Thursday, June 30, 2011

"समाधान "कहानी

बहुत दिनों से कुछ नया नहीं लिख पाई हूँ |
एक कहानी पोस्ट कर रही हूँ
|अपने आसपास बहुत सी ऐसी बिखरी चीजे देखते है तो लगता है इन्हें समेट कर सब कुछ व्यवस्थित कर लेंगे लेकिन जिंदगियां ड्राइंग रूम की तरह नहीं होती की उन्हें अपने हाथो से सजा दे सवार दे और फिर कई दिन दिन तक वो उतनी ही व्यवस्थित रहती है |हमारी भावनाए ,हमारे अहसास ,हमारी महत्वाकांक्षाएं हमें स्थिर कहाँ रहने देती है ?
और शुरू हो जाती हैएक अंतहीन जंग! दिल और दिमाग की|
प्रस्तुत कहानी एक सच्ची घटना पर ही आधारित है और जो हमारे आसपास होता है वही अभिव्यक्त कर पाते है|


आज शाम को जैसे ही श्याम नगर के उस मोहल्ले से गुजरी तो देखा गली के बीचोबीच एक महिला जिसकी उम्र होगी कोई ३० से ३५ साल के बीच वाह दहाड़ें मारकर रोती या फिर जोर जोर से हंसने लगती उसके आजू बाजू rकुछ कचरा बीनने वाले बच्चे थे जो उसे hघेरे खड़े थे मै उसका पूरा चेहरा देख नहीं पा रही थी ,जैसे ही पास में hजाकर देखा तो मेरी आंखे फटी की फटी ही रह गई|
अरे !
यह तो सुदेशना है |chehra धूल से भरा होने के बावजूद भी उसका गोरा रंग छिप नहीं पा रहा था |
छरहरी काया थी ऊँची पूरी |अगर मिसेस इण्डिया में भाग लेती तो रनर तो जरुर होती ऐसा हमेशा उसे कहती जब इसी मोहल्ले में मैभी उसके घर के थोड़े पास ही में रहती थी|
शर्माजी सुदेशना के पति और मेरे पति देवेश एक ही फेक्ट्री में काम करते थे ,डिपार्टमेंट अलग अलग होते हुए भी अच्छी जान पहचान थी कभी कभी एक दूसरे के घर भी आना जाना हो जाता था |परन्तु जब से दूसरी कालोनी में रहने चले गये थे यहाँ आना कम हो गया था |
देखते देखते ही सुदेशना के पास के बच्चे छिटक गये थे और सुदेशना भी गली के नुक्कड़ तक पंहुच गई थी |
अभी कुछ महीने पहले ही सुदेशना अपना १० साल का छोटा बेटा खो चुकी थी |जब देवेश ने मुझे फोन पर सूचना दी थी उसी समय उसके अंतिम संस्कार के लिए मै आई थी देवेश तो काफी पहले ही पंहूच गये थे क्योकि शर्माजी को सभांलना बहुत मुश्किल हो रहा था |शर्माजी के और रिश्तेदार आते तब तक देवेश और उनके पुराने मित्रों ने ही sari व्यवस्था करनी थी |जैसे ही में वहां पहूची दिल को दहला देने वाली सुदेशना की चींखे और विलाप था |
इसी समय रिक्शा वाले ने ब्रेक लगाया और मै यथार्थ में आई ,घर चुका था मैंने उसे पैसे दिए घर के अन्दर आई तो देवेश चुके थे |
अरे आप आज जल्दी गये ?
हाँ !उन्होंने कहा- आज थोडा जल्दी काम निबट गया था |
मै जल्दी से रसोई में गई चाय का पानी चढाया ,देवेश भी रसोई में मेरे पीछे पीछे ही गये थे |
मै अनमनी सी सुदेशना के ख्यालो मेही थी उन्होंने भांप लिया और पूछने लगे ?
क्या बात है किसी से कुछ कहा सुनी हो गई क्या ?
उन्हें मालूम है मेरा स्वभाव रिक्शावालो ,दुकंवालो से या और भी कोई गलत काम कर रहा हो ?उनसे दो चार बात करना उन्हें उपदेश देना और अपने जागरूक नागरिक होने का एह्साह करना मेरी नियति में था |
इसके कारण कई लोग मेरे दुश्मन भी हो गये थे |
नहीं ?मैंने कहा -आज मै श्याम नगर गई थी |
मेरा वाक्य पूरा होतेही देवेश बोल उठे -अरे !मै तुम्हे बताने ही वाला था ,मिसेस शर्मा रोज ही घर से निकल जाती है और पूरे शहर में धूमती रहती है |कभी पुलिस वाले उसे घर पहुंचा देते है तो कभी कोई परिचित शर्माजी को फोन कर देते है |मैंने दो कपो में चाय bhari और हम दोनों साथ ही ड्राइंग रूम में गये |देवेश ने सोफे पर बैठते हुए कहा -शर्मा की तो ये हालत है ही वो घर संभाल पा रहा है नहीं ?ठीक से नौकरी कर पा रहा है ?कितनी बार उसे समझाया कब तक विदाउट पे पर छुट्टियाँ मनाते रहोगे |अब तो तुम्हारी माँ भी नहीं रही जिनकी पेंशन से तुम्हे सहारा हो जाता था |बड़े भाइयो से भी वो ही लड़ झगड़ कर हमेशा तुम्हारी मदद करती रहती थी रूपये पैसो से ?तुम्हारे बेटे के इलाज में भी उन्ही लोगो ने जी खोलकर मदद की थी |मुझे तो कभी कभी लगता है सारी मुसीबते शर्मा की अपनी ही पैदा की हुई है |
मै सोच रही थी दुसरो के मामले में हम हम कितनी जल्दी अपना निर्णय दे देते है ऐसा हम कैसे ? और कितनी आसानी से बोल जाते है |और मै फिर अतीत में चली गई उस दिन जब सुमेश हाँ सुदेशना के छोटे बेटे का नाम सुमेश ही था |बहुत ही प्यारा होनहार बच्चा था |
उसको ले जाने की तैयारी चल रही थी सारे कमरे ओरतो से खचाखच भरे हुए थे ,सुदेशना का क्रन्दन जोर पर था कभी वो जोर से रोती कभी वो सिर्फ विलाप करती वो अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह से खो चुकी थी |कई साल से मानसिक रोगिणी रह चुकी है लेकिन आज उसके अनर्गल वार्तालाप ने पूरे समाज के सामने उसे पागल करार दे दिया है और इसका फायदा उठाकर दुसरे कमरे मै बैठी उनकी पड़ोसिन महिलाओ ने फुसफुसाहट शुरू कर दी!
कैसी माँ है ? अपने बेटे को ही खा गई और सुदेशना के रिश्तेदारों की ओर अपनी कही बात की प्रतिक्रिया जानने को देखने लगी |उनकी नजरो में अपनी बात का समर्थन पाकर ; मिसेस जोशी जो कि सुदेशना के परिवार के काफी निकट थी |उनकी बातो में सहानुभूति कि अपेक्षा ईर्ष्या कि भावना ज्यादा रही थी |
वो बोली - तो बेटे को खाना देती थी , ही पति को खाना देती थी अपना खाना बनाकर खा लेती थी |
जिस माँ ने बेटे को जन्म दिया १० साल तक पाल पोसकर बड़ा किया सुमेश ;माँ के बिना खाना नहीं खाता था ,जब भी माँ को इस तरह के दौरे पड़ते वो अपनी माँ का अच्छे से ध्यान रखता था वो माँ क्या ?अपने बच्चे कि मौत का कारण बन सकती है ?कितु वहां बैठी सभी महिलाये मिसेस जोशी कि बात कि हाँ में हाँ मिलकर उसे ही दोषी करार दे रही थी |
मै जानती थी सुदेशना जब सामान्य रहती थी तो अपने बूढ़े साँस ससुर कि सेवा करती थी क्योकि वे लोग हमेशा उसके पास ही रहते थे सम्पन्न बेटों के रहते हुए भी वे लोग यहीं पर आदर सत्कार पाते थे इसीलिए शर्माजी कि सीमित आय में भी ,छोटे से घर में भी खुश रहते थे |सुदेशना ने भी हमेशा उन्हें सम्मान के साथ ही रखा |
उसकी साँस हमेशा उसके साथ दोगला व्यवहार करती थी |हमेशा उससे कटु वचनों से ही बात करती थी और शर्माजी भी अपनी माँ का साथ देते थे |
बिन माँ कि सुदेशना जब शादी होकर आई तो सोचा साँस से माँ का प्यार पा लेगी ?कितु यहाँ तो उसका पति ही माँ का लाडला बेटा बना रहा |उसकी भावनाओ उसकी आकाँक्षाओं कि कही कोई क़द्र नहीं की |
साँस जब तक जीवित रही बच्चो पर भी उनका ही अधिकार रहा उसकी हैसियत घर में एक काम वाली जैसी ही रही |मायके में भैया भाभी ने कभी कोई सुध नहीं ली |
जब भी मुझे मिलती हमेशा मुझे कहती -दीदी मै भी क्या आपकी तरह नौकरी कर पाऊँगी ?क्या इनके साथ कभी पिक्चर देखने जा पाऊँगी ?और उसका गोरा चेहरा और लाल हो जाता |
कभी मिलती तो कहती -दीदी मै क्या इतनी बुरी हूँ ?देखने में ?ये हमेशा दूसरी भाभीजियो की ही तारीफ करते है |माताजी भी हमेशा उलाहने ही देती है की मै फूहड़ हूँ |
हमेशा पनीली आँखों से कहती -मुझमे जितनी शक्ति है मै उतना काम कर लेती हूँ ,रूपये पैसे का मैंने कभी मुंह नहीं देखा सारी तनखा ये माताजी के हाथ में रख देते है |घर में आये दिन मेहमान आते है उनके लिए मिठाई उपहार आते है ,इनके लिए अच्छे कपडे बन जाते है ,और फिर सारे रूपये माँ की पेटी में बंद हो जाते है |
सुदेशना का ह्रदय में दबा हुआ लावा आज बाहर निकलने को आतुर था उसकी आकाँक्षाओं का बंधन जैसे आज टूट गया था जिस जिस ने उसके बारे में कुछ उल्टा सीधा कहा -शर्माजी की छिपी हुई बाते वो सभी बाते जो बरसो से उसके मन में दबी थी विलाप करते करते कहे जा रही थी |
पास में बैठी ओरते छिटकने लगी थी इस डर से की कही अब हमारी बारी जावे |बाहर पुरुषो में सुगबुगाहट होने लगी जल्दी करो भाई शाम हो जावेगी |सबके मन में डर था की कही सुदेशना की नज़र हम पर पड़ गई तो जाने क्या क्या कह बैठे ?जल्दी जल्दी अर्थी तैयार करके सुदेशना की नजरो से भागने की तैयारी करने लगे |उस छोटे बच्चे की मौत से जो अब तक दुखी थे वातावरण में बदलाव गया सुदेशनाके अवचेतन मन में कभी के जखम लगे थे मानो आज उनका वो बदला ले रही थी |उसे पकड़ना भी मुश्किल हो रहा था |मारे भय के उसके रिश्तेदार तो उसके नजदीक भी नहीं जा रहे थे |
अरे मम्मी आप कहा खो गई ?ऋचा ने कोचिंग से घर में आते ही पूछा ?आपकी चाय ऐसे ही पड़ी है ?
देवेश अपनी चाय ख़त्म करके अपने कमरे में टी.वि देखने बैठ गये थे |
ऐसे ही ?मैंने ऋचा को कहा - और लम्बी साँस भरकर रात के खाने की तैयारी करने चली गई|ऋचा भी मेरे साथ ही रसोई में गई थी !
ऋचा! वो शर्मा आंटी थी ?
हाँ १वहि ?जो कंधे पर पर्स लटका लेती और कहती थी मै नौकरी करने जा रही हूँ |
और ऋचा उसकी नक़ल करके हँसने लगी |मैंने उसे डांटा -ऐसा नही कहते !
सुदेशना आंटी बहुत ही बुरी स्थिति में है और उसे बताते बताते मेरी आँख में आंसू गये |
ऋचा कहने लगी -माँ आप भी किस किस के लिए दुखी होगीं ?
ये तो संसार है ये तो चलता है ,अंकल को कहो -उन्हें मेंटल हॉस्पिटल में भेज देना चाहिए |
मै ऋचा की इस छोटी सी उम्र में व्यावहारिकता देखकर दंग रह गई
कितनी जल्दी उसने समस्या का समाधान निकाल डाला ?






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6 टिप्पणियाँ:

Alpana Verma said...

'दूसरों के मामले में हम हम कितनी जल्दी अपना निर्णय दे देते है ऐसा हम कैसे ? और कितनी आसानी से बोल जाते है'
सही प्रश्न किया आप ने .
...
सुदेशना को सही इलाज की आवश्यकता है .
ऋचा ने सही समाधान बताया.
बेशक आज की पीढ़ी अपेक्षकृत अधिक व्यवहारिक ओर समझदार है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दूसरों के मामले में हम हम कितनी जल्दी अपना निर्णय दे देते है ऐसा हम कैसे ? और कितनी आसानी से बोल जाते है'

सही कहा है ...
बहुत मार्मिक प्रस्तुति ..समाधान तो सही बताया ..

kshama said...

Duniya behad bedard hotee hai! Ye to nirmamta kee inteha ho gayee!

प्रवीण पाण्डेय said...

वर्तमान से जो भी रास्ता बेहतरी को जाता हो, वही श्रेष्ठ।

रश्मि प्रभा... said...

dil ko chhunewali kahani

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

शोभना दी!
घटना मन को व्यथित करती है.. संवेदनाओं के स्वरुप भी समय के साथ बदलते रहते हैं.. आपके और ऋचा के उम्र का अन्तर, अनुभव का भी अंतर है और समय का भी.. मिसेज शर्मा की विक्षिप्तता के पीछे आपको वेदना दिखाई देती है और ऋचा को रोग.. दोनों अपनी जगह ठीक हैं.. क्योंकि उनकी सही जगह इन परिस्थितयों में शायद मनोरोग केंद्र ही है!!