Sunday, January 13, 2013

 दामिनी के लिए एक कविता 

 

"निमित्त"

मै ही सीता हूँ
जिसे
अपनी मर्यादा को
बचाने केलिए
वन भेज दिया

मैही शूर्पनखा हूँ
जिसे तुमने
प्रणय निवेदन करने पर
क्षत विक्षत कर दिया।

मै ही द्रोपदी हूँ
जिसे तुमने
अंधे के दरबार में
दांव पर लगा दिया।

कभी तुमने मर्यादा का
अहंकार किया
कभी तुमने
अपने पुरूष होने का
अहंकार किया
कभी तुमने
अपने पद का अंहकार किया
मुझे क्षत विक्षत
करके भी तुमने
मेरा ही अपहरण किया ?

मेरा चीर हरण
करके
मुझे महाभारत का
निमित्त बनाया ?

मैंने ही
तम्हें रचा ,तुम्हारा सरजन किया

तुमने मुझे

कभी बिह्डो में छोडा

कभी बाजार में बेचा

एक

सुंदर संसार की सहभागी बनू

ये समानता थी मेरी

कितु तुमने ही

मुझे कैकयी बनाया

मन्थरा बनाया

अपने ग्रंथो में,


मै चुप रही

आज तुमने मुझे

फिरसे

आदमियों के जंगल में

खड़ा करदिया है

बिकने के लिए


नही?

अब कोई मेरा
अपहरण नहीं करेगा
न ही, मेरा चीर हरण करेगा

न ही मुझे धरती में समाना होगा

न ही मुझे किसी की
जंघा पर बैठना होगा
मालूम है ?
तुम्हे
क्यो ?
क्योकि !
शक्ति ने
स्वीकार ली है,
नर- बलि |
shobhana chourey




9 टिप्पणियाँ:

vandana gupta said...

क्योकि !
शक्ति ने
स्वीकार ली है,
नर- बलि |

काश ! ये बात हर नारी समझ ले ।

प्रवीण पाण्डेय said...

इतिहास के पृष्ठों पर बिखरा कारणों का लेखाजोखा..

दिगम्बर नासवा said...

नारी मन के दर्द को सदियों ने जिया है ... पता नहीं आगे कितना जीना होगा इस दर्द को नारी ने .... प्रभावी रचना है ...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

याद दिलाने होंगें ये कारण जो आज भी नारी जीवन की अस्मिता को ठेस पहुंचा रहे हैं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नारी ने हर काल में त्रासदी झेली है ... सशक्त रचना

Anonymous said...

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KAVITA said...

sach naari ko aadikal se hi jaane kitne julm sahne pade hain ..aur aaj bhi wahi haal hai ...ab to jaagna ho ga ham sabko ..
bahut badiya prerak prastuti hetu aabhar...

अजित गुप्ता का कोना said...

सभी को उभय भारती बनना होगा जिसने मंडन मिश्र को बचाया था और शंकराचार्य से शास्‍त्रार्थ किया था।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती रचना...बहुत बहुत बधाई...