हम लोग लोगो को आदत सी हो जाती है जिस शहर में जो वस्तु प्रसिद्द हो उसका नाम ,लेने की, अगर कोई ऐतिहासिक वस्तु के कारण प्रसिद्द है और कोई अन्य कारण से तो हम प्रतीकात्मकता से उसका नाम लेते है जैसे, आगरा मशहूर है ताजमहल के लिए किन्तु आगरा वाद विवाद में बात बढ़ जाती है तो दुसरे व्यक्ति को अहसास कराया जाता है तुम्हे तो आगरा में होना चाहिए था (सर्वविदित है की आगरा पागल खाने )के लिए भी प्रसिद्द है | कितु बहुत से लोगो को बहुत से शहरों की प्रसिद्धि का पता नहीं नहीं होता |और वो उस शहर की उपयोगिता को वहा की प्रसिद्धि को जाने बिना ही उस शहर के बारे में जाने अनजाने अपनी राय ,अपनी खीज को उतारते रहते है |
,वैसे उनका दोष भी नहीं था क्योकि जिस जमाने में वे जिस शहर को कोसती थी ,तब दूसरे प्रदेश क्या ?अपने प्रदेश के पास के शहर के आलावा उन बिचारी को दूसरे शहर का नाम भी नहीं मालूम था |दूर दराज के गाँव में मिडिल स्कूल के हेडमास्टर की पत्नी थी |बहुत बड़ा घर था दादा दादी का , दादी की कोई दूर के रिश्ते दार थे मास्टरजी| दो कमरे रहने को दे दिए थे दो कमरे क्या ?वो तो पूरा घर ही वापरते थे क्योकि घर में दादा दादी के आलावा तो कोई रहता नहीं था हम सब तो छुट्टियों में ही गाँव जाते थे \पूरा आंगन ,कुए का पूरा उपयोग ,करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानती थी वो ,पूरे समय तो उनका और उनके ६ बच्चो का ही राज रहता, बाकि तीन बड़े बच्चे शहर में पढ़ते | वो भी छुट्टियों में ही आते वे शहर में रहते तो थोड़ी मर्यादा से रहते वर्ना वो ६ बच्चे क्या धूम चौकड़ी मचाते दिन भर ?पिताजी हमेशा दादाजी से कहते यहाँ छुट्टियों में शांति से रहने आते है तो यहाँ अलग ही बवाल मचा रहता है!
दादाजी कहते- थोड़े दिनों की बात है इनका तबादला हो जायेगा फिर हमको इनकी अच्छी बस्ती रहती है |
ये बात अलग है की वो पूरे ८ साल रहे उस घर में |
मास्टर साहब को सब लोग गुरूजी कहते -गुरूजी तो बिलकुल सीधे साधेअपने काम में व्यस्त रहते स्कूल की छुटियाँ होने पर भी उन्हें सारा काम रहता पोस्ट ऑफिस का काम भी वही देखते \घर में तो वे मेहमान की तरह ही
रहते \मास्टरनी जी (अब मास्टर की बीबी तो मास्टरनी होगी न )जरा तेज तर्रा र दिन भर काम करते करते अभावो से लड़ते लड़ते खीज जाती ,उपर से शैतान बच्चे ?दिन भर में दो चार बार तो सबकी कुटाई हो ही जाती |और वाणी के प्रहार चलते वो अलग \हम सब भाई बहनों को भी उनको पिटते देखने मजा आता साथ में वो क्या बोलती ज्यादा कुछ तो समझ नहीं आता क्योकि उसमे खास गाँव की बोली होती |
एक बार उन्होंने अपनी बेटी के बाल पकड़कर कहा -तुझे तो मै ऐसा मारूंगी की सीधी" नैनीताल " में साँस लेगी |
उस समय तो हमारे लिए भी नैनीताल का कोई महत्व नहीं था नहीं कभी इस शहर का नाम सुना था ?
कहाँ मध्यप्रदेश का एक छोटा सा गाँव और पास ही खंडवा शहर! इसके आगे की दुनिया किताबो के जरिये ही जानी थी \धीरे धीरे शिवानी जी की किताबो के माध्यम से नैनीताल को जाना वहां की खूबसूरती को महसूस किया |
पिछले वर्ष काठगोदाम से अल्मोड़ा जाना हुआ तब बीच में नैनीताल आया था तब अचानक बचपन वो वाकया याद हो आया मन में अचानक विचार आने लगे की कैसे मास्टरनीजी ने नैनीताल जैसे खूबसूरत शहर का प्रयोग अपने बच्चो को सजा देने के लिए किया ?उन्होंने अपने निवास से शायद नैनीताल की दूरी उड़ते उड़ते सुन ली होगी ?
या कभी किसी ने कोई किस्सा सुनाकर डराया होगा ?कोई कोई शहरी लोग( उस समय )गाँव में आकर छोटो छोटी बातो को नमक मिर्च लगाकर किस्से बनाया करते थे \मै आज भी सोचती हूँ की क्या कारण रहा होगा ?
ये बात अलग है उनके सारे बच्चे मेहनत से पढ़कर अच्छे नोकरियो में लगे जो नैनीताल भेजे जा रहे थे वे उससे भी दूर विदेशो में जा बसे है |
Tuesday, May 10, 2011
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25 टिप्पणियाँ:
Ye bhee kaisee sazaa rahee hogee??
घर से दूर रहना कोई विषय नहीं रह गया है, पहले होता था।
शोभना दी!
कुछ चलन अपने आप शुरू हो जाते हैं.. जैसे बरेलीके बाज़ार में झुमका या लागा लागा झुलनिया का धक्का,बलम कलकत्ता पहुँच गए.. वैसे ही नैनीताल.. अच्छी घटना और मनोरंजक संस्मरण!!
samay ka chakr dekhiye, jinhe nainital jana tha ve log videsh pahunch gaye.. diljasp kissa..
आ. शोभनाजी,
ऐसा होता रहा है और मुझे लगता आज भी ठेठ गांव में होता भी होगा...। किस्सा रोचक है, वैसे भी आपके संस्मरण यकिनन बेहद 'टची' होते हैं...और यह भी दर्शाते हैं कि आपकी याददाश्त माशाअल्लाह बेहद दुरुस्त है.
कुछ शहर यूँ ही बदनाम हो जाते हैं ...आगरे का नाम आते ही पेठा और ताजमहल से पहले पागलखाना याद आता है !
आजकल पूरा विश्व ही सिमट गया है तो दूरियां इतनी मायने नहीं रखती !
सुंदर संस्मरण .......प्रासंगिक बातें हैं सारी....अब दूरियों की सोचता ही कौन है....
बेहद रोचक प्रसंग रोज़मर्रा की जिंदगी से. आपके संस्मरण लिखने का तरीका बहुत खूबसूरत है. बधाई.
kuch baaten yun hi zubaan per aa jati hain ...
बहुत सारे स्थान हैं ऐसे जो किसी न किसी नाम से अपनी पहचान रखते हैं। भाषा में मुहावरों का बहुत बड़ा स्थान होता है, इसलिए इनका प्रचलन हमेशा बना रहता है।
रोचक संस्मरण।
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कुछ लोगों को कहते सुना है - " इतना मार पड़ेगी की दिमाग हरा हो जाएगा"......यदि हरा हो भी गया तो लोगों को दिखा कैसे ?
कुछ ऐसे ही रोचक phrases प्रचलन में आ जाते हैं ।
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अब कहाँ रह गई हैं दूरियां.
रोचक संस्मरण .
@ अमिताभजी
बचपन की कुछ बाते दिल और दिमाग में इस तरह अंकित हो गई है की उससे कोई घटनासम्बन्धित कोई घटना होती है वो चलचित्र की भांति सामने आ जाती है \और कुछ चीजो का लाख यद् करने पर भी उनका सिरा नहीं मिल पाता|
संस्मरण में कल्पना शीलता को स्थान न देने के कारण और आगे नहीं बढ़ पाती|
@प्रवीन जी
@वाणीजी
@शिखाजी
आज भी दूर दराज गाँव में दूरियां विद्यमान है | भले ही मोबाईल टावर हो नेटवर्क नहीं होता |बिजली ३६ घंटे तक नहीं होती और टेलीफोन आधे से ज्यादा समय खराब रहते है |
रोचक संस्मरण ....
...ऐसा ही होता है शोभना जी!...आपने सुना होगा...दिल्ली का ठग और मुंबई का मवाली!...अब दिल्ली और मुंबई में क्या अच्छी चिज-वस्तुएं होती नही है?...विचार करने योग्य आलेख...धन्यवाद!
बेहद रोचक तरीके से लिखा है,संस्मरण
Manaoranjak sansmaran. Hamare bachpan men to pitaee aam bat hotee thee. Dinbhar ke kashton kee abhawon kee kheej ma utarati kahan bachchon par heet to. Naineetal kee saja to achchee rahee chahe dhamakee hee sahee.
पुरानी यादें रोचक होती ही हैं ....शुभकामनायें आपको !
वो भी छुट्टियों में ही आते वे शहर में रहते तो थोड़ी मर्यादा से रहते वर्ना वो ६ बच्चे क्या धूम चौकड़ी मचाते दिन भर ?पिताजी हमेशा दादाजी से कहते यहाँ छुट्टियों में शांति से रहने आते है तो यहाँ अलग ही बवाल मचा रहता है!... chhutiyan ka asli maja bachhe hi leti hain... bahut yaad dila dee aapne bachpan ke dino kee. ...
saarthak sansmaran prastuti ke liye aabhar!!
पुरानी बातें याद दिलाता रोचक संस्मरण
:)
बहुत दिनों से आपने कोई नयी पोस्ट नहीं लगायी। इंतज़ार में हूँ।
आपकी प्रतीक्षाहै शोभना जी ।
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