Monday, January 24, 2011

एक चुटकी प्रयास -5



"गणतन्त्र दिवस की अनेक शुभकामनाये"
स्वामी विवेकानन्दजी के विचारो की श्रंखला में आज उनकी तिथि पूजा के उत्सव के अवसर पर आज के उनके विचार है -
* अपने में आज्ञा पालन का गुण लाओ ,पर देखना कहीं अपनी श्रद्धा मत खो बैठना |गुरुजनों के प्रति हुए बिना केन्द्रीयकरण असम्भवd है |और बिनाu इन अलग अलग शक्तियों के केन्द्रीयकरण के ,कोई भी महान कार्य नहीं हो सकता |
* तुममे से प्रत्येक को महानa होना होगा -'होनाm ही होगा 'यही मेरी टेक है |यदि तुममे आदर्श के लिए आज्ञा पालन ,तत्परता औरb कार्य के लिए प्रेम -ये तीनो बाते रहे तो तुम्हे कोई रोक नहीं सकता \
* लोहे के गर्म रहते उस पर चोट करो |आलस्य से काम नहीं चलेगा |इर्ष्या और अंहकार की भावना सदा के लिए दूर कर दो |आओ अपनी साडी शक्ति के साथ कार्य क्षेत्र में उतर जाओ |शेष सबके लिए हमे श्री भगवान मार्ग बता देंगे |
* उतावलेपन से कुछ नहीं होता |सफलता के लिए तिन बाते अनिवार्य है -पवित्रता ,धैर्य और अध्यवसाय ;
और सर्वोपरी चाहिए प्रेम |अनन्तकाल तुम्हारे सामने है ,इस उतावले पं की कोई आवश्यकता नहीं |
* प्रत्येक राष्ट्र के इतिहास में सदैव तुम देखोगे की वेही व्यक्ति महान और शक्तिशाली बने ,जिन्हें अपने आप में विश्वास था |
* मृत व्यक्ति फिर से नहीं जीता !बीती हुई रात फिर से नहीं आती ;नदी की उतरी बढ़ फिर से नहीं लौटती ;
जीवात्मा दोबार एक ही देह धारण नहीं करता |
अत; हे मनुष्यों अतीत की पूजा करने के बदले हम तुम्हे वर्तमान की पूजा के लिए पुकारते है ;बीती हुई बातो पर
माथापची करने के बदले हम तुम्हे प्रस्तुत प्रयत्न के लिए बुलाते है ;मिटे हुए मार्ग के खोजने में वृथा शक्ति -क्षय करने के बदले अभी बांये हुए प्रशस्त और सन्निकट पथ पर चलने के लिए अव्हाहं करते है |बुद्धिमान समझ लो |
* एक बार फिर से अपने में सच्ची श्रद्धा लानी होगी |
आत्मविश्वास को पुन; जगाना होगा ,तभी हम उन सारी समस्याओं को सुलझा सकेंगे ,जो अज हमारे देश के सामने है |
* तुम थोड़ी सी परिमार्जित भाषा में बात कर सकते हो और इसलिए बस सोचते हो की तुम साधारण जन से ऊँचे हो !और सर्वोपरि ,यदि कहीं तुममे आध्यात्मिकता का धमंड घुस गया ,तब तो धिक्कार है तुम्हे !वह तो सबसे भयंकर बंधन है |
* मुझे कठोपनिषद के उस uddt bhav -व्यंजक शब्द का स्मरण आता है -'श्रद्धा 'अर्थात vishvas इस श्रद्धा की शिक्षा का प्रचार करना हीa मेरे जीवन का ध्येय है |मुझे फिरs एक बार करने दो -यह श्रद्धा ही का -सारे धर्मो का महा सामर्थ्यवान अंग है |पहले स्वयम निज के प्रति श्रद्धावान होओ |धनिकों और पैसोवालो की और आशा भरी द्रष्टि से मत देखो |दुनिया में जीतें काम हुए है सब गरीबो ने किये है |स्थिर भाव से श्रद्धा के साथ कार्य किये जाओ ,और सर्वोपरी पवित्र और धुन के पक्के बनो |तुम्हारा भविष्य उज्जवल होगा -यः विश्वास रखो |
* हमारे राष्ट्र के रक्त में एक भयंकर रोग संक्रमित होता जा रहा है और वह है -हर एक बात की खिल्ली उडाना
गम्भीरता का अभाव |उसे दूर कर दो |
बलवान बनो और इस श्रद्धा को अपनाओ ,देखोगे शेष सब वस्तुए अपने आप ही आने लगेगी |
* यः न सोचो की तुम दरिद्र हो तुम्हारा कोई साथी नहीं है |अरे ,क्या कभी hकिसी ने पैसे को मनुष्य बनाते देखा है
tसदैव मनुष्य ही पैसा बनाता है ,यह सारी दुनिया aतो मनुष्य की शक्ति से ,उत्साह से sबल से ,श्रद्धा के बल से ही बनी है |
* मै चाहताहूँ कट्टर व्यक्ति की तीव्रता के साथ साथ जडवादी की विशालता का योग \सागर के समान गंभीर और अनंत आकाश के समान विशाल -बस ऐसा ही ह्रदय चाहिए हमें |

* पवित्र बनने के प्रयास में यदि मर भी जाओ तो क्या ;सहस्त्र बार म्रत्यु का स्वागत करो|ह्रदय न खोना |यदि अमृत न मिले तो यः कोई कारण नहीं की हम विष खा ले |
*धर्म को लेकर कभी विवाद मत करो |धर्म सम्बन्धी सरे विवाद और झगड़े केवल यही दर्शते है की वहां आध्यात्मिकता का आभाव है |धर्मं सम्बन्धी झगड़े सदैव खोखली और असर बातो पर ही होते है |जब पवित्रता -आध्यात्मिकता -आत्मा को छोड़ कर चली जाती है तभी शुष्क झगड़े -विवाद आरम्भ होते है ,उसके पूर्व नहीं |
* धारणा की द्रढ़ता और उद्देश्य की पवित्रता -ये दोनों मिलकर अवश्य baji mar ले जायेगे |
और यदि एक मुट्ठी लोग इन दो शस्त्रों से सुसज्जित रहे ,तो वे निश्चित ही समस्त विध्न बाधाओं का सामना कर अंत में विजय प्राप्त कर लेंगे |
* 'उतिष्ठत ,जाग्रत ,प्राप्य वरान्निबोधत '-उठो !जागो !और जब तक ध्येय की प्राप्ति न ही हो जाती ,तब तक रुको मत !
-साभार विवेकानन्द की वाणी





11 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय said...

उतिष्ठत ,जाग्रत ,प्राप्य वरान्निबोधत

अनुकरणीय ध्येय वाक्य।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

प्रासंगिक विचार ...सार्थक पोस्ट
गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपका यह एक चुटकी प्रयास मन को बहुत भाया ...आभार

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

ZEAL said...

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@-उतिष्ठत ,जाग्रत ,प्राप्य वरान्निबोधत '-उठो !जागो !और जब तक ध्येय की प्राप्ति न ही हो जाती ,तब तक रुको मत ....

बस यही तो समझना है सभी कों ।

ध्येय कों समझना है और फिर उसमें सतत लगे रहना है।

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kshama said...

Prayaas bahut achha hai!
Gantantr diwas bahut,bahut mubarak ho!

ज्योति सिंह said...

vivekanand se judi baate jaanna achchha lagta hai .is karan ye post bhi bha gayi .uttam ,gantantra divas ki badhai .

anshumala said...

यदि इन विचारो को कुछ अंश भी अपने जीवन में हम उतार ले तो हमारे जीवन और सोच का रुख काफी सकारात्मक हो जायेगा |

rashmi ravija said...

आप बड़े श्रमपूर्वक ये चुटकी भर प्रयास कर रही हैं...
विवेकानंद जी के विचार से हमें यूँ अवगत कराते रहने का बहुत बहुत शुक्रिया

PN Subramanian said...

प्रेरणादायी पोस्ट. आभार.

केवल राम said...

जीवन को प्रेरणाओं से भर देने वाले दिव्य व्यक्तित्व की जानकारी प्रेरणादायी है ....आपका आभार

कविता रावत said...

'उतिष्ठत ,जाग्रत ,प्राप्य वरान्निबोधत '-उठो !जागो !और जब तक ध्येय की प्राप्ति न ही हो जाती ,तब तक रुको मत !
......बहुत सार्थक चुटकी ....
विवेकानन्द की अनमोल वाणी की सार्थक प्रस्तुति के लिए आपका बहुत बहुत आभार