों पर ब्लाग पढ़े और मन में बहुत से विचार उठते है जिन्हें कभी टिप्पणी के माध्यम से व्यक्त कर देती हूँ किन्त कुछ चीजे अनुतरित ही रह जाती है |
कुछ पुराना लिखा ही आज पोस्ट कर रही हूँ |
कमरे में टी.वि पर t-20 क्रिकेट का बढ़ता हुआ शोर .घर के बाहर बच्चो का चिल्लाना ,अपनी माँ का आंचल पकड़कर जिद करते हुए रोना और मन मे उठते अनेक द्वंदों के बीच बरसो से नियमित करती हुई आरती कि लय का टूट जाना मुझे विचलित कर गया |क्या मुझमे इतना भी धैर्य नहीं कि ,या मेरी समस्त पूजा मुझे इतना भी नहीं सिखा सकी? कि मै अपने आप को कुछ देर तक शांत रख पाऊ |फिर मेरा मनन शुरू हो गया आखिर किस बात ने मुझे विचलित किया ,टी. वि ने ,बच्चो के शोर ने ?पर ये तो रोज ही होता है |दिन भर कि दिनचर्या पर नज़र डाली तो सोचने लगी आज फोन पर किससे बात हुई ,किसने अपनी बहू के बारे क्या कहा ?किसने अपने घर के किये कामो को गिनाया ?इसी पर पर मुझे ध्यान आया अभी अभी नै काम वाली बाई लगी थी पता नहीं ये १०विपास थीया या ग्यारवी पास | बाई !अब तो बाई लगते ,छूटते ऐसा लगने लगा है कि हममे कितनी कमिया है कि कोई बाई टिकती ही नहीं जैसे आजकल शादिया नहीं टिकती कोई ठोस कारण नहीं होते शादी न टिकने के पर फिर भी नहीं टिकती शादी ,वैसे ही बाई छूटने के कोई ठोस कारण नहीं होते |
हाँ तो नई बाई को दो दिन हुए थे काम करतेहुए इस बार मैंने सोच लिया था उसके दुःख दर्द नहीं पूछूंगी उसके दुःख दर्द कब मेरे हो जाते है और वो मुझे ऐसे ही छोड़कर दूसरो को अपना दुःख सुनाने चली जाति है मेरी जैसी मम्मीजी को ?
पर अपनी आदत से लाचार उसके रहन सहन को देखकर मेरी जिज्ञासा का कटोरा भर चुका था|
पिनअप कि हुई बढ़िया साडी ,ब्यूटी पार्लर से कटाए हुए बाल ,आइब्रो करीने से सवरे हुए जब वो सुबह आती तो एक बार मै उसे देख अपने आप को देखने लगती औए मन ही मन तुलना करने लगती और खीज हो आती अपनी बढती उम्र पर |
आखिर मैंने पूछ ही लिया इसके पहले कहाँ काम करती थी? वहां क्यों छोड़ा ?
कितने ही बार टी।वि पर समाचारों में देखा था कि घरेलू नोकर रखने के के पहले अच्छे तरह से जाँच पड़ताल कर ले पुलिस में भी सूचना दे दे |अब पुलिस में सूचना करना तो अपने बस कि बात नहीं? पर कम से कम बातो से ठोंक बजा तो ले बस इसी के चलते मै अपनी डयूटी पूरी कर रही थी |
मेरे प्रश्नों के उत्तर उसने बड़ी तत्परता से दिए -कहने लगी मैंने अभी तक कही कोई काम नहीं किया है पहला ही काम है |
मैंने पूछा ?तो अब तक कैसे घर चलाती थी |
वो कहने लगी -अभी तक मै सास ससुर के साथ रहती थी अब उनसे अलग हो गई हूँ ,घर का किराया दो हजार रूपये है १००० आपके यहाँ से मिल जावेगे १००० का एक घर और है |
और बाकि घर का खर्चा कैसा चलेगा ?
वो तो मेरे पति अच्छा कमाते है वो चला लेगे |
तुम तो पढ़ी लिखी लग रही हो /
हां मै बी. ऐ .पढ़ी हूँ |
तो कोई स्कूल में क्यों नहीं पढ़ा लेती ?आजकल तो गली गली में स्कूल है |
उपदेश देने की आदत से मजबूर होकर मैंने पूछा ?
हाँ पढ़ाती थी न ? कुर्सी के नीचे पोछा लगाते हुए वो बोली -पर वहां सुबह ७ बजे से जाना होता है और दोपहर दो बजे वापसी होती थी और सिर्फ ९०० रूपये मिलते थे बच्चे भी दादा दादी के पास रह लेते थे |अब जब अलग हो गई हूँ तो इन्हें कौन संभाले ?
पर तुम अलग क्यों हुई ?मैंने फिर कुरेदा |
मुझसे नहीं होता रोज सुबह शाम सास ससुर का खाना बनाना , उनके कपड़े धोना उनकी बंदिशे मानना|
जब से अलग हूँ अच्छा है कोई रोक टोक नहीं है अभी तो मुझे आपके सामने वाले घर में भी खाना बनाने को बुला रहे है १५०० का काम है |
इतना कहते कहते उसका पोछा पूरा हो गया, फटाफट हाथ धोये और वो बोली -अच्छा मम्मीजी आज मुझे ५०० रूपये अडवांस दे दो मुझे गैस कि टंकी लेनी है |
मै कुछ बोल भी नहीं पाई बस दिमाग में घूम रहा था १२वि बाई कहाँ से पाऊँगी ?
५०० का नोट निकलकर उसे दे दिया |
तब से ही शायद विचार उमड़ घुमड़ रहे थे .अपने बचपन के सारे गुरु याद आ गये |
और शिक्षा कि लय बिगडती देखकर मेरी आरती गाने कि लय भी टूट चुकी थी ????/,
Thursday, February 03, 2011
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16 टिप्पणियाँ:
Bahut dinonbaad aapko padha...achha laga.Lekhan me bahut lay hai.
जीवन की लय से शिक्षा की लय अलग हो जाती है।
शोभना जी!
एकदम अनोखा अनुभव और सोचने पर मजबूर करने वाला भी!
विचारणीय है शोभना जी .... शिक्षा और जीवन की लय में यह असमानता .....
बिलकुल सही लिखा आपने , आज शिक्षा कि लय बदल रही है । अफ़सोस हुआ ये जानकार कि एक पढ़ी-लिखी लड़की अपने सास ससुर कि सेवा नहीं करना चाहती बल्कि झाडू-पोंछा करके आजादी चाहती है। इश्वर सद्बुद्धि दें ऐसे नादान लोगों को ।
"आजादी" ये शब्द आज सभी के जीवन में अलग ही अर्थ रखने लगा है | शिक्षा की लय तो काफी बिगाड़ गई है आप को बताऊ किसी छोटे शहर की एम ए बी ए से कही ज्यादा होसियार समझदार और जानकर बड़े शहरों को आठवी के बच्चे होते है | इस तरह के ज्यादातर के पास बस डिग्री होती है शिक्षा समझदारी और दिमाग नहीं |
समय और मूल्य कितनी तेज़ी के साथ बदल रहे हैं ....
पर इन सब के लिए कौन जिम्मेवार है .... कुछ प्रश्न कहे कर रही है आपकी पोस्ट ... पर जवाब ढूंढें से नहीं मिल रहा .....
बी.ए. की किताबी डिग्री तो मिल गयी...पर जीवन की शिक्षा कहाँ से मिले...
अपने घर के बुजुर्ग के जूठे बर्तन..कपड़े नहीं धोने, पर दूसरे घरो में यह सब करने से कोई गुरेज़ नहीं...क्या अर्थ है ऐसे पढ़े-लिखे होने का..
बहुत कुछ सोचने-समझने को विवश कर गयी यह पोस्ट
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार ०५.०२.२०११ को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
लिखा हुआ कब पुराना होता है? जब पढने में आये तब नया। और अगर वो 'शिक्षा की लय' पर हो तो गीत मुग्ध करता ही है। यह जो लेखन है वो जीवन की उन बंधनों को खोलता है जो हम फिजुल में गांठ लिया करते हैं। आपने बहुत सुन्दर तरिके से बयां किया है।
शोभना जी आपने तो शिक्षा की लय पर ही नहीं बल्कि समाज की लय पर जबरदस्त कटाक्ष किया है.
आपको काफी देर देर से पढ़ने का मौका मिलता क्या बात है?
बहुत अनोखी घटना है ये ...
हद है ...घर में सास ससुर की सेवा करने से बेहतर दूसरों के घर के काम लग रहे हैं ...कमाल ही है !
विचारणीय है ....
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सचमुच बिगड़ रही है लय कई जगहों पर... क्या होगा आगे ?
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अच्छी विचारणीय रचना !
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